Friday, October 17, 2025
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*माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार नेमरा पहुंचे।*

*★ माननीय राज्यपाल ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु स्मृति -शेष शिबू सोरेन जी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।*

*माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार आज माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के रामगढ़, नेमरा स्थित पैतृक आवास पहुंचकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु स्मृति -शेष शिबू सोरेन जी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार ने ईश्वर से दिवंगत शिबू सोरेन जी को अपने श्रीचरणों में स्थान देने,उनकी आत्मा की शांति एवं शोकाकुल परिजनों को इस विकट दुःख को सहन करने का संबल प्रदान करने की प्रार्थना की। माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार ने माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन एवं उनके परिजनों से मुलाकात कर गहरी संवेदना प्रकट की तथा उनका ढांढ़स बंधाते हुए कहा कि दुःख की इस घड़ी में हम सभी उनके साथ हैं।*
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*#Team PRD(CMO)*

*दिशोम गुरुजी का जाना झारखंड के लिए गहरा आघात उनकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं , एक जीवन जो प्रेरणा था, मानो आसमान में खो गया : शाहिद इक़बाल*

*मिट्टी का ऋण कभी खत्म नहीं होता और गुरुजी शिबू सोरेन इस मिट्टी की आवाज थे: *

पाकुड़: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री राज्यसभा सांसद झारखंड के निर्माता दिशोम गुरु श्री शिबू सोरेन के निधन पर झामुमो पूर्व केंद्रीय समिति सदस्य शाहिद इक़बाल ने गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए शाहिद इक़बाल ने कहा कि हम सबों के बीच से गुरुजी का जाना गहरा आघात है। उनके निधन से हुई क्षति का पूर्ति कर पाना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा गुरुजी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी।
अंततः इस लड़ाई में उनकी जीत हुई। आज उन्हीं के दम पर झारखंड राज्य खड़ा है। उनके निधन से देश ने महान क्रांतिकारी नेता खो दिया है। दिशोम गुरु ने लड़कर झारखंड राज्य लिया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना एक जनआंदोलन की उपज थी। उनके नेतृत्व में बड़ी संख्या में नौजवान, आदिवासी, अल्पसंख्यक, किसान, छात्र,छात्राएं इस आंदोलन से जुड़ते गए। साल 2000 में झारखंड अगल राज्य बना तो यह दिशोम गुरुजी की तपस्या का फल था। वह आदिवासी अस्मिता के सबसे सशक्त प्रहरी, पीड़ितों की सबसे मुखर आवाज और मजदूरों के लिए अनथक लड़ने वाले सेनानी थे।
झारखंड में बहुत ही खालीपन का एहसास हो रहा है। मिट्टी का ऋण कभी खत्म नहीं होता और शिबू सोरेन इस मिट्टी की आवाज थे।
दिशोम गुरुजी का निधन से झारखंड को जो क्षति हुई है उनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। ईश्वर अपने चरणों मे उन्हें स्थान दें।

*जन आंदोलन की आग, न्याय की जीत — 28 जुलाई 2025 को समाप्त हुआ 9 वर्षों का संघर्ष* अनन्त

“जनता की आवाज़ बनने का दर्द क्या होता है, यह वही समझ सकता है जो उसके हक़ और हक़ीक़त के लिए सड़कों पर उतरता है, आवाज़ उठाता है, और फिर सिस्टम से टकराता है।”

01 सितंबर 2016 का दिन साहिबगंज जिले के बड़हरवा प्रखंड के इतिहास में एक ऐसा दिन बन गया, जो आने वाले कई वर्षों तक संघर्ष, अन्याय और अंततः न्याय का प्रतीक बन गया। उस दिन, जनसमस्याओं को लेकर दो जनप्रतिनिधि — अनंत तिवारी (जो उस समय भाजपा किसान मोर्चा के साहिबगंज जिला अध्यक्ष थे) और जोहन मुर्मू (तत्कालीन जिला परिषद सदस्य) — के नेतृत्व में एक विशाल जनआंदोलन का आयोजन किया गया था।

जब जनता का सब्र टूटा

बड़हरवा प्रखंड कार्यालय के सामने हजारों की भीड़ जुटी थी। नारे लग रहे थे — पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, और सरकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ। यह कोई राजनीतिक ड्रामा नहीं था, बल्कि आम जनता की पीड़ा का विस्फोट था। लेकिन कहते हैं कि जब आवाज़ें ऊँची होती हैं, तो सत्ता बौखला जाती है।

