डॉ संजय की कलम—
भारत का व्याकरण
कामिनी , कंचन और कृति मनुष्य की स्वाभाविक कमजोरी है । फिर नम्रता , विनम्रता , विनय भाव और भी कई मनुष्य के आभूषण भी है। किंतु विनय तो ठीक पर छल विनय ठीक नहीं। स्वतंत्रता तो ठीक पर स्वछंदता ठीक नहीं। ऐसा लोग कहते हैं और लोग यूं ही कहते हैं , ऐसा मानना ठीक नहीं ।
मनुष्य है तो भाव पक्ष तो है ही ,उसी तरह वस्त्र है , कम वस्त्र है , संक्षिप्त है और अति संक्षिप्त भी है । टेस्ट ड्राइव भी है ,आप जैसा चाहो वैसा ठीक है ,पर सब के लिए ठीक हो आवश्यक नहीं । संविधान ने इसपर कुछ कहा नहीं और कहना भी नहीं चाहिए। पर,कोई तो कहता है ,किसी को तो कहना चाहिए । अब बात तो ऐसी हो गई कि एक नेता जी हुए दिल्ली के ,उनपर आरोप लगा वो जेल गए ,पर उनके तर्क थे और संविधान के बारे बात किया कि मुझे इस्तीफा क्यों देना चाहिए । पर बाकी राजनेताओं ने तो आरोप लगते ही इस्तीफा दिए । कई उदाहरण है , झारखंड भी उसमें है ।
फिर सही क्या है , किसे सही बोला जाए केजरीवाल जी को ? नहीं ,बिल्कुल नहीं।
फिर हम कैसे रहे न रहे ,ये मेरे मामले है , आप कौन ? तो ऐसा भारत में नहीं चलता। और नहीं चलना चाहिए किसी भी सभ्य देश और समाज में ऐसा नहीं चलना चाहिए ।
मेरा ऐसा मानना बिल्कुल नहीं है कि भारत को छोड़ बाकी असभ्य है ।मेरा मानना है कि कोई भी देश हो उसके कुछ मौलिक और पारंपरिक नियम तो होंगे। उनकी भाषा होगी।उनके यहां कुछ प्रचलित शब्द
होंगे , जैसे माता , पिता ,समाज ,भाई बहन , फिर शर्म भी एक शब्द होगा, हया भी होगी , कुल और परंपराएं भी होगी।
कुछ नियम भी होंगे,हर कुछ के यानि जानवरों और मनुष्यों के लिए अलग अलग दृष्टि भी होगी , मसलन सड़क पर हमारे यहां कुत्ते तनोरंजन करते मिल जाते है ।आप कुत्ते के द्वारा सड़क पर जो तनोरंजन करते देखते है ,आप उन्हें टेस्ट ड्राइव भी कह सकते है । लोग इसे स्वाभाविक मानते हैं पर अगर , मनुष्य ऐसा करने लगे तो समाज स्वीकार न करें शायद!
फिर हम एक अलग और श्रेष्ठ समाज में रहते हैं ।
तो भाषा के विकास के साथ व्याकरण की भी आवश्यकता महसूस हुए होंगे और हमारे यहां तो सूत्र रूप में व्याकरण रच दिया गया l आप कितना भी अच्छा बोले और लिखे पर अगर व्याकरण के अनुरूप न बोले तो गड़बड़ है ।
फिर,अभी भी हमारे गांवों में और कुछ छोटे शहरों में बड़े भाई का दोस्त भी बड़ा भाई बन जाता है ।उतना ही सम्मान जितना बड़े भाई का । दोस्त भी अपनी मर्यादा जानता है छोटे भाई बहन भी। महाविद्यालय के दिनों में श्वेत धूम्र सटीका यानी सिगरेट पीते कोई बड़े भाई के दोस्त ने देख लिया तो हालत खराब और यह वाकया अगर विद्यालय स्तर पर हो गई तो पिटाई बड़े भाई के दोस्त द्वारा ही होना तय ।
यह समाज और ये है समाज की खूबसूरती ।
हॉल के दिनों में दो संतो के द्वारा किश्तों में किए जाने वाले तनोरंजन पर जो टिप्पणी की गई ,उसपर बहुत बबेला हुआ ।संतों को भला बुरा कहा गया ।
पर मेरा मानना है कि आप अपने निजी जीवन को सुलभ बनाएं या सुलभ शौचालय ,ये आपकी मर्जी ,पर ये जो संत है ये सनातन समाज के अभिभावक हैं और इन्हें कोई नियुक्त नहीं करता पर ,इन्हें विचार रखने की पूरी स्वतंत्रता है ।समाज इनका आदर करता है और करता रहेगा ।
और एक स्वस्थ समाज और देश का एक व्याकरण होता है ,अगर हमें ठीक रहना है तो व्याकारण का अनुकरण नहीं अनुकीर्तन करना ही होगा ।
—– डॉ संजय
18अगस्त
कृष्ण पक्ष दशमी,सोमवार