स्वर्गीय दिसोम गुरु शिबू सोरेन भौतिक शरीर में हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी अमिट छवि एक संस्मरण बन हमारे बीच जीवनपर्यंत रहेगा। ऐसे तो सैकड़ों बार उनसे मिल चुका हूँ, लेकिन एक पत्रकार होने के नाते तीन बार उनके साक्षात्कार के लिए अकेले में भीड़ से अलग मिला, पर एक बार भी साक्षात्कार सूट नहीं कर सका। जब कभी उनसे मिला, कभी लगा ही नहीं कि किसी राजनेता से मिल रहा हूँ। ऐसा लगा जैसे किसी आध्यात्मिक गुरु के सामने बैठा हूँ, और इनसे राजनैतिक सवाल क्या करना। हर बार उनसे बातचीत कर आशीर्वाद ले वापस आ गया। एक आश्चर्यजनक ओज और सादगी के बीच ऐसा कभी मुझे लगा ही नहीं कि इस व्यक्ति ने कभी कानून और सरकार के विरुद्ध उग्र विद्रोह किया होगा, और पुलिस इन्हें ढूंढती रही होगी।
क्योंकि उनकी बातों में कहीं विद्रोही की महक नहीं आती थी, बस अन्याय के विरोध की सुगंध के साथ प्रकृति तथा आदिवासियों की संस्कृति की सुरक्षा की बात रहती थी। बाबा शिबू सोरेन की बात करना एक ऐसी अनुभूति दे जाता कि वहाँ मैं पत्रकारिता भूल जाता, और उनकी बातों में डूब जाता था।
एक बार पाकुड़ के पनेम कोल ब्लॉक के सर्वेसर्वा पूज्य स्वर्गीय डी एन शरण से बातचीत में सुना था कि बाबा शिबू सोरेन ने एकबार झारखंड के कहीं दूसरे जगह उनसे कहा था, कि एक बात हमेशा याद रखें कि खनिजों पर सरकार का अधिकार होता है कानूनन, लेकिन जमीन आदिवासियों तथा प्रकृति की है। खनिज निकालने के बाद उसे समतल कर प्रकृति को वैसे ही आदिवासियों के द्वारा सौंप दें जैसा खनिज निकालने के लिए लिया था। वरना प्रकृति अपना बदला लेगी।
आज जो विभिन्न राज्यों में प्राकृतिक आपदा दिख रही है, उससे लगता है, शिबू सोरेन बाबा कितने दूरदर्शी थे।
शरण साहब से दिसोम गुरु बाबा के विषय में और भी बहुत कुछ सुना था। एक ऐसी छवि मेरे मस्तिष्क में दिसोम गुरु की बन गई थी कि उनसे राजनैतिक सवाल पूछने के लिए मेरा कभी मुँह ही नहीं खुला।
जब भी उनसे बात हुई अलग राज्य और आदिवासियों के हित की झलक उनकी बातों से बिखरती थीं।
उनका कहना था, अलग राज्य बनेगा, आदिवासी चुनाव जीत कर आएँगे, सरकार बनाएँगे, चलाएँगे तभी तो आदिवासी सशक्त होंगे। नई नई चीज सीखेंगे, और दुनियाँ के साथ कदम मिलाकर चलेंगे।
वे कहते थे, मैंनें महाजनों का उग्र विरोध कर आंदोलन किया, कि आदिवासी अन्याय के विरुद्ध मौन न रह उसका विरोध करे। मैंनें अपने हक़ के लिए उन्हें जगाने का प्रयास किया। उन्होंने कई बार कहा था, जब आंदोलन की जरूरत थी किया, जब अलग राज्य के लिए राजनीति की जरुरत थी, वह भी किया। उद्देश्य सिर्फ झारखंड और यहाँ के निवासियों आदिवासियों के कल्याण से जुड़ा था।
गुरुजी सबसे मिलते थे, कभी लगा ही नहीं कि आंदोलन की ताप में खरा सोना बनकर निकला यह अमूल्य धरोहर आम जनता से अलग है। सबसे घुल जाने की उनकी वही प्रबृत्ति आज नेमरा में हेमन्त सोरेन में दिख रही है। वहाँ सहजता के साथ सगे सम्बंधियों और नेमरा की आम जनता के बीच वे बिलकुल गुरुजी की छवि बिखेर रहे हैं।
विधिवत श्राद्धकर्म में लगे हेमन्त सोरेन भी आज मुझे उसी तरह व्यक्तिगत रूप से प्रभावित कर रहे हैं, मानो गुरुजी की छवि उनमें उतर गई हो …..