“हेमंत है तो हिम्मत है” पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में इस नारा ने झामुमो गठबंधन को ग़ज़ब की सफलता दिलाई। हाँलाकि ये नारा बाद में विपक्षियों के लिए एक व्यंग बन गया।
इसमें अस्वाभाविक भी कुछ नहीं था। पूजा सिंघल मामले से लेकर कई ऐसे मामले आये , जिसने सरकार की आलोचना के लिए इस नारे को व्यंग की पँक्ति में खड़ा कर दिया।
साहेबगंज के एक साहित्यकार मिलन के आयोजन में इस नारे का जन्म हुआ। बाद में नारे के जन्मदाता को कटाक्षों का सामना करना पड़ा।लेकिन साहित्य और साहित्यकार विचलित कब हुआ है ?
साहित्यकार किसी सम्प्रदाय या दल विशेष के नहीं होते। इनकी एक अलग विशेषता होती है, कि जहाँ इन्हें सम्मान से बुलाया जाता है , वहाँ सबके हित की बात परोसने ये पहुँच ही जाते हैं। वहीं एक विचारधारा के आग्रह पर मित्र सम मेरे बड़े भाई और विख्यात साहित्य सेवक सच्चिदानंद ने अचानक इस नारे को जन्म दिया और ये नारा चल पड़ा।
जब ये नारा चल पड़ा तो सरकार बनने के बाद भी पक्ष विपक्ष ने अपनी अपनी सुविधानुसार इसका प्रयोग अपनी बात कहने किया।
पत्रकारों ने भी समाचारों को परोसने में इस नारे का प्रयोग किया।
ये नारा सकारात्मक और नकारात्मक रूप से बुलंद होता गया।
पिछले दिल्ली प्रवास के दौरान युगल चित्र के साथ जब माननीय विधायक कल्पना सोरेन ने अपने X पेज पर इस नारे का प्रयोग किया , तो मुझे इस नारे ने सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
अपने गुरुस्वरूप रामजनम मिश्रा के फेसबुक वॉल पर जब ये देखा कि अखबारों में भी इस X ट्वीट पर कहा गया है, तो मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाया।
हमारे देश में विवाह बंधन को सात जन्मों का साथ कहा जाता है। एक राजनैतिक नारा कैसे पति पत्नी के बीच के विश्वास और उनसे उपजी हिम्मत का पर्याय बन सकता है , ये कल्पना जी ने सवित कर दिया।
पहले इस नारे को जन्म देने वाले और इसके प्रयोग करने को नकारात्मक रूप से परिभाषित किया जाता था , मैं भी भर्मित हो इसे चापलूसी की पराकाष्ठा मानता था।
लेकिन माननीय कल्पना जी द्वारा इस नारे का इस तरह प्रयोग ने कम से कम मेरे लिए तो दृष्टिकोण परिवर्तन का माध्यम बन गया।
एक साहित्यकार जब कोई सृजन करता है तो उसकी प्रसवपीड़ा वही समझ सकता है।
बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, लेकिन उक्त नारे को जन्म देने वाले पर लगे आरोपों को पीछे मुड़कर देखने के बाद मुझे हिम्मत नहीं होती।
दक्षिण पंथी होने का नामदार रहा मैं , इस विषय पर ज्यादा कहकर गालियाँ सुनना नहीं चाहता , लेकिन साहित्य के साथ मेरा परिचय का अनुभव कहता है कि शब्दों और उक्तियों के सही प्रस्तुतिकरण से अर्थ का अनर्थ तथा अनर्थ का भी विशाल अर्थ निकल आता है।🙏🏻