तीन दशकों की मेरी पत्रकारिता में मुझे याद है, विभिन्न राजनैतिक पार्टियाँ हर विभाग में “इंसपेक्टर राज” ख़त्म करो के नारे लगाते थे।
आज देश में प्रधानमंत्री मोदी कानून की पेंचीदगियों को समाप्त कर इसे सरल बनाने के सफलतम प्रयास में लगे हैं।
निवेशकों और उद्योगों को वन विंडो सुविधा उपलब्ध कराने की बात की जाती है , ताकि उद्योग और व्यापार सुलभ हो सके।
इधर लगभग प्रतिदिन अवैध रूप से लॉटरी पर खबरें प्रकाशित होती जा रही है।
इसके लिए प्रशासन और पुलिस को दोष देने की परम्परा भी बदस्तूर जारी है।
एक समय लॉटरी झारखंड में बिकते थे , और वो अवैध नहीं था।
अचानक किसी राजनैतिक रूप से सत्ता पर काबिज़ किसी पार्टी के अव्यवहारिक सोच ने दम्भ भरी अंगड़ाई ली , और रातो रात झारखंड में लॉटरी बिकना अवैध हो गया।
यानि हर तरह के संरक्षण को एक मौका मिल गया , तथा वैध को अवैध के विशेषण के साथ चलने का रास्ता मिल गया।
जिस गरीब शोषण के नाम पर लॉटरी पर रोक लगाई गई, उन्हीं गरीबों के शोषण का उसी लॉटरी के द्वारा अवैध का रास्ता एक अव्यवहारिक निर्णय ने खोल दिया।
खैर जहाँ लॉटरी अवैध है, वहीं हर तरह के शराब को वेध बनाकर रखा गया है। नये नये और निर्णयों को अव्यवहारिक रास्तों पर खींच ले जाने की चर्चा चल रही है।
हमारे देश में सरकारें ऐसे निर्णय के लिए मशहूर हैं, जहाँ चूहों को भी थानों के मालखाने में शराब परोसने की कहानी बन सकती है।
सरकारी अव्यवहारिक निर्णनयों से अवैध के रास्ते खुलते रहे हैं , और गिनेचुने लोगों को सामान्य से माफिया बनकर अवैध रूप से अगाध बनाने और कमाने का मौका दिया गया है।
अब झारखंड में जाली लॉटरी छपकर बिक रहे हैं। बंगाल सहित अन्य प्रदेशों के सरकारी लॉटरी दशकों पहले यहाँ बिकते थे , लेकिन प्रतिबंध के बाद जाली भी छपने और बिकने लगे।
अगर अन्य राज्यों की तरह सरकार ही लॉटरी पर अपनी पकड़ बना लेती , तो राजस्व के साथ रोजगार भी सृजन होता , और एक और अपराध पनपने से रह जाता। हजारों काम तथा अपराध पर काबू पाने के कार्य में लगे प्रशासन के पास भी वक़्त बचता।
लॉटरी अगर गरीब विरोधी है, तो शराब गरीब विरोधी नहीं है क्या ?
गोवा सहित अन्य राज्यों की तरह स्थानीय शराब बेचने की बात होतीं हैं , लेकिन अन्य राज्यों की नक़ल सरकारी लॉटरी पर न कर क्या इसे व्यवहारिक कहा जा सकता है? यह चिंतन , मंथन और ….जाँच तक के विषय है।
सवाल बहुत तरह के उठते हैं , जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है।
हर बात पर पुलिस और प्रशासन को दोष देना न्याय संगत दिखता ? अब पुलिस वाले क्या क्या करे !
राजनीति और पोषित गुर्गे अव्यवहारिक निर्णय लेते रहें , तो प्रशासन क्या क्या देखें ?
बिहार में शराब बंदी ने शराब के कारोबार को अवैध बना दिया , लेकिन क्या ये बंद हो गया ?
बिहार में शराबबंदी ने करोबार के रूपरेखा को एक नई दिशा दे दी।
माफिया नये नये पैदा लिए , और बंदी की निगरानी रखने वाले जिम्मेदारों को एक और नया रास्ता पैसे बनाने का मिल गया। पेरविकारो और दलालों को नया कारोबार मिल गया। बिहार के किस कोने में शराब चाहिए , आपके घर तक पहुँच जाएगा , आपको कहीं इसकी उपलब्धता के लिए जाना नहीं है।
झारखंड में अवैध होते ही लॉटरी जाली भी हो गये , और नये नये करोड़पतियों की गली गलियारों में उतपत्ति हो गई।
अब हम लक्ज़रियस गाड़ियों पर बकरी चुराएं , थैलों में लॉटरी पहुँचायें , आँचल की छावों में ड्रग्स की पुड़िया बाजारों में उपलब्ध कराएं।
मतलब अवैध कमाने की हम हमारी मानसिकता को विभिन्न अवैध धंधों से पोषित करें , लेकिन ” जोतो दोष – नन्दो घोष” की तर्ज़ पर दोषी प्रशासन को ठहराएं।
मुट्ठीभर स्वार्थ के लिए हम आपस में भिड़ मरें , लेकिन हर तरफ़ बिखरे अवैध के लिए ,सिर्फ प्रशासन दोषी !
हम कभी अपने बच्चों से यह पूछने की ज़हमत नहीं उठाते कि जब तुम्हारे पास कोई स्पष्ट रोजगार दिखता नहीं , तो विभिन्न सुविधाओं के रुप में दिखता इतने पैसे कहाँ से लाये !
प्रशासन को दोष देने की परम्परा छोड़ हम अपने गिरेबान में भी झाँके – टटोले तो कुछ बात बने।
ख़ुद से सवाल करें कि , क्या हमारी मानसिकता और दुर्व्यसनों के लिए प्रशासन दोषी है?
सरकारी अव्यवहारिक निर्णय कभी कभी बन जाते हैं नये नये अपराध पनपने के कारण।
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