धरना शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ था, पर जैसे-जैसे प्रशासन की ओर से अनदेखी हुई, लोगों का गुस्सा बढ़ता गया। तत्कालीन बीडीओ सदानंद महतो और अन्य प्रखंड पदाधिकारियों के खिलाफ जनता की नाराजगी इस कदर फूटी कि बेकाबू भीड़ ने कार्यालय का गेट तोड़ दिया और हल्की तोड़फोड़ की घटनाएं घटित हुईं।

हालांकि आंदोलनकारियों — अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू — ने मंच से लगातार शांति बनाए रखने की अपील की थी, फिर भी प्रशासन ने इन्हीं दोनों नेताओं को निशाना बनाया। आंदोलन खत्म होते ही, बड़हरवा थाना कांड संख्या 452/16, जी.आर. केस के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता की संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।

आरोप: आंदोलन नहीं, अपराध?

प्रखंड प्रशासन और कुछ स्थानीय सत्ताधारी तत्वों की “मेहरबानी” से यह मुकदमा तैयार हुआ। आरोप था कि अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू ने सरकारी कार्य में बाधा डाली, तोड़फोड़ की साजिश रची और प्रशासन को जानबूझकर बदनाम किया। यह सब तब जब दोनों नेता जनहित में लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कह रहे थे।

9 साल की पीड़ा — हर तारीख़ एक इम्तिहान

फिर शुरू हुई न्याय की लंबी और थकाऊ यात्रा। बेल की लड़ाई से लेकर हर सुनवाई तक, अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू को न्यायालय के चक्कर लगाने पड़े। हर तारीख, हर गवाही उनके धैर्य और सच्चाई की परीक्षा बन गई। कई बार ऐसा लगा कि क्या सच में इस देश में सत्य की विजय होती है?

लेकिन न उन्होंने हार मानी और न उनकी आवाज़ दबाई जा सकी। मुकदमा चलता रहा, गवाहों की जिरह होती रही, बचाव पक्ष ने हर सच्चाई को बारीकी से अदालत के समक्ष रखा।

प्रदीप सिंह और उनकी टीम — न्याय के रक्षक

इस केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप सिंह और उनके जूनियर देवजीत कुमार ने की। उन्होंने केस को सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि जनहित के आंदोलन की तरह लड़ा। केस की हर बारीकी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने साबित किया कि आंदोलन पूरी तरह लोकतांत्रिक था, और यदि कुछ क्षणों के लिए हालात बिगड़े, तो उसके लिए आंदोलनकारी जिम्मेदार नहीं थे।

फैसला — बाइज्जत बरी

28 जुलाई 2025 को राजमहल न्यायालय के न्यायाधीश श्री रंजन कुमार की अदालत ने दोनों नेताओं — अनंत तिवारी और जोहन मुर्मू — को सभी आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आंदोलन लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे में था, और उसके नेतृत्वकर्ता को साजिश के तहत फँसाया गया।

इस फैसले के साथ न सिर्फ दो निर्दोष व्यक्तियों को न्याय मिला, बल्कि यह भी सिद्ध हुआ कि जनता की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता — न मुकदमों से, न झूठे आरोपों से।

अनंत तिवारी का बयान:

> “हमने कुछ भी गलत नहीं किया था। हमनें सिर्फ जनता की आवाज़ उठाई थी। 9 साल लंबी यह लड़ाई हमें झुका नहीं सकी। हम आज भी उसी तरह जनहित में लड़ते रहेंगे। ये फैसला हर संघर्षशील इंसान की जीत है।”

जोहन मुमु का बयान:-
जनता के लिये लड़ाई लड़ने वाले लोगो को कितना जूझना पड़ता है यह मुकदमा ने हमे सिखाया जनता के लिये लड़ाई जारी रहेगी
सत्यमेव जयते

यह कहानी सिर्फ दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि उस पूरे समाज की है जो अपनी आवाज़ उठाने से डरता है। यह फैसला उन्हें साहस देता है कि लोकतंत्र में आवाज़ उठाना गुनाह नहीं, बल्कि अधिकार है।

अब जब न्याय मिल चुका है, यह एक नई शुरुआत है — जनता के लिए, संघर्ष के लिए, और उस लोकतंत्र के लिए जिसे जिंदा रखने की जिम्मेदारी हम सब की है।

