“जनता की आवाज़ बनने का दर्द क्या होता है, यह वही समझ सकता है जो उसके हक़ और हक़ीक़त के लिए सड़कों पर उतरता है, आवाज़ उठाता है, और फिर सिस्टम से टकराता है।”
01 सितंबर 2016 का दिन साहिबगंज जिले के बड़हरवा प्रखंड के इतिहास में एक ऐसा दिन बन गया, जो आने वाले कई वर्षों तक संघर्ष, अन्याय और अंततः न्याय का प्रतीक बन गया। उस दिन, जनसमस्याओं को लेकर दो जनप्रतिनिधि — अनंत तिवारी (जो उस समय भाजपा किसान मोर्चा के साहिबगंज जिला अध्यक्ष थे) और जोहन मुर्मू (तत्कालीन जिला परिषद सदस्य) — के नेतृत्व में एक विशाल जनआंदोलन का आयोजन किया गया था।
जब जनता का सब्र टूटा
बड़हरवा प्रखंड कार्यालय के सामने हजारों की भीड़ जुटी थी। नारे लग रहे थे — पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, और सरकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ। यह कोई राजनीतिक ड्रामा नहीं था, बल्कि आम जनता की पीड़ा का विस्फोट था। लेकिन कहते हैं कि जब आवाज़ें ऊँची होती हैं, तो सत्ता बौखला जाती है।
धरना शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ था, पर जैसे-जैसे प्रशासन की ओर से अनदेखी हुई, लोगों का गुस्सा बढ़ता गया। तत्कालीन बीडीओ सदानंद महतो और अन्य प्रखंड पदाधिकारियों के खिलाफ जनता की नाराजगी इस कदर फूटी कि बेकाबू भीड़ ने कार्यालय का गेट तोड़ दिया और हल्की तोड़फोड़ की घटनाएं घटित हुईं।
हालांकि आंदोलनकारियों — अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू — ने मंच से लगातार शांति बनाए रखने की अपील की थी, फिर भी प्रशासन ने इन्हीं दोनों नेताओं को निशाना बनाया। आंदोलन खत्म होते ही, बड़हरवा थाना कांड संख्या 452/16, जी.आर. केस के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।
आरोप: आंदोलन नहीं, अपराध?
प्रखंड प्रशासन और कुछ स्थानीय सत्ताधारी तत्वों की “मेहरबानी” से यह मुकदमा तैयार हुआ। आरोप था कि अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू ने सरकारी कार्य में बाधा डाली, तोड़फोड़ की साजिश रची और प्रशासन को जानबूझकर बदनाम किया। यह सब तब जब दोनों नेता जनहित में लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कह रहे थे।
9 साल की पीड़ा — हर तारीख़ एक इम्तिहान
फिर शुरू हुई न्याय की लंबी और थकाऊ यात्रा। बेल की लड़ाई से लेकर हर सुनवाई तक, अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू को न्यायालय के चक्कर लगाने पड़े। हर तारीख, हर गवाही उनके धैर्य और सच्चाई की परीक्षा बन गई। कई बार ऐसा लगा कि क्या सच में इस देश में सत्य की विजय होती है?
लेकिन न उन्होंने हार मानी और न उनकी आवाज़ दबाई जा सकी। मुकदमा चलता रहा, गवाहों की जिरह होती रही, बचाव पक्ष ने हर सच्चाई को बारीकी से अदालत के समक्ष रखा।
प्रदीप सिंह और उनकी टीम — न्याय के रक्षक
इस केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप सिंह और उनके जूनियर देवजीत कुमार ने की। उन्होंने केस को सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि जनहित के आंदोलन की तरह लड़ा। केस की हर बारीकी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने साबित किया कि आंदोलन पूरी तरह लोकतांत्रिक था, और यदि कुछ क्षणों के लिए हालात बिगड़े, तो उसके लिए आंदोलनकारी जिम्मेदार नहीं थे।
फैसला — बाइज्जत बरी
28 जुलाई 2025 को राजमहल न्यायालय के न्यायाधीश श्री रंजन कुमार की अदालत ने दोनों नेताओं — अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू — को सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आंदोलन लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे में था, और उसके नेतृत्वकर्ता को साजिश के तहत फँसाया गया।
इस फैसले के साथ न सिर्फ दो निर्दोष व्यक्तियों को न्याय मिला, बल्कि यह भी सिद्ध हुआ कि जनता की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता — न मुकदमों से, न झूठे आरोपों से।
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अनंत तिवारी का बयान:
> “हमने कुछ भी गलत नहीं किया था। हमनें सिर्फ जनता की आवाज़ उठाई थी। 9 साल लंबी यह लड़ाई हमें झुका नहीं सकी। हम आज भी उसी तरह जनहित में लड़ते रहेंगे। ये फैसला हर संघर्षशील इंसान की जीत है।”
जोहन मुमु का बयान:-
जनता के लिये लड़ाई लड़ने वाले लोगो को कितना जूझना पड़ता है यह मुकदमा ने हमे सिखाया जनता के लिये लड़ाई जारी रहेगी
सत्यमेव जयते
यह कहानी सिर्फ दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि उस पूरे समाज की है जो अपनी आवाज़ उठाने से डरता है। यह फैसला उन्हें साहस देता है कि लोकतंत्र में आवाज़ उठाना गुनाह नहीं, बल्कि अधिकार है।
अब जब न्याय मिल चुका है, यह एक नई शुरुआत है — जनता के लिए, संघर्ष के लिए, और उस लोकतंत्र के लिए जिसे जिंदा रखने की जिम्मेदारी हम सब की है।
*सत्यमेव जयते*