डॉ संजय की कलम….
कुत्ता कहीका
सर्वोच्च न्यायालय,कुत्ता और चुनाव
भारत का माननीय सर्वोच्च न्यायालय आजकाल चर्चा में है । सर्वोच्च न्यायालय है तो चर्चा भी स्वाभाविक है । अपने ही निर्णय को बदलना और ढेरों सुझाव से , देश का एक तबका चर्चा में शामिल हो गया है । समाचार पत्रों , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बस एक ही चर्चा प्रमुखता से छाई हुई है ।
इधर रोड पर स्पीड ब्रेकर की भूमिका निभाने वाले और सड़क की कई दुर्घटना का कारण बनने वाले कुत्ता समाज भी काफी संख्या में एकत्र होकर, न्यायालय के फैसले पर गम्भीर चिंतन और अनुमोदन करता प्रतीत होता है ।
पूरे कुत्ते समाज ने भी अपने अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी है । जो लवर रहे है यानी कुत्ता प्रेमी समाज ,उसे तो कुछ नहीं कर रहे हैं और जो उनके पक्ष में नहीं है, उनको शिकार बना रहे हैं ।
टी वी पर उनके पक्ष में बोलने वाली या वाले को दुम हिलाकर और विरोध में बोलने वाले पर गुर्रा कर अथवा भोंक कर अपना प्रतिक्रिया दे रहा हैं।
कुत्ता समाज के लिए, समर्थन और विरोध में जुलूस भी निकाले जा रहे हैं ।
उसमें कुत्ते भी शामिल हो रहे हैं । मन प्रसन्न हो जाता है कि हम एकं ऐसे लोकतंत्र में जी रहे हैं जहां कुत्ते के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय संजीदा हैं ।
यहां तक कि एक चैनल ने तो टीवी पर पैनलिस्ट की तरह एक कुत्ते को बुला लिया था । कुत्ता भी एक की गोद में बैठकर अपने भाग्य को इतरा रहा था ।
दिनकर को भी समझा रहा था कि परतंत्रता के समय ही नहीं कि श्वानो को दूध से नहलाए जाते थे और कवि को उस छोटे बच्चे के लिए दूध की तलाश में निकलना पड़ता है ।
कुत्ता कवि को बताता है इस स्वतंत भारत में और भी अधिक प्रगति हुई है ।
खैर जो भी हो आज भी हमारे समाज में कुत्ते को लेकर, लोग , अलग अलग राय रखते हैं ।
किसी के भाग्य को कोसना हो तो बोला जाता है कि उसके किस्मत में कुत्ता ने काट लिया । मैने भी मित्र से पूछ लिया कि उसको भी तो कुत्ता ने काट लिया तो वह तो प्रगति कर रहा है , तो उसने कहा कि काला कुत्ता काटने से बुरा होता है ।
अब मैं जिस रंग के कुत्ते को देखता हूं तो कोई भी रंग हो सफेद ही क्यों न हो । उसके अंदर का रंग बहुत काला दिखता था । जो भी हो मेरे मन में विचार आया कि फैसले जिसके भी हित में हो ,राजनीतिक दल आसानी से इसे एक मुद्दा बना सकते है। कोई दल पुराणों में वर्नित कुत्ता जी , को भैरव का रूप बता कर इनके कल्याण के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने की बात कर सकते हैं।
अन्य दल कुत्ते को चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकते है। वे कुत्ते के कल्याण के लिए महती कदम उठाने की बात जनता से कर के वोट चोरी के आरोप से हट कर के कुत्ता समाज के विभिन्न पदों का सृजन कर रोजगार के अवसर भी पैदा करने की बात कर सकते हैं । पूरा मानवाधिकार वाले और लवर समाज एक होकर वोट करेंगे तो उनकी जीत पक्की हो जाएगी।
राजनीतिक दल अगर चाहे तो , नगरनिगम में कुत्ते से जुड़े विभाग बनाने का ऐलान कर सकते हैं ।केवल घोषणा ही तो करनी है।भारतीय वोटर को क्या चाहिए।अखिल भारतीय कुत्ता पालक अधिकारी बनाए जाए । इनका मूड ठीक रहे और कुत्ता जी इरिटेड होकर किसी को न काटे यह बात भी एक अधिकारी सोचे । इसका नाम डॉग इरिटेड ऑफिसर रखा जा सकता है ।
यानी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को राजनीतिक दल कोई तो नीति बनाकर जनता में जनादेश के लिए जाएं और अखिल भारतीय मंत्रालय भी खुलवाएं । बेशक सर्वोच्च न्यायालय ने कुत्ते पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। राजनीतिक दल जनता के बीच कुछ मुद्दों को लेकर जाएं ,और कुत्ते को रोजगार से जोड़ दें तो जीत उनकी हो सकती है ,और सत्ता में आकर विज्ञापन दे कर कुत्ते के लिए अखिल भारतीय अधिकारी से लेकर स्थानीय अधिकारी तक की बहाली कर सकते हैं ।
वोट चोरी , से ध्यान हटाकर कुछ सकारत्मक प्रचार करे और कुत्ते को रोजगार से जोड़े । जो भी हो समाज अभी भी कहता है। कुत्ता कहींका ।