*सत्यमेव जयते*

शिलान्यास के साथ उद्घाटन भी , लेकिन राजनैतिक सीमाओँ के उसपार समाज सेवा का एक बार फिर दिखा वही जुनून , शिशु मंदिर विद्यालय के नवनिर्मित भवन का लुत्फुल हक़ ने किया उद्घाटन।

साहिबगंज जिले के कोटालपोखर में संचालित सरस्वती शिशु मंदिर के नव निर्मित भवन का उद्घाटन पाकुड़ के विख्यात समाजसेवी लुत्फल हक़ ने फीता काटकर किया। समाजसेवी लुत्फल हक के सहयोग से तीन कमरें का वर्ग कक्ष एवं एक कमरे का प्रधानचार्य कार्यालय का निर्माण कराया गया है। उल्लेखनीय है कि सरस्वती शिशु मंदिर पिछले तीस वर्षों से कोटालपोखर में संचालित है। उक्त विद्यालय से सैंकड़ों बच्चों ने शिक्षा ग्रहण कर वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में देश सेवा कर रहे है। परंतु दुर्भाग्य है कि आज तक उक्त विद्यालय में भवन का निर्माण नहीं हो सका था। प्रधानचार्य तुलसी मंडल, भावेश साह, जितेंद्र सिंह, मुनीलाल शर्मा, विकास भगत के अथक प्रयास और समाजसेवी लुत्फल हक के सहयोग से नए भवन की आधारशीला रखी गई थी। एक वर्ष में भवन बनकर तैयार हो गया।वहीं लुत्फल हक ने कहा कि बच्चों के हित के लिए उक्त भवन का रंग रोगन भी कराया जायेगा। ताकि भवन सुंदर दिखे।उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में संचालित यह विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुए, इसके लिए हर संभव सहयोग करता रहेगा। मौके पर उप मुखिया प्रतिनिधि विनोद भगत, तारा पोदो, मदन पांडेय, शंकर साहा, बरहरवा के प्रधानाचार्य प्रमोद आचार्य, गौरव आचार्य आदि मौजूद थे।

सरस्वती शिशु मंदिर का क्या है इतिहास

सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या भारती संगठन के द्वारा संचालित होते हैं। विद्या भारती, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से प्रेरित एक शिक्षण संस्थान है, जो भारत भर में सरस्वती शिशु मंदिर और अन्य शैक्षणिक संस्थानों का संचालन करती है। पहला सरस्वती शिशु मंदिर 1952 में गोरखपुर में स्थापित किया गया था। सरस्वती शिशु मंदिरों का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के साथ-साथ बच्चों में नैतिक और सामाजिक मूल्यों का विकास करना है। यह संगठन भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।

जाली लॉटरी, नॉट और आधार कार्ड छापने के बाद जाली आधार कार्ड पर जमीनों की हेरा फेरी भी एक दिन पाकुड़ को करेगा बदनाम।

पाकुड़ पुलिस ने जाली नोट छापने और चलाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया। मामले की सूचना पुलिस को मिली थी। नवपदस्थापित पुलिस कप्तान की सक्रियता और अनुसंधान पर तकनीकी नज़र ने अनुसंधानक को मदद मिली और नोट छापने वाली अंतरजिला गैंग पकड़ा गया। जाली नोट कबसे छप रहा था , कितने नोट अब तक खपाये गये आदि सवालों पर पुलिस अनुसंधान कर रही होगी , लेकिन रथ मेले के दौरान जाली नोट के साथ पकड़ी गई महिला ने शायद पुलिस का ध्यान इस गम्भीर अपराध की ओर खींचा होगा , नतीजा सामने आ गया।

लेकिन इससे पहले ग्रामीण सहित कई इलाकों में अवैध रूप से आधार कार्ड बनाने के मामले भी आ चुके हैं। पुलिसिया कार्रवाई के साथ प्रशासनिक कार्रवाई भी हुई थी , और प्रज्ञा केंद्रों से आधार कार्ड के काम वापस ले लिये गये थे।
उधर बिहार में मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम चल रहा है। रोज इस पर राजनैतिक बहस पक्ष विपक्ष में चल रहा है। मतदाता पुनरीक्षण में 11 कागज़ात में से किसी एक को प्रस्तुत करने की सूचि चुनाव आयोग ने दी है , लेकिन आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी गई है। बहस में इसे भी मुद्दा या यूँ कहें प्रमुख मुद्दा पुनरीक्षण का विरोध करने वाले बना रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग आधार कार्ड को न मानने पर अड़ा हुआ है। ऐसा क्यूँ ये सोचने पर मुझे मजबूर होना पड़ा। अंदर ही अंदर बहुत सोचा। विरोध करने वाले राजनैतिक दलों और चुनाव आयोग की ज़िद पर मंथन किया , तो बहुत कुछ समझ में आया कि जमीनी हकीकत पर शायद चुनाव आयोग ठीक है। क्योंकि इन दिनों पूरे देश में हजारों विदेशी नागरिक प्रशासन को ऐसे मिले जिनके पास आधार कार्ड थे , लेकिन वे घुसपैठिये निकले। पर ये आधार कार्ड उन्हें कैसे मिलते हैं , इसके कारण ढूँढने की ज़रूरत है।

