Thursday, October 23, 2025
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चेम्बर के सचिव संजीव कुमार खत्री ने माँगी पटना और दिल्ली के लिए सीधी रेल सेवा

देश के सबसे पुराने लूप रेल लाइनों में से एक जिसपर पाकुड़ स्टेशन स्थित है, रेल द्वारा हमेशा से उपेक्षित रहा है। हावड़ा रेल डिवीजन का कमाऊ स्टेशन रहने के बाद भी आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहाँ से गुजरने वाली कई ट्रेनों का ठहराव तक पाकुड़ जिला मुख्यालय के स्टेशन पर नहीं है। इस लूप लाइन पर स्थित झारखंड के पाकुड़ जिला मुख्यालय सिंघारसी एयरफोर्स स्टेशन के लिए भी एकमात्र महत्वपूर्ण स्टेशन है, बावजूद इसके यहाँ से सीधे पटना और दिल्ली के लिए कोई रेल सेवा नहीं रहना दुखद और आश्चर्यजनक है।
लगभग एक शताब्दी से पत्थर और पैसेंजर ढो कर पाकुड़ ने रेलवे को खरबों दीये हैं, अब तो एक दशक से यहाँ का कोयला भी रेल को कमाई नहीं मोटी कमाई दे रहा है।लेकिन रेल ने सुविधाओं के नाम पर काफ़ी कंजूसी बरती है।
यहाँ के चेम्बर ऑफ कॉमर्स स्थानीय अधिकारी ने X पर PMO से पटना और दिल्ली के लिए एक सीधी ट्रेन की माँग रखी है।यहाँ के विभिन्न संगठनों, संस्थाओँ और पार्टियों ने समय समय पर इस माँग को रेल के समर्थ ऑथरिटी के सामने रखी है, लेकिन उसे हमेशा अनसुनी रखा गया।
यहाँ के लोग लगातार उपेक्षित रहने के कारण किसी भी सरकार के रेल मंत्रालय से कभी सन्तुष्ट नहीं रहे। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी शायद इसके लिए जिम्मेदार रहा हो।
अब तो यहाँ लोग यह कहने लगे हैं कि पाकुड़ – गोड्डा रेल लाइन बनने के बाद ही शायद पाकुड़ के लोगों को पटना और दिल्ली के लिए सीधी रेल सेवा मिल सके , ऐसा क्यूँ ये संथालपरगना के लोग बेहतर समझ रहे होंगे।
खैर जो भी हो पाकुड़ रेल के द्वारा हमेशा से उपेक्षित रहा है, जो चिंता का विषय है लेकिन रेल मंत्रालय के लिए जरूर चिंतन का भी।

