पिछले कुछ दिनों से पाकुड़ में अपराध की ऐसी कुछ घटनायें हुईं , जिसके लिए न तो इस शहर ने कल्पनाएं की थीं , और न ही पाकुड़ इसके लिए तैयार था तथा न अभ्यस्त। लेकिन पाकुड़ पुलिस की टीम ने उन सभी घटनाओं का तकनीकी ढंग से पर्दाफाश किया। हँलांकि कुछ मामलों पर अभी भी गहन छानबीन चल रही है। पुलिस की त्वरित कार्यवाहीयों से आम जनता में खुशी और सन्तोष जागृत हुआ। अब देखना है कि सभी मामलों के पर्दे पूर्ण रूप से कब तक खुलते हैं ।
लेकिन कुछ मामले कहीं न कहीं पुलिस पर सवाल उठा देता है। ऐसा ही एक मामला प्रतिमा पांडे नामक एक महिला के साथ देखने को मिला था। उनकी गाड़ी को उनके घर के पास से बिना किसी पर्याप्त कारण के उनकी जमीन से टोचन कर थाने ले जाया गया , वो भी बिना किसी सीजर लिष्ट के। ये आरोप महिला आयोग को लिखित रूप से पाकुड़ पुलिस पर लगाते हुए शिकायत की गई थी।
आख़िर ऐसे छोटे मामले पर स्थानीय तौर पर न निपटने पर ही महिला आयोग का रुख किया गया होगा।
आज महिला आयोग ने प्रतिमा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सुनवाई की। इसमें विना शर्त प्रतिमा की गाड़ी पुलिस को उनके घर पहुँचाने का आदेश देते हुए , 5 दिनों में विस्तृत जवाब देने को कहा गया है। पुलिस द्वारा 5 की जगह 15 दिनों की अवधी माँगी गई है। महिला आयोग ने किस स्तर पर सुनवाई की होगी, यह तो स्वयं पाठकों को समझ में आ गई होगी लेकिन कई सराहनीय कार्य करने के बाद कुछ यस मेन की दलाली की खोखले दलीलों पर एक पारिवारिक मतभिन्नता पर किसी के घर से बिना किसी ठोस कारणों के गाड़ी टोचन कर थाने उठा ले जाने पर पुलिस अपनी भद कैसे पिटवाती है , ये इस मामले से स्पष्ट दिखता है। चूँकि महिला आयोग और ने प्रतिमा के आरोपों पर कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं दीं , जो यहाँ लिखना पाकुड़ पुलिस की अच्छे और अपराध के मामलों में उठाये गए त्वरित कार्रवाइयों पर प्रश्न चिन्ह लगाएगा , इसलिए उन बातों को गौण करते हुए , एक विनम्र निवेदन रहेगा कि किसी के बेबुनियाद आरोपों पर बिना अनुसंधान के करवाई हास्यास्पद स्थिति तक जाने से परहेज़ करनी चाहिए।
निराधार आरोप पर आ-विधिसम्मत कार्रवाई कर स्वयं की भद पिटवाने से बचना चाहिए जिम्मेदारों को।
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