जाली आधार कार्ड क्या क्या गुल खिला सकते हैं , इसपर गौर और गम्भीर तरीके से अनुसंधान ज़रूरी है।
एक उदाहरण को समझने की ज़रूरत है।
मान लिया जाय कि मैं अगर अपना आधार कार्ड बनाने जाऊँ , तो मेरे फिंगर प्रिंट और रेटिना की रीडिंग लेते ही स्पस्ट हो जाएगा कि मेरा आधार पहले से बना हुआ है।

अब अगर कोई विदेशी घुसपैठिया मेरे ही नाम से आधार कार्ड बनाने गया , तो नाम कमोबेश कुछ स्पेलिंग के अलावे अलग फिंगरप्रिंट और अलग रेटिना के आधार कार्ड बनवाने में सफल हो जाएगा। जैसे मेरा नाम कृपा सिन्धु तिवारी है , और वो कृपासिंधु तिवारी के नाम से आधार आसानी से बना सकता है।

अब जिस समय बिना आधार के ऑफ लाइन जमीन रजिस्ट्रेशन होती थी, उस जमीन को बृहत मिलीभगत से आराम से मेरे नाम की जमीन दूसरे को ऑन लाईन बेच देगा। और हम अनभिज्ञ रह जाएंगे।

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दूसरी बात यह कि मैनें किसी अपनी दूसरी जमीन जो मैनें ख़रीदा है , और मोटेशन के लिए अंचल कार्यालय में आवेदन दिया। मेरे आवेदन को तकनीकी फॉल्ट के नाम पर अस्वीकृत कर , मेरे ही नाम पर अवैध आधार वाले नाम के आदमी का मोटेशन उसी आवेदन नम्बर पर किसी और को विक्री दिखा कर कर दिया जाता है। सवाल पूछने पर ईरर का हवाला दिया जाता है । ऐसा इरर एक नहीं कई दिखता है , तो इसे क्या समझा जा सकता है !

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पाकुड़ जिले में जमीन के घपलों की है अजब गजब कहानी

पहली बात तो एक ओरिजनल आदमी वेवजह परेशान रहा।
दूसरा कि किसी सम्भावित घुसपैठिया को आधार के साथ इस बात का भी प्रमाण उपलब्ध करा दिया गया कि वो यहाँ का मूल निवासी है और अपनी किसी मजबूरी में जमीन बेच दी। जबकि उसको आधार कार्ड केंद्र से रजिस्ट्रेशन कार्यालय तक क्या हुआ कुछ पता नही , बल्कि इन सबके लिए उससे वसूली भी हुई।
वो बेचारा ही बना रहा , साथ ही कई बेचारे बने , लेकिन जमीन सहित कई चारा सरकारी चरवाहा चरा कर गटक गया।
ऐसे उदाहरण सैकड़ों होंगे ।
अब शिविर लगा कर खैर। आज नहीं तो कल जाँच तो होगी। आख़िर झूठ एक दिन उभर कर महकने ही लगता है। इसीलिए ऐसे मामले बिहार में पकड़े जा रहे हैं, और वोटर लिस्ट से नाम कट रहा है, तो हल्ला मचा हुआ है।

सरकारी वरीय अधिकारी करे तो क्या करें , वे सभी जगह और टेबुल पर स्वयं काम तो नहीं कर सकते, लेकिन नीचे कर्मचारी अपने छोटे मोटे स्वार्थ के लिए बड़ी समस्या और अपराध का कारण बना जाते हैं।