ज़िंदगी पर भारी पड़ते साल के कुछ महीने खुलकर रोने भी नहीं देतीं

एक व्यंग का प्रयास जो हक़ीक़त है।

फरवरी मार्च और अप्रैल का महीना सरकार के विभाग और जिम्मेदारियां इतनी बेरहम हो जाती हैं कि हमें जीने नही देती।
इन्ही दिनों बच्चों की परीक्षाएं
टेक्स भरने के लिए नोटिशें
नगरपालिका ,बिजली विभाग , बैंक जैसे सभी बेरहमों के प्रेम पत्र और न जाने क्या क्या !
हे भगवान फिर बच्चों का रिएडमिशन, किताबें ड्रेस
सच में जीने पर भी सोचना पड़ जाता है
लेकिन सरकारें इन विषयों पर क्यों नही सोचती ?
मैं ये नही कहता कि सब माफ़ कर दो लेकिन सोचो यार
किश्तों में मारो
ये हक़ है आपको कि आप चाहे जो करें
मगर क़त्ल भी करें तो जरा प्यार से
खाश कर हम जैसे लोगों के लिए बड़ी समस्या है सरकार
क्योंकि ठहरे मुफ़सील पत्रकार और स्वाभिमानी बनने के ढोंग में विज्ञापन भी नही उठा पाते, अख़बार और टी भी वालों के कोर्ट पेंट , ए सी , बंगला, ठाट बाट सब हमारे खून पर ही चलते हैं । किसी तरह पमरिया , बन्दी चारण के तर्ज़ पर अपना जीवन बसर करते हैं , ताकि हमारे मालिकों को खून मिल सके।
और हाँ मेरा पारिवारिक बैकग्राउंड भी ऐसा है, कि अगर कहीं नॉकरी ….पार्ट या फूल टाइम जॉब भी मांगने जाते हैं, तो कोई विस्वास ही नही करता … हंस कर ठहाकों के साथ प्रेम से चाय वाय पिलाते हुए ये कह कर टाल जाते हैं कि आपको और नोकरी मज़ाक मत कीजिये साहब , देश विदेश ……………..
( आप क्या और किस वर्तमान परिस्थितियों में हैं से किसी का परिचय नही होता , आपके पिता क्या थे , आपके भाई बन्धु , सम्बंधियों पर ही लोग आपका मूल्यांकन करते हैं। ये कोई नहीं समझता कि कोई कौन क्या है, क्या था से सिर्फ़ और सिर्फ़ आपकी एक पहचान भर बनती है , आपके आर्थिक मूल्यांकन से इसका कोई सम्बंध नही होता। )
खैर टाल जाते हैं ,अब उनको कैसे समझाये कि हमको तो यही हमी होने ने मारा है
कभी बेबशी ने मारा
कभी बेकशी ने मारा
किस किस का नाम लूँ
मुझे हर किसी में मारा
बस सरकार और हालात से विनम्र प्रार्थना है कि हम जैसे बीच में लटके न अमीर न गरीब बन सके लोगों को जरा किश्तों में मारें तो बड़ी कृपा होगी।
मिट्टी की दीवारों के पीछे सौंधी सुगंध मिलती है, लेकिन हमारे जैसे बेरोजगार कलमकारों के बपौती पक्के मकानों की दीवारों की आड़ में एक ख़ामोश सिसकियाँ दबी पड़ी मिलेंगी , जो चाह कर भी आवाज़ नहीं करती।

मेरे एक पुलिस वाले कवि मित्र की कुछ पन्तियाँ ऐसे में मुझे याद आ जाती है —
” आसमान की ऊँचाइयों की क्या बात करें हम,
पेट की गहराइयों में खो गया है आदमी ”
हम जैसे आदमियों के बारे में सरकार कुछ आदमियत दिखाते हुए ईएमआई तय कर दे हमारी समस्याओं का।
क्योंकि थोक में एकमुश्त समस्याएं रस्सी और ज़हर की पुड़िया ढूँढने को बेबस करती है , लेकिन मंगहाई की डायन ऐसी बेदर्दी दिखाती है कि …..
खैर क्या किश्तों में हम नही दुहे या मारे जा सकते ?
नहीं बस यूँ बस पूछ रहा था , ऐसे ज़हर और रस्सी का पैसा बचाकर आज मैंनें एक किश्त चुका दी है जिम्मेदारी का 😊

