पिछले दिनों दो हड़ताल (बंद ) से हम रुबरु हुए। इलेक्शन कमीशन के विरुद्ध बिहार बंद और पाकुड़ में भाड़ा बढ़ाने को लेकर कम्पनियों के विरुद्ध डम्फर मालिकों के चक्का बंद। बिहार बंद के कारणों पर तो सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई , लेकिन पाकुड़ में डम्फर मालिकों की सुनवाई फ़िलवक्त टल गई। एक बात जो ग़ज़ब की खुलकर पाकुड़ में सामने आई , कि सरकारी रेट पर खरीदी गई तेल डम्फर मालिकों को ज्यादा रेट पर दी जाती है , और इसपर खुलकर डम्फर मालिक न तो बोल सकते और न ही हम जैसे पत्रकार लिख सकते। अगर ऐसा हुआ तो खैर नहीं।
कहीं कोई संवेदना नहीं , और न ही कोई इंसानियत की कोई मिसाल।
आज एक मित्र के वॉल पर एक कहानी पढ़ी। सारांश था प्रकृति बोलती है , सिर्फ़ उसे सुनने की संवेदना होनी चाहिए और अनुरूप प्रतिक्रिया की मंशा। लेकिन यहाँ पाकुड़ में इसका घोर अभाव है।
खैर पहले आप भी उस कहानी से रुबरु हो जाइये। मैं हूबहू उसे आपके लिए यहाँ परोस रहा हूँ।
2009 में, मशहूर इतालवी फ्रीडाइवर एन्ज़ो मायोर्का अपनी बेटी रॉसाना के साथ सायराक्यूज़ के तट पर गोता लगा रहे थे, जब कुछ असाधारण घटित हुआ।
जैसे ही वे नीले समुद्र में नीचे जा रहे थे, एन्ज़ो को अपनी पीठ पर एक हल्का सा धक्का महसूस हुआ। जब उन्होंने पलटकर देखा, तो सामने एक डॉल्फ़िन थी — लेकिन वह खेलने नहीं आई थी, बल्कि मदद माँग रही थी।
वह डॉल्फ़िन नीचे की ओर तैर गई, और एन्ज़ो उसके पीछे-पीछे चले गए। करीब 15 मीटर की गहराई पर, उन्होंने देखा कि एक दूसरी डॉल्फ़िन एक छोड़े हुए मछली पकड़ने के जाल में फँसी हुई है। बिना कोई देरी किए, एन्ज़ो ने अपनी बेटी से चाकू माँगा और सावधानीपूर्वक उस जाल को काटकर डॉल्फ़िन को आज़ाद कर दिया।
जैसे ही वह डॉल्फ़िन आज़ाद हुई, उसने एक ऐसी आवाज़ निकाली जिसे एन्ज़ो ने बाद में “लगभग इंसानी चीख़” की तरह बताया।
जब डॉल्फ़िन सतह पर पहुँची, तो पता चला कि वह एक गर्भवती मादा थी — और कुछ ही पलों में उसने खुले समुद्र में बच्चे को जन्म दे दिया।
वह नर डॉल्फ़िन जो साथ था, उस दृश्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, फिर धीरे से एन्ज़ो के पास आया, अपनी नाक से उनके गाल को छुआ — जैसे एक चुंबन — और फिर अपने नए परिवार के साथ गहराइयों में विलीन हो गया।
बाद में एन्ज़ो ने कहा:
“जब तक इंसान प्रकृति की इज़्ज़त करना और उससे संवाद करना नहीं सीखता, वह इस धरती पर अपने असली स्थान को कभी नहीं समझ पाएगा।”
यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रकृति बोलती है — बस ज़रूरत है उसे सुनने की।🙏🏽
कैसी लगी ? आशा है अच्छी लगी होगी। लेकिन यहाँ डम्फर मालिक सभी सिर्फ़ एक जाल में नहीं , बल्कि किश्तों और मेंटेनेंस तथा कोयला चोरी सहित समय की मार के कारण कम बहुत कम त्रिपों के जाल में भी फँसे हैं , लेकिन उनकी चीत्कार और मौन कराह किसी को नहीं दिखती। यहाँ ” एन्जो ” की मानसिकता नहीं दिखती , और नहीं दिखती सम्वेदना की झलक। वरना क्या ऐसी मानसिकता कम सरकारी दर पर तेल खरीद कर अवैध रूप से ज़्यादा दर पर बेचकर आपराधिक कुकृत्य को बिना किसी संवेधानिक डर के अनवरत जारी रखती ?
और डरे भी तो किससे ! ” जब साईंयां ही कोतवाल हो ” तो डर कैसा ? # @ED और @CBI वाले भैया आप पर ही एक अंतिम आशा है।