जो राज्य और देश के लिए बाद में खतरा भी बन जाते हैं।
पाकुड़ में सैकड़ों उदाहरण ऐसे अनुसंधान में मिल जाएंगे , जिसमें घुसपैठियों का न सिर्फ आधार कार्ड अवैध रूप बना है बल्कि उन्हें उपयोग कर जमीन की हेराफेरी बड़े पैमाने पर हुई है , और उसी हेराफेरी के आधार पर घुसपैठियों को जमीन बेचने के आधार पर आधार कार्ड भी बन जाता है , तथा वे यहाँ के मूल निवासी भी कागजी तौर पर सावित किये जाने का आधार तैयार कर दिया जाता है , फिर उसी के कारण उनका वोटर कार्ड , राशन कार्ड आदि सभी बन जाता है।

सबूत के तौर पर ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं। ऐसे में पाकुड़ का भगवान ही मालिक है और सरकारी कर्मचारी से लेकर वरीय अधिकारि तक जमीन के मालिक बन बैठे हैं। चूँकि सब चीजें उन्हीं कर्मचारियों और अधिकारियों के जिम्मे है , इसलिए इसका खुलासा मुश्किल हो जाता है। और अगर कोई खुलासे का दुस्साहस मेरे तरह करे , तो झूठे आरोप में जेल जाने तथा प्रताड़ित होने या जान गवांने के लिए तैयार रहे।

अच्छा ऐरर पर सवाल उठाते ही उसे गलत तरीके से ठीक भी दिखा दिया जाता है। लेकिन इस डिजिटल युग में सब कुछ रिकवर हो सकता है इसे लोग भूल जाते हैं।
ऐसे कर्मचारियों पर देश की सुरक्षा से खेल करने के लिए गम्भीर जाँच कर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

जो भी हो अभी तो बिहार के लिए हल्ला मचा है , लेकिन जब पाकुड़ का ऐसा मामला कोर्ट तक पहुँचेगा तब क्या होगा ? यह देखना बाँकी है। क्योंकि यहाँ सिर्फ अवैध आधार की बात नहीं है , यहाँ तो ज़मीनों के घोटाले का मामला भी जमीनी हकीकत बन चुका है।

गणपति महोत्सव की तैयारी को लेकर पूजा समिति की बैठक संपन्न।

रेलवे मैदान पाकुड़ में 27 से 30 अगस्त तक मनाया जाएगा गणपति महोत्सव।

अनिकेत बनाए गए समिति के अध्यक्ष।

27 वां गणपति महोत्सव धूमधाम से मनाने हेतु सार्वजनिक गणेश पूजा समिति रेलवे मैदान पाकुड़ की बैठक राणा शुक्ला के अध्यक्षता में पाकुड़ रेलवे स्टेशन परिसर स्थित महावीर मंदिर के सत्संग भवन में आयोजित किया गया।बैठक में प्रमुख रूप से गणेश पूजा के संस्थापक हिसाबी राय,संजय कुमार ओझा,अखिलेश कुमार चौबे,अनिकेत गोस्वामी सहित गणेश पूजा के दर्जनों कार्यकर्ता मौजूद थे। बैठक में 27 वां गणपति महोत्सव को रूप में मनाने को लेकर कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह था।इस वर्ष पूजा 27 अगस्त से प्रारंभ होकर 30 अगस्त तक चलेगी गणपति महोत्सव को सफल बनाने के लिए एक कार्यसमिति बनाई गई,जिसमें अध्यक्ष अनिकेत गोस्वामी कार्यकारी अध्यक्ष मुन्ना रविदास,उपाध्यक्ष नितिन कुमार मंडल, अमित साहा,सचिव अजित मंडल,संयुक्त सचिव संजय कुमार राय,सह सचिव आदित्य सिंह,निर्भय सिंह कोषाध्यक्ष तन्मय पोद्दार एवं व्यवस्था प्रमुख अंकित मंडल को बनाया गया, वहीं पूजा कार्यसमिति सदस्य मनीष कुमार सिंह,रतुल दे,भक्ति पूजन प्रसाद, संजय मंडल,ओम प्रकाश नाथ, विशाल साहा,अमन भगत, अंशु राज,जितेश रजक,बूबाई रजक, अंकित शर्मा,बिट्टू राय,राका कुमार राय,रणजीत राम,ज्वाला सिंह, रौशन अग्रवाल, कृष्णा घोष तथा मार्गदर्शक मंडली में तीर्था शंकर शुक्ला,मोनी सिंह,कुंवर राय,अविनाश पंडित,जवाहर सिंह,अजय राय,कैलाश मध्यान,सुशील साहा,लाल्टू भौमिक,विजय कुमार राय को बनाया गया।आगे अध्यक्ष अनिकेत गोस्वामी ने बताया कि 27 वें गणपति महोत्सव में गणपति बप्पा की चार दिवसीय पूजनोत्सव का आयोजन किया जाएगा।वहीं विगत के वर्षों से पूजा मंडप,विद्युत व साज सज्जा इस वर्ष और बड़े पैमाने पर एवं मनमोहक बनवाई जा रही है। 26 अगस्त को संध्या प्रहर कपाट खुलने के साथ ही बाबा का आमंत्रण सहित पूजा प्रारंभ होगी। 27 अगस्त को प्रथम दिन कलश स्थापना व गणपति बप्पा की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा आरंभ होगी संध्या आरती के पश्चात संध्या भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा।द्वितीय दिन 28 अगस्त को सुबह पूजा व संध्या आरती के उपरांत बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम नृत्य प्रतियोगिता का विधिवत उद्घाटन कार्यक्रम को प्रारंभ किया जाएगा, 29 अगस्त को सुबह पूजा संध्या आरती के उपरांत सांस्कृतिक कार्यक्रम व नित्य प्रतियोगिता का समापन व पुरस्कार वितरण किया जाएगा वही 30 अगस्त अंतिम दिन को पूजा के उपरांत घट विसर्जन वह दोपहर में डांडिया और मटका फोड़ के उपरांत संध्या समय प्रतिमा विर्सजन किया जाएगा। इस वर्ष समिति के द्वारा निर्णय लिया गया की नित्य प्रतियोगिता के अलावे चित्रकला एवं अन्य विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करेगी।
बैठक में सुशील शाह शंकर लाल शाह कैलाश मध्यान अविनाश पंडित मोनी सिंह रणजीत राम अमर कुमार मल्होत्रा रामकुमार यादव केशव मंडल विकास शाह राजा कुमार राय जितेश रजक अंकित शर्मा अंकित मंडल अभिषेक पासवान बुबाई रजक अभिषेक शाह ओमप्रकाश नाथ भक्ति कुमार बिट्टू राय मोहम्मद शब्बीर हुसैन अजय ठाकुर युवराज उपाध्याय अंशु ठाकुर रतुल दे संजय मंडल अमन भगत ज्वाला सिंह रोशन अग्रवाल कृष्ण घोष आदि मौजूद थे।

