Friday, November 14, 2025
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*हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर एक संगोष्ठी का आयोजन*

*हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर एक संगोष्ठी का आयोजन*

हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर दिल्ली पब्लिक स्कूल, पाकुड़ के सभागार में  एक गरिमामयी एवं प्रेरणादायी संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस विशेष अवसर पर विद्यालय के निर्देशक श्री अरुणेंद्र कुमार महोदय, प्रधानाचार्य श्री जे.के. शर्मा जी तथा स्कूल के  सभी शिक्षकगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्र भाषा के महत्व पर विचार-विमर्श करना और शिक्षकों-छात्रों में हिन्दी के प्रति सम्मान एवं गर्व की भावना जागृत करना था।

कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन के साथ शुरू हुआ। इसके शुभ अवसर पर विद्यालय के निदेशक महोदय श्री अरुणेंद्र कुमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी केवल संवाद का माध्यम ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है। उन्होंने सभी को यह प्रेरणा दी कि हिन्दी को केवल ‘हिन्दी दिवस’ तक सीमित न रखकर उसे जीवन की दिनचर्या और व्यवहार में शामिल करने में गर्व होना चाहिए।

प्रधानाचार्य श्री जे.के शर्मा जी ने अपने संबोधन में हिन्दी भाषा की ऐतिहासिक यात्