अवैध पत्थर परिवहन के जंगल मे हैं कई सक्रिय “टार्ज़न”।

एक फ़िल्म आई थी , “टार्ज़न” आप सभी ने देखी होंगी। टार्ज़न आदमी का बच्चा होने के बाद भी जंगल मे जानवरों के साथ पला बढ़ा। शेर से भी टार्ज़न नहीं डरता था। उसके साथ भी वह लुका-छिपी खेल जाता था।
झारखंड के साहेबगंज जिला के पत्थर और परिवहन के जंगल मे भी ऐसा ही अनेको टार्ज़न (ये किसी का नाम नही, एक बलशाली जंगली आदमी की परिकल्पना का द्योतक है) है , जो ED जैसे शेर से भी नहीं डरता , और एक ही परिवहन चलान पर कई बार पत्थर ढो डालता है। ऐसे में सरकारी राजस्व को चुना लगाया जाता है। पाकुड़ जिले में भी चेक पोष्ट पर गड़बड़ियाँ होतीं हैं, लेकिन जिले के मुखिया के कड़े रुख़ के कारण इसपर थोड़ा अंकुश है, लेकिन पाकुड़ सीमा क्षेत्र से उसपार साहेबगंज की ओर झाँकने पर चलान को चलता कर एक ही चलान पर कई ट्रिप पत्थर ढोने वाले सक्रिय दिखते हैं।
Puja singhal मामले के बाद सबसे ज़्यादा छापे और करवाई ED ने साहेबगंज में ही की , बावजूद इसके पाकुड़ से लगे सीमाई इलाके के साहेबगंज जिले के चेकनाकों पर चालानों की इंट्री पहली खेप में नहीं की जाती , दूसरे , तीसरे या फिर चौथे ट्रिप में इंट्री की जाती है। इसकी गवाही चालानों के कटने और इंट्री के समय के मिलान देता है।
पत्थर के अवैध परिवहन पर इस पेज को जब मैं लिख रहा था तो साहेबगंज के कोटालपोखर थाना में 39 लोगों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया गया। इस विषय में बताया गया कि एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर अधिकारियों और पुलिस की मुभमेंट की ट्रेसिंग शेयर कर अवैध परिवहन किया जाता था। पुलिस ने इस मामले को खंगालना शुरू कर दिया है।
लेकिन सोचने की बात है कि अवैध पत्थर परिवहन के जंगलों के टार्जनों के हिम्मत का अंदाजा लगाया जा सकता है कि, जिस मामले पर ED जैसी केंद्रीय एजेंसी जाँच कर रही है, उस अवैध पर ऐसे लोग कैसे इतनी हिम्मत कर पाते हैं !
ऐसे लोगों के लिए सरकार और प्रशासन बदनाम होते हैं। जबकि कानूनन सभी व्यवस्था है कि लोग ईमानदारी से अपना व्यापार कानून के दायरे में कर सकें , लेकिन पैसों की भूख अगर किसी मे बेसुमार पैदा हो जाये और वो कुछ भी करने के लिए तैयार रहे तो कोई क्या करे ?
फ़िल्वक पूरा इलाका हतप्रभ है कि सबकुछ छोड़कर जाने के लिए आख़िर और और-और की भूख इन अवैध के “टार्जनों” को कहाँ तक ले जाएगा !

समय , समाज और परिस्थियाँ बदलने के साथ कुछ बोझ बनते परम्पराओं पर होनी चाहिए समीक्षा

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समाज में परम्पराएं अपनी एक अलग महत्व रखतीं हैं। लेकिन कुछ परम्पराएं बोझ बन पीढ़ियों को बोझिल कर जातीं हैं, जिसे निभा पाना संभव नहीं हो पाता, और कई तरह की समस्याएं खड़ी होतीं हैं। यहाँ तक कि कई रिश्तों में दूरियाँ और खटास पैदा कर देतीं हैं। मैं अभी अपनी आपबीती बताना चाहूँगा। हो सकता है आप मेरी बातों से सहमत न हों , लेकिन हाशिये पर खड़े होकर अगर साक्षी भाव से देखेंगे और समझने का प्रयास करेंगे तो शायद सहमत भी हो जाएं।
झारखंड के पाकुड़ में एक परंपरा रही है कि अगर आपके यहाँ शादी ब्याह जैसा कोई आयोजन है , तो आप आमंत्रण पत्र पहले ही क्यूँ न बाँट आएं , आयोजन के दिन मौखिक आमंत्रण पुनः भिजवाना होगा। ऐसा नहीं करने पर पहले के आमंत्रण पत्र निष्क्रिय हो जाते हैं और आमंत्रित परिवार का कोई भी सदस्य आपके यहाँ आयोजन में नहीं आएगा। हाँलाकि ये परम्परा यहाँ के मूल निवासियों पर लागू होता है। कालांतर में बाहर से आकर बसे परिवारों के लिए आमंत्रण पत्र ही काफ़ी होता है।
पाकुड़ पहले एक छोटा सा क़स्बाई नगर था , या आप यूँ कह लें गाँव था। समाज में सहयोगी युवाओं की भी कमी नहीं थी , तथा परिवार भी संयुक्त एवं पर्याप्त पुरुषों की संख्या वाले होते थे। नतीजन आमंत्रण पत्र के बाद भी आयोजन वाले दिन मेन पावर के कारण मौखिक आमंत्रण भेजवाने में परेशानी नहीं होती थी ।
लेकिन अब वो छोटा सा पाकुड़ बड़ा सा जिला मुख्यालय हो गया है। संयुक्त परिवार भी अब पहले जैसे नहीं रह गए। समाज के युवाओं में बिभिन्न प्रकार के भटकाव उनके सहयोगी स्वभाव को भी निगल चुका है।
ऐसे में मैंनें स्वयं अहसासा कि ये परम्परा अब एक बोझ सरीखा हो गया है।
पिछले वर्ष मेरी बेटी की शादी में हुआ यूँ कि मेरे एक अभिन्न मित्र जो मेरे वक़्त बेवक़्त खड़ा रहता था, (और मैं भी अपनी ओर से ऐसा ही प्रयास करता था,) के घर स्वयं मेरी पत्नी ने आमंत्रण पत्र पहुँचा कर ये आग्रह किया कि इस आमंत्रण पत्र को ही महत्व दें। विवाह के दिन कोई मौखिक कहने न आ पाए , तो आज ही मैं मौखिक भी आपके परिवार को आमंत्रित कर रही हूँ।
मेरा मित्र हर दिन मेरे घर आकर विवाह की तैयारियों को देखता और कमी बेसी पर सलाह मशवरा भी देता रहता।
विवाह के दिन मेरे बेटे और भाई से भूल हो गई और उनके घर मौखिक आमंत्रण नहीं पड़ा। इधर मैं बेटी का बाप होने के नाते , और गोधूलि लग्न के कारण 4 बजे ही बारात दरवाजे पर आ जाने से आमंत्रण के विषय में पूछताछ नहीं कर सका, और मेरे मित्र सहित उसके परिवार से कोई नहीं आया।
मेरे मित्र से मैं काफ़ी नाराज़ हुआ। कई मौकों पर परिस्थितिवश इस वर्ष भर में मैंनें उससे सार्वजनिक रूप से दुर्व्यवहार भी किया। वर्ष बीतने के बाद मुझे सभी बातों का पता चला।
लेकिन एक परंपरा के कारण जीवंत रिश्ता दम तोड़ चुका था।
ऐसी परम्पराओं से अब हमें तौबा करनी चाहिए।
एक गरीब बेटी का बाप विवाह वाले दिन व्यवस्थाओं में एक रिश्ता जोड़ने की कयावद में रहे कि किसी दशकों के रिश्ते को परम्परा की भेंट चढ़ते देखे !
एक बार ऐसी परम्पराओं पर समाज समीक्षा करे , ये निवेदन होगा। कृपया एक बार सोचिए न , जिंदगी और ज़िम्मेदारियाँ बहुत कठिन हो गया है भाई इन दिनों🙏🏼

करतूतें कराती सम्मानित और शर्मसार भी

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अमिताभ बच्चन की एक फ़िल्म थी “शराबी”। उसमें कुछ गुंडों की पिटाई के बाद एक डायलॉग अमिताभ कहते थे “एक आप लोग हैं और एक वे थे। आप सबने इस फ़िल्म को देखा ही होगा।
इन दिनों टीभी ऑन करते ही मुझे वो डायलॉग याद आ जाता है। बंगाल के सन्देशखाली के शाहजहां की चर्चा आम है । उनकी करतूतों ने न सिर्फ बंगाल बल्कि पूरे देश को शर्मसार किया है। ड्राइवर और सब्जी बेचने वाले शाहजहां राजनीति में आने के बाद न सिर्फ इस क़दर अमीर बन गया कि ED के रडार पर आ गया, बल्कि उनके करतूतों के पन्ने उलटने लगे , और की ऐसी कहानियां सामने आने लगीं कि सभी चैनलों पर बहस जारी है। लोग छी छी कर रहे हैं।
इधर घनघोर गरीबी से जूझते अपने मेहनत से सफ़ल हुए एक व्यवसायी इसपार झारखंड में प्रतिदिन 300 गरीबों को खाना खिला रहे हैं। मोटरसाइकिल रखने की क्षमता रखनेवाले सवारों में जागरूकता लाने के लिए हेलमेट बाँट रहे हैं। कड़कती ठंड में कम्बल , टोपी बाँटने के साथ फरियादियों की सहायता में हर वक़्त हाज़िर उन्होंने कोरोना और उसके बाद भी हजारों परिवार को राशन उपलब्ध कराकर भुखमरी के कगार से बाहर निकाला।
अपने समाजसेवी कर्मो के कारण देश विदेश में सम्मानित वो समाज के लिए एक आदर्श और सम्मान बन गये हैं।
गरीबी की गलियों से निकले वो अपनी बदली स्थिति को सेवा की दिशा देकर पूरे समाज बिरादरी और देश राज्य के लिए सम्मान का विषय बन गये हैं , वही सन्देशखाली के शाहजहां ने पूरे देश को शर्मसार करने का काम किया है।
हाँलाकि दोनों की तुलना किसी भी कीमत पर नहीं की जा सकती, ( इसलिए मैं उनका नाम नहीं लिख रहा ) लेकिन वो कहते हैं कि पद, प्रतिष्ठा , पैसा रिवॉल्वर और शराब सभी को हजम नहीँ होता।
ठीक उसी तरह गरीबी को मात देकर वो जहाँ मसीहा सावित हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सन्देशखाली के साथ पूरे देश को शाहजहां ने सिसकियों में धकेल दिया है।
इससे ये सावित हो जाता है कि ईश्वर ने अगर आपको एक ईंट भी दिया है तो आपके कंस्ट्रक्टिव विचार दीवाल खड़ी करने में सक्षम होगा , और डिस्ट्रक्शन के विचार किसी के सर फोड़ने को ईंट प्रेरित करेगा।

पाकुड़ के अपनेपन का ताना बाना कहीं खो गया है, भागते दौड़ते शहर की सड़कों की भीड़ में

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अपनी संस्कृति से पहले पहचाने जाने वाले लोग पाकुड़ शहर में अब सड़क पार करना टफ टास्क है, जबकि यादों के झरोखे के उसपार झाँकने पर ये नज़ारा इतना मुश्किल नहीं था। लोग और गाड़ियाँ सब सलीक़े से चलते थे।

अब आवारा लहराते मोटरसाइकिल और रफ़्तार को चुनौती देती गाड़ियाँ किसी अनहोनी को हमेशा मौन निमंत्रण दे रहा है। खेती खलिहानी के लिए बने ट्रैक्टरों की तो अब पूछिये ही मत। बीते कुछ वर्षों के रिकॉर्ड में झाँकिये तो दुर्घटनाओं की फेहरिस्त मिलेगी। जबकि 2-3 दशक पहले कोई दुर्घटना महीनों चर्चा का विषय बनता था।

पाकुड़ की सड़कों पर आया ये बदलाव गलियों मुहल्लों में भी एक उच्चस्तरीय संस्कृति के बदलाव की कहानी कहता नज़र आता है। जात पात और सम्प्रदा य से इतर पूरा पाकुड़ एक बड़ा सा आँगन और एक परिवार सा लगता था। उनदिनों स्कूल जाने के दौरान महल्ले के किसी भी आँगन में रसोई बन गई होती तो पूरे महल्ले का कोई बच्चा बिना पेटभर खाए विद्यालय नहीं जाता था।

मेरे बचपन की गलियों में ये यादें एकदम ताज़ी हो उठतीं हैं, जब विद्यालय जाने के समय गर्म चावल, आलू का चोखा और दाल के साथ एक चम्मच देशी घी सामने परोसा हुआ मिल जाता था। अपने घर में उस समय चूल्हा जला हो या नहीं, लेकिन पता नहीं कौन सा सूचनातंत्र काम करता था, कि पड़ोस के आँगन से स्कूली बच्चों के लिए परोसी हुई थाली हाजिरी बजा जाती। हम भी ऐसी थालियां पड़ोस के आँगन में जाते अक्सर देखते थे।

किसी के यहाँ वक़्त बेवक़्त कोई मेहमान आ जाये तो दाल चावल, रोटी के मूल वेतन के साथ बोनस के रूप में मुहल्ले भर की रसोइयों की सौंधी सुगंध लिए सब्जियों की गिनती मुश्किल हो जातीं थीं।

वो कहते हैं न, कि पहले पड़ोसी परिवार सा महसूस होता था, आज तो परिवार कब पड़ोसी बन जाय कहना मुश्किल है। मैंनें दोनों चीज़ें अहसासा है।

एक क़स्बाई नगर पाकुड़ बंगाल की संस्कृति को जीता हुआ अविभाजित बिहार और अब झारखंड के नाम को जीता है। इस शहर की संस्कृति नज़रुल और रविंद्र संगीत को गुनगुनाता अपनी समृद्ध संस्कृति को जीता था। पूरा नगर परिवार सा था, लेकिन आज के पाकुड़ में हम अपने ही शहर में बेगाने से नज़र आते हैं।

अभी भी यहाँ की पीढ़ियाँ जो उस वक़्त को किसी न किसी तरह छू कर गुजरा है, अपनेपन के उसी महक को अहसासता है, लेकिन भागते दौड़ते शहर की सड़कों पर भीड़ में वो अपनापन अब कहीं खो सा गया है।

राहुल को न देख पाने की रही बेचैनी

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राहुल गांधी की न्याय यात्रा बंगाल से झारखंड पाकुड़ के रास्ते शुक्रवार को आया। दोपहर से ही राहुल के दीदार के लिए लोगों की भीड़ रास्ते पर जुटी हुई थी। दोपहर बाद दो बजे राहुल के पाकुड़ नगर से होकर विभिन्न कार्यक्रमों के करते गुजरने की बात कही गई थीं।
लेकिन वे बंगाल बॉर्डर से पाकुड़ के नसीपुर में एक जनसभा के दौरान लेट हो गए , और संध्या 6 बज जाने के कारण कार के अंदर ही बैठ कर पाकुड़ नगर से गुजर गए।
स्वाभाविक रूप से लोगों को निराशा हुई।
हँलांकि लिट्टीपाड़ा में रात्रि विश्राम के बाद वे आगे की यात्रा पर निकल गए।
राहुल गांधी देश के बड़े नेता हैं। उनके परिवार के इतिहास को देखते हुए उनकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है। ऐसी उनकी यात्राओं की योजनाओं को बनाते समय उनके योजना कर्ताओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी यात्रा अधिकतम समय सूर्य की रोशनी में दिन में हो , तो ज्यादा से ज़्यादा समय तक वे अधिकतम लोगों से रूबरू हो सकें। क्योंकि जैसे ही सूर्य अस्त होगा उनकी सुरक्षा व्यवस्था उन्हें खुली गाड़ी में रहने की इजाज़त नहीं दे सकता। ऐसे में लोगों को निराशा नहीं होगी और जनता की नाराजगी का भी सामना नहीं करना पड़ेगा।
लेकिन एक बड़े कार्यक्रम के दौरान , पाकुड़ की जनता घण्टों इंतज़ार के बाद एक बड़े और प्रिय नेता को देखने से बंचित रह गए।
अगर रात्रि विश्राम पाकुड़ नगर में होता तो सुबह सुबह यात्रा में आगे बढ़ने के दौरान आम जनता राहुल को देख भी पाते और सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन को भी ज़्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।
राहुल गांधी के ऐसे अव्यवहारिक कार्यक्रम बनाने वाले लोगों को ऐसी बातों पर ध्यान रखना मुझे लाज़मी जान पड़ता है।
खैर राहुल जी पाकुड़ आये , सुखद अहसास हुआ, लेकिन आम जनता अधिक से अधिक उन्हें नहीं देख पाई , इससे निराशा भी।

सेजा फुटबॉल मैदान में हुई भाजपा दादपुर मंडल की बैठक

पाकुड़। भारतीय जनता पार्टी, दादपुर मंडल की बैठक मंडल अध्यक्ष सदानंद रजवार की अध्यक्षता में सेजा फुटबॉल मैदान में आयोजित किया गया।

बैठक में प्रमुख रूप से भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष विवेकानंद तिवारी, भाजपा जिला उपाध्यक्ष हिसाबी राय, लोकसभा के विस्तारक मनोज कुमार सिंह, विधानसभा के विस्तारक जयप्रकाश यादव, बरहेट विधानसभा के विस्तारक इंद्रदेव कुशवाहा सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति मौजूद थी।

बैठक में सर्वप्रथम वंदे मातरम का सामूहिक गायन के उपरांत विधानसभा के विस्तारक जयप्रकाश यादव ने कार्यकर्ताओं का परिचय एवं उपस्थित प्राप्त करते हुए मंडल के अंतर्गत 12 पंचायतों के 66 मतदान केन्द्रों पर संगठन के मजबूती पर बल दिया तथा मतदान केन्द्र समितियों की समीक्षा किया।

विधानसभा विस्तारक ने कार्यकर्ताओं को जहां काम-वहां हम की महत्व पर प्रकाश डालते हुए पंचायत के सभी शक्ति केन्द्रो के प्रभारी का मनोनयन सर्वसम्मति से किया जो इस प्रकार हैं, दादपुर- गौतम रजक, कुमारपुर- अजीत रजक, कालिदासपुर- शंभू घोष, संग्रामपुर- ज्ञानेश्वर मंडल, नरोत्तमपुर- पवन कुमार साह, कोलाजोड़ा- रामजय मंडल, सोनाजोड़ी- मिथुन मंडल, शहरकोल- दीपक कुमार साह, मदन मोहनपुर- कृष्णा प्रमाणिक, जमशेरपुर- सुनीराम टुडू।

बैठक में उपस्थित लोकसभा के विस्तारक मनोज कुमार सिंह ने संगठनात्मक बिंदुओं पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सभी मंडल के पदाधिकारियों एवं शक्ति केन्द्रों के प्रभारी का दायित्व बोध कराते हुए मतदान केन्द्रों पर संगठन के कार्य को पर प्रकाश डाला तथा पार्टी में संगठनात्मक गतिविधियों को मंडल में तेज करने का सुझाव देते हुए मतदान केन्द्रों पर पार्टी को सशक्त बनने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा आम जनों के लिए चलाए जा रहे हैं। कल्याणकारी योजनाओं और कार्यों के संबंध में दादपुर मंडल के सभी पंचायतों के जनता जनार्दन को जानकारी देने का आह्वान किया। ताकि समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्तियों को मोदी सरकार के द्वारा चलाए जा रहे जन कल्याणकारी योजना का उन्हें लाभ मिल सके।

बैठक में दादपुर मंडल में श्रीराम मंदिर अयोध्या जी की पूजित अक्षत श्री रामजी की तस्वीर व आमंत्रण पत्र रामभक्तों के घर-घर जाकर वितरित करने, श्री राम जन्मभूमि पर बन रहे भव्य मंदिर व आयोजन सहित श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर में रामलला के दर्शन करने हेतु रामभक्तोंको आमंत्रण देने पर भी चर्चा किया गया।

बैठक में गंगा मुर्मू, विष्णु कुमार पाण्डेय, सुशांतो घोष, अजीत रजक, सुशांतो सिंह शंभू रजवार, संतोष कुमार, मधु राजवंशी, नेपाल रजवार, आनंदी रजवार, खगेंद्र रजवार, मुनीर शेख, लक्ष्मी देवी, रानी देवी, लाची देवी, सिंटू महतो, सोनाचांद राजवार, दिलीप गुप्ता, अनिल भंडारी, जितेन रजवार, परमेश्वर मरांडी, चंदन राजवार, बेबी देवी, लीलामुनि किस्कू, फुलमुनी मरांडी, कमला घटवार, रजीना मुर्मु, लट्टूमयी मरांडी सहित दर्जनों की संख्या में कार्यकर्ता मौजूद थे।

रेलवे के पदाधिकारी ने किया कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण

पाकुड़। 13434 डाउन मालदा टाउन-बेंगलुरू अमृत भारत एक्सप्रेस के ठहराव मकर संक्रांति पर दिनांक 14 जनवरी 2024 को नागरिक अभिनंदन समारोह का आयोजन तय किया गया है। इस कार्यक्रम में रेल राज्य मंत्री राव साहब दानवे पाटिल तथा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी का आगमन सुनिश्चित है।

इस कार्यक्रम को लेकर रेलवे के सहायक अभियंता विश्वनाथ मंडल, क्षेत्र पदाधिकारी रामपुरहाट दिलीप कुमार चौहान, यातायात निरीक्षक ज्योतिर्मयी साहा, सहायक यांत्रिक अभियंता अभिषेक रंजन, वरिष्ठ अनुभाग अभियंता(कार्य) रामपुरहाट मुकेश कुमार, भाजपा जिला उपाध्यक्ष-सह-ईस्टर्न जोनल रेलवे पैसेंजर्स एसोसिएशन हावड़ा मंडल के अध्यक्ष हिसाबी राय, सचिव राणा शुक्ला, ईस्टर्न रेलवे मेंस यूनियन के अध्यक्ष अखिलेश कुमार चौबे सचिव संजय कुमार ओझा, सुशील साहा, अनिकेत गोस्वामी ने कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण किया।

प्लेटफार्म संख्या एक पर हावड़ा छोड़ पर खाली स्थान को देखकर कार्यक्रम का मंच बनाने का विचार किया गया है, जो विचाराधीन है। माननीय राज्य मंत्री राव साहब पाटील दानवे मंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री माननीय बाबूलाल मरांडी के द्वारा प्लेटफार्म संख्या दो पर अमृत भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। रेलवे प्रशासन के द्वारा शहर के गणमान्य नागरिकों को आमंत्रित किया जाएगा। प्लेटफार्म संख्या दो पर उनके बैठने की व्यवस्था की जाएगी जो विचाराधीन है। कार्यक्रम के सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाएगा। इसके लिए यातायात निरीक्षक ज्योतिर्मयी साहा काफी तत्पर दिखे साथ ही कार्यक्रम में समय कोमनलुप लाइन को खाली रखते हुए सुरक्षा बलों के पर्याप्त संख्या में तैनाती सुनिश्चित किए जाने पर चर्चा की गई। इस क्रम में आगंतुकों की संख्या को देखते हुए किसी तरह की अनहोनी ना हो इस पर विशेष ध्यान रखने पर जोर दिया गया।

कांग्रेस नेता अर्धेन्दु गाँगुली ने गरीबों, वृद्धों के बीच वितरण किया गर्म कपड़े

पाकुड़। झारखंड में इन दिनों शीतलहर के चलते जनजीवन अस्त व्यस्त है, ऐसे में गरीब असहाय बुजुर्ग एवं जरूरतमंद लोगों के बीच पाकुड़ प्रखंड के नगर परिषद क्षेत्र में आज कांग्रेस जिला महासचिव सह समाज सेवी अर्धेन्दु गाँगुली ने अपने आवास के समीप कालिकापुर में गरीब के घरों में जाकर करीब 150 लोगों को गर्म वस्त्र दिया।

इसके साथ ही कांग्रेस नेता गाँगुली ने कहा कि अपने क्षेत्र में वार्ड में घूम-घूम कर जरूरतमंद लोगों के बीच गर्म वस्त्र देने का काम करूँगा। इसके साथ ही जो बाकी बचे गांव के लोग हैं उन्हें भी शीघ्र ही घर घर जाकर गर्म वस्त्र देने का काम किया जाएगा, गर्म वस्त्र पाकर गरीब असहाय बुजुर्ग एवं दिव्यांग लोग काफी प्रसन्न दिखे।

गर्म वस्त्र वितरण होता देख लोगों ने कहा कि कम्बल वितरण कर सर्दी से ठिठुरते गरीब असहाय के चेहरे पर मुस्कान ला दी। कांग्रेस नेता अर्धेन्दु गाँगुली ने कहा कि गरीबों व असहायों को मदद करना मेरी नियती में शामिल है। उन्होंने कहा कि मैंने यह निश्चय किया कि जितना हो सके मैं अब असहायों को ठंड से मरने से बचाऊंगा। उन्होंने कहा अपने स्तर से कड़ाके एवं ठिठुरन को देखते हुए प्रत्येक साल कम्बल का वितरण किया जाता है।