“इसे मज़हब कहो या सियासत कहो,
खुदकशी का हुनर तुम सीखा तो चले,
लाओ बेलचें खोदो जमीं की तहें,
मैं कहाँ दफ़न हूँ ,कुछ पता तो चले।”
“तेरी उठी अँगुलियों ने समाज के प्यार से कराया परिचित”
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आश्चर्य है कि कोई अंगुली उठाये उस पर जो समाज के लिए बिछा सा रहता हो। लुत्फुल हक़ एक ऐसा नाम जो समाज के लिए सीमाओं से बाहर जा कर हमेशा सहयोग की भावना से खड़ा रहता है। वो व्यवसायी है , व्यवसाय उनका पेसा है। अगर वो अपने व्यवसाय से ईमानदारी नहीं बरतेगा , तो क्या वे समाज के लिए हर तरह से खड़ा रह सकता है ? किसी के लिए भी हो बिना सामर्थ के किसी को सहयोग कर पाना असंभव है।
हम चिकनी सड़क पर भी चलते हैं, तो फिसलकर गिरते हैं। उनपर अंगुली उठाने वाले जरा पत्थर के व्यसाय के उबड़ खाबड़ रास्ते पर चल कर देखे , तो पता चलेगा। फिर भी लुत्फुल हक़ पर आज तक पत्थर व्यवसाय में किसी तरह से अंगूली अभी तक नहीं उठी है।
क्या देश विदेश की संस्थाएं पागल थीं कि लुत्फुल हक़ को सम्मान के योग्य समझा , क्या यहाँ की सरकारी संस्थाएं अकर्मण्य हैं कि उन्हें लुत्फुल हक़ द्वारा की जाने वाले पत्थर व्यवसाय में कमियां नहीं दिखतीं ?
अफ़सोस और आश्चर्य है कि एक व्यक्ति जो अपने काम के साथ हर तरह से समाज की सेवा कर रहा है , उसपर अंगुली उठा कर क्या सावित करना चाहते हैं लोग। क्या यही सकारात्मक पत्रकारिता है ?
पूरा इलाका इससे असहमत और आक्रोश में है। एक पत्रकार पर भी उनके साथ देने की बात कह अंगुली उठाई गई है। व्यक्तिगत रूप से मैं उस पत्रकार को सिर्फ पहचानता ही नहीं अच्छी तरह जानता भी हूँ। उस व्यक्ति ने अपनी पत्रकारिता की जिंदगी में कभी किसी को न तो प्रताड़ित किया, और न ही अपमानित किया। वो पत्रकार भी समय बेसमय जरूरतमंदों को साथ देता रहा है।
स्वाभाविक रूप से दो समान विचार के व्यक्ति में सम्बन्ध एक सहयोगात्मक आकार लेता है।
लिखना बहुत कुछ चाहता हूँ , लेकिन मैं अपनी मर्यादा की सीमा में ही रह कर सिर्फ इतना कहूँगा कि पत्रकारिता सकारात्मक करें।
समाज सेवी व्यवसायी लुत्फुल हक़ और मिलनसार पत्रकार पर उठाए गए अंगुली की यहाँ हर ओर जितनी भर्त्सना हो रही है , उससे उनदोनों के प्रति समाज का असीम प्रेम और आपके प्रति घृणा का परिचय स्वयं स्फूर्त दिख रहा है। उठाई गई अँगुली और अपनी समीक्षा आप (अज्ञात) स्वयं करें।
आपकी उठी अँगुली ने उन दोनों के प्रति समाज के अगाध प्रेम का परिचय भी राह चलते चर्चाओं से मिल रहा है।