के के एम कॉलेज के रास्ते मे पड़ने वाले पुष्करणी तालाब (अखाड़ी पोखर) को भरने के आरोप पर उक्त महल्ले के लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है। हाँलाकि ये तालाब एक संयुक्त सम्पत्ति है। किसी एक पक्ष द्वारा अपने तर्कों के साथ जमीन माफियाओं की छाँव में , अपनी जमीन के समतलीकरण के नाम पर पहली ही नज़र में तालाब भरने जैसी करवाई की पृष्ठभूमि पर बहुत पहले से खिचड़ी पकाई जा रही थी। पिछले दिनों जमीनी करवाई भी होने लगी। महल्ले वालों ने तालाब भरे जाने की जनसुविधा के मद्देनजर विरोध शुरू किया है।
इससे पहले आई आर एस स्तर के एक पक्षकार ने इसका विरोध करते हुए एक लिखित शिकायत स्थानीय सक्षम प्रशासन के अधिकारियों से की थी। उसमें एक व्यक्ति के नाम का उल्लेख भी है।
उसी लिखित शिकायत के आधार पर एक कलमकार ने समाचार भी बनाया था। चूँकि कलमकार ने शिकायत में उल्लिखित व्यक्ति के नाम का उल्लेख कर दिया था तो उन्हें मानहानि के मुकदमे की धमकी से डराया भी गया। ऐसे भी गरीब पत्रकार दबंगो के लिए एक आसान टारगेट होता है।
खैर उक्त समाचार के बाद दूसरे पक्ष ने भी अपनी बात रखी।
उक्त दोनों ही पक्षों के अध्ययन से फ़िलवक्त जो बात समझ में आती है , वो हिन्दू पारिवारिक सम्पत्ति विवाद एवं समाधान का मामला है। उसके अध्ययन और प्रशासन के विवेचना के अंतर्गत आता है।
लेकिन शिकायत के बाद भी त्वरित कार्यवाही न होना और पहली ही नज़र में तालाब भरे जाने की आशंका उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना तो दिखता है।
ऐसे भी तालाबों के शहर पाकुड़ में तालाब भरे जाने का यह कोई पहला मौका नहीं है। सैकड़ों अट्टालिकाएं तालाब की कब्र पर खड़ी मौन ठहाके लगाते यहाँ नज़र आ जाएँगी।
पत्रकारों के लिए इस शहर में बस अब इतना कहा जा सकता है कि “इस शहर के लोग भी हैं बड़े हुनर वाले, रोज हम अपनी जान हथेली पर लिए निकलते हैं।
जमीनों के नेचर को बदल खेल करने की कयावद यहाँ पुराना है , जो अनवरत जारी है।
सूखती नदियाँ , भरते तालाब जमीं हलक में दूर भागती रूठे भूगर्भीय जल स्तर शहर की अट्टालिकाओं से बरबस पूछती सी लगती है, कि अपनी अट्टालिकाओं में सभी सुविधाएं तो जुटा लोगे , लेकिन सुहागन की बिंदी की तरह ज़रूरी जल कहाँ से लाओगे।
एक सवाल उठता है , कि जाति धर्म के नाम पर लड़ने वाले इंसान तुम पूजा और ईबादत के लिए भी जल क्या ज़लील होकर भी जुटा पाओगे? भगवान को कैसे नहलाओगे , कैसे वज़ु करोगे ?
उक्त जमीन की समतलीकरण के चित्र को देखकर पाठक बताएं कि क्या तालाब भरे जाने का अहसास मस्तिष्क को दस्तख़ नहीं देता !
दस्तावेजों को पढ़ा जा रहा है , कहने को बहुत कुछ है। आपने शब्दों से किस्तों में कहेंगे भी , लेकिन जमीन जिनका भी हो ,आपका ही रहेगा , आप मछली पलिये , कमाइए । आपका अधिकार है ,पर तालाब पर प्रकृति और जीवों का अधिकार है , ये न भूलियेगा ।
कहीं ऐसा न हो कि प्रकृति और जीवों का अभिशाप , जलस्रोतों को मिटाने वालों को मौत तो किसी 5 स्टार अस्पताल के लक्ज़री कमरे में दे और अंत समय में पानी का एक बूँद हलक को नहीं मिले।
समुद्री यात्रा में जहाज़ पर पानी ख़त्म हो जाने के बाद शेक्सपियर ने अथाह सागर को देखकर कहा था – “वाटर वाटर एभरीव्हेयर , बट नथिंग ए ड्रॉप टू ड्रिंक”
ठीक उसी तरह जमीं के सौदागरों के पास पैसे तो बहुत हों ,लेकिन अंत समय वातानुकूलित कमरे के गद्दे पर हलक को पानी की एक बूँद नसीब न हो😥