सत्य सनातन संस्था ने श्रावण के पहले सोमवार पर शिव भक्तों के बीच किया निशुल्क पूजन सामग्री का वितरण

पाकुड़ : पवित्र श्रावण माह के पहले सोमवार को सत्य सनातन संस्था द्वारा जिले के विभिन्न शिवालयों में निशुल्क सेवा शिविर लगाया गया। संस्था के अध्यक्ष रंजीत कुमार चौबे उर्फ रंजीत राणा के निर्देश पर भगतपाड़ा स्थित शिव मंदिर, कूड़ापाड़ा स्थित नागेश्वरनाथ शिव मंदिर, मुख्य सड़क स्थित दूधनाथ शिव मंदिर एवं रेलवे कॉलोनी शिव मंदिर में बेलपत्र, गंगाजल, कच्चा दूध तथा पुष्प का वितरण किया गया।

संस्था के संपर्क प्रमुख पुरोहित रोहित दास की देखरेख में आयोजित इस सेवा शिविर में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने लाभ लिया। संस्था पिछले छह वर्षों से श्रावण माह में इस प्रकार के निशुल्क शिविर का आयोजन कर रही है, ताकि किसी भी शिव भक्त को पूजन सामग्री के अभाव में कठिनाई न हो।

भगतपाड़ा शिव मंदिर में जिला अध्यक्ष हर्ष भगत, संयुक्त सचिव अजय भगत, रवि भगत, रतन साहा, नागेश्वरनाथ मंदिर कूड़ापाड़ा में उपाध्यक्ष गौतम कुमार, मिंटू गिरी तथा दूधनाथ मंदिर और रेलवे कॉलोनी स्थित शिवालय में पुरोहित रोहित दास व उनके सहयोगियों ने सेवा कार्य किया।

इस अवसर पर अन्नपूर्णा कालोनी के छोटे-छोटे भक्त – आयुष कुमार, शिवम सिंह, राजा कुमार, जय तिवारी और विशाल सिंह ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्था ने बताया कि श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार को इसी तरह का सेवा शिविर लगाकर भक्तों की सेवा की जाएगी।

*”मेरा तो कुछ भी नहीं”….,गीत पर धूम मचा रहे है पाकुड़ के रंजीत राणा*

पाकुड़ जैसे छोटे जगह में मेरा तो कुछ भी नहीं गीत पर शहर के अन्नपूर्णा कॉलनी निवासी सत्य सनातन संस्था के अध्यक्ष रंजीत चौबे उर्फ रंजीत राणा सोशल मीडिया में खूब धूम मचा रहे है। सावन के पावन अवसर पर उनके इस गीत को शिव भक्त काफी पंसद कर रहे है।
इस गीत को सोशल मीडिया में काफी प्यार मिल रहा है। पाकुड़ नहीं बल्कि संथाल के अन्य जिलों में भी शिव भक्त गाने को खूब पंसद कर रहे है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म में रील बनाने के लिए लोग भी इस गाने को पंसद कर रहे है। सिंगर रंजीत राणा ने कहा की मेरा शुरू से संगीत के प्रति प्रेम रहा है। पाकुड़ रेलवे स्टेशन के हनुमान मंदिर व अन्नपूर्णा कॉलनी स्थित काली मंदिर में आयोजित भजन की प्रस्तुति करते थे। रंजीत राणा शिव भगवान सहित अन्य देवी-देवताओं के संगीत पर भक्तों को झूमने को मजबूर कर देते है। उन्होंने कहा कि मुझे बड़ा सिंगर बनने का कोई शोक नहीं है। मेरा एक मात्र मकसद है सनातनी भाई-बहन के बीच अपने संस्कृति व भक्ति को बचाये रखना है। इस उद्देश्य के साथ भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा से भक्ति जागरण का गाना तैयार कर सनातनी के बीच रखने का प्रयास करते है। अभी तक यह मेरा जीवन का यह पांचवां संगीत है। पूर्व के संगीत में भी लोगों का भरपूर सहयोग और प्यार मिला था।
आप सभी से अनुरोध है कि अगर कुछ सावन के पावन माह में हमारे गाए हुए भजन को सुनना चाहे तो हमारा यूट्यूब चैनल एस आर एंटरटेनमेंट। में जाकर गाने को सर्च करके उसे देख सकते हैं।

पाकुड़ में खाश जगह बिना किसी डर के बिकता है सरकारी दर पर खरीदे तेल अवैध रूप से ज़्यादा दर पर , अंधेर पर होता है अंधेर।

पिछले दिनों दो हड़ताल (बंद ) से हम रुबरु हुए। इलेक्शन कमीशन के विरुद्ध बिहार बंद और पाकुड़ में भाड़ा बढ़ाने को लेकर कम्पनियों के विरुद्ध डम्फर मालिकों के चक्का बंद। बिहार बंद के कारणों पर तो सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई , लेकिन पाकुड़ में डम्फर मालिकों की सुनवाई फ़िलवक्त टल गई। एक बात जो ग़ज़ब की खुलकर पाकुड़ में सामने आई , कि सरकारी रेट पर खरीदी गई तेल डम्फर मालिकों को ज्यादा रेट पर दी जाती है , और इसपर खुलकर डम्फर मालिक न तो बोल सकते और न ही हम जैसे पत्रकार लिख सकते। अगर ऐसा हुआ तो खैर नहीं।
कहीं कोई संवेदना नहीं , और न ही कोई इंसानियत की कोई मिसाल।
आज एक मित्र के वॉल पर एक कहानी पढ़ी। सारांश था प्रकृति बोलती है , सिर्फ़ उसे सुनने की संवेदना होनी चाहिए और अनुरूप प्रतिक्रिया की मंशा। लेकिन यहाँ पाकुड़ में इसका घोर अभाव है।
खैर पहले आप भी उस कहानी से रुबरु हो जाइये। मैं हूबहू उसे आपके लिए यहाँ परोस रहा हूँ।

2009 में, मशहूर इतालवी फ्रीडाइवर एन्ज़ो मायोर्का अपनी बेटी रॉसाना के साथ सायराक्यूज़ के तट पर गोता लगा रहे थे, जब कुछ असाधारण घटित हुआ।

जैसे ही वे नीले समुद्र में नीचे जा रहे थे, एन्ज़ो को अपनी पीठ पर एक हल्का सा धक्का महसूस हुआ। जब उन्होंने पलटकर देखा, तो सामने एक डॉल्फ़िन थी — लेकिन वह खेलने नहीं आई थी, बल्कि मदद माँग रही थी।

वह डॉल्फ़िन नीचे की ओर तैर गई, और एन्ज़ो उसके पीछे-पीछे चले गए। करीब 15 मीटर की गहराई पर, उन्होंने देखा कि एक दूसरी डॉल्फ़िन एक छोड़े हुए मछली पकड़ने के जाल में फँसी हुई है। बिना कोई देरी किए, एन्ज़ो ने अपनी बेटी से चाकू माँगा और सावधानीपूर्वक उस जाल को काटकर डॉल्फ़िन को आज़ाद कर दिया।

जैसे ही वह डॉल्फ़िन आज़ाद हुई, उसने एक ऐसी आवाज़ निकाली जिसे एन्ज़ो ने बाद में “लगभग इंसानी चीख़” की तरह बताया।

जब डॉल्फ़िन सतह पर पहुँची, तो पता चला कि वह एक गर्भवती मादा थी — और कुछ ही पलों में उसने खुले समुद्र में बच्चे को जन्म दे दिया।

वह नर डॉल्फ़िन जो साथ था, उस दृश्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, फिर धीरे से एन्ज़ो के पास आया, अपनी नाक से उनके गाल को छुआ — जैसे एक चुंबन — और फिर अपने नए परिवार के साथ गहराइयों में विलीन हो गया।

बाद में एन्ज़ो ने कहा:

“जब तक इंसान प्रकृति की इज़्ज़त करना और उससे संवाद करना नहीं सीखता, वह इस धरती पर अपने असली स्थान को कभी नहीं समझ पाएगा।”

यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रकृति बोलती है — बस ज़रूरत है उसे सुनने की।🙏🏽

कैसी लगी ? आशा है अच्छी लगी होगी। लेकिन यहाँ डम्फर मालिक सभी सिर्फ़ एक जाल में नहीं , बल्कि किश्तों और मेंटेनेंस तथा कोयला चोरी सहित समय की मार के कारण कम बहुत कम त्रिपों के जाल में भी फँसे हैं , लेकिन उनकी चीत्कार और मौन कराह किसी को नहीं दिखती। यहाँ ” एन्जो ” की मानसिकता नहीं दिखती , और नहीं दिखती सम्वेदना की झलक। वरना क्या ऐसी मानसिकता कम सरकारी दर पर तेल खरीद कर अवैध रूप से ज़्यादा दर पर बेचकर आपराधिक कुकृत्य को बिना किसी संवेधानिक डर के अनवरत जारी रखती ?
और डरे भी तो किससे ! ” जब साईंयां ही कोतवाल हो ” तो डर कैसा ? # @ED और @CBI वाले भैया आप पर ही एक अंतिम आशा है।

पूर्व रेलवे महाप्रबंधक का पाकुड़ दौरा, किया बृक्षारोपण।

पूर्व रेलवे के महाप्रबंधक मिलिंद देउस्कर कर अपने एक दिवसीय निरीक्षण कार्यक्रम के तहत अपने लिए समय पर विशेष निरीक्षण यान से पाकुड़ पहुंचे।उनके साथ हावड़ा मंडल के रेल प्रबंधक संजीव कुमार उप महाप्रबंधक वेद प्रकाश तथा मुख्य परिचालन प्रबंधक पूर्व रेलवे सौमित्रो विश्वास कोलकाता सहित हावड़ा मंडल एवं क्षेत्रीय रेल मुख्यालय कोलकाता के सभी प्रमुख का अधिकारीगण मौजूद थे।
पाकुड़ आगमन पर ईस्टर्न जोनल रेलवे पैसेंजर्स एसोसिएशन हावड़ा मंडल के अध्यक्ष हिसाबी राय नेतृत्व में महाप्रबंधक पूर्व कोलकाता तथा मंडल रेल प्रबंधक पूर्व रेलवे हावड़ा को स्मृति चिन्ह एवं अंग वस्त्र प्रदान कर तथा पुष्प कुछ देकर उनका जोरदार स्वागत किया गया, स्वागत करने में ईजरप्पा के सचिव राणा शुक्ला निवर्तमान नगर परिषद अध्यक्ष सम्पा साहा,सह सचिव अनिकेत गोस्वामी,सामाजिक कार्यकर्ता शिलादित्य मुखर्जी,सुशील साहा मौजूद थे।तदोपरांत महाप्रबंधक द्वारा रेलवे स्टेशन परिसर स्थित बगीचा में एक पेड़ मां के नाम कार्यक्रम के तहत वृक्षारोपण किया, उसके बाद उनके द्वारा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत रेलवे स्टेशन परिसर का निरीक्षण किया।