एक पुराने स्वयंसेवक से हुई बातचीत पर आधारित समीक्षा क्षमा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ🙏
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आज़ादी के बाद पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र ने एक बार जनसंघ और दो बार भाजपा का विधायक दिया है। उस समय भी मतदाताओं की संख्या समीकरण ऐसी नहीं थीं, कि ऐसा हो पाए। आज तो खैर राजनैतिक समीकरण किसी भी कोण से ऐसा नहीं दिखाता कि पाकुड़ कभी भाजपा से प्रतिनिधि विधानसभा में भेज सके।
इसका सबसे बड़ा कारण है , मतदाताओं की संख्या समीकरण और स्थानीय भाजपा में कार्यकर्ताओं की घोर कमी तथा चुनाव लड़ने वाले महत्वाकांक्षी नेताओं की अनगिनत संख्या।
जब हम जैसे लोगों ने बाल्यकाल में होश संभाला था , तो पाकुड़ में स्वयं को संघ की शाखा में खेलते पाया था। पाकुड़ जैसे तत्कालीन कस्बाई छोटे से जगह पर सुबह और सायं कालीन लगभग आधा दर्जन शाखाएं लगतीं थीं। खेलने कूदने के लिए बच्चे सम्प्रदायों और जातियों से इतर हट कर संघ की शाखाओं में ही जाते थे।
युवावस्था में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन ने शैक्षणिक संस्थानों को योग्य बना रखा था। कहीं कोई प्रतिस्पर्धा नही थी, बल्कि सहयोगी वातावरण था।
भाजपा के संगठन में भी सहयोगी वातावरण ही था। लेकिन आज मानो सब कुछ कहीं खो सा गया है। दो दिनों पहले ही हुई एक समीक्षा बैठक में भाजपा के जिलाध्यक्ष पर शिकायतों के अंबार सा लगा था।
जिन लोगों ने यहाँ संगठनों के विभिन्न पहलुओं को अपने खून पसीना से सींचा वे सभी आज उपेक्षित हैं। वर्तमान ने अतीत में मजबूत नीव रखने वालों को नकार दिया है।
युवावस्था ताकतवर तो होता है , लेकिन अनुभव की झुर्रियां कितनी कारगर होतीं हैं , इसे भी समझना जरूरी है।
संगठनों को जमीन पर खड़ा करनेवालों को नकार कर युवा जोश दिशाहीन हो चुकी है। और राज्य स्तरीय बड़े नेता सिर्फ़ बड़ी चमकती गाड़ियों से उतरते सफेदी के पीछे छिपे दागदार चेहरों से धोखा खा जाते हैं।
इन दागदार सफ़ेद चोले में लिपटे लोग कमल नहीं खिला सकते। जमीन पर दशकों से कीचड़ में सने संगठन कर्ता ही कमल महका सकते हैं।
निशिकांत दुबे बनने के लिए , पीछे मुड़कर उनके संघर्ष को झांकिये , उनकी निश्वार्थ जनसेवा को अहसासिये ।
निशिकांत ने किसी की जमीन , हक़ और अधिकार नहीं मारा , तो संथालपरगना के दिलों में बस गया। अपने से सीनियर नेताओं को सांसद होने के बाद भी उचित सम्मान दिया , निशिदिन कांति चमक रही है।
भाजपा पाकुड़ जैसे क्षेत्र में भी कमल फिर से खिला सकता है , अगर…..
संगठन के मूल सूत्र को समझते हुए जड़ से जुड़ना होगा।
वरना छोड़ दीजिए इस सीट को सहयोगी दलों के लिए, और उनको सहयोग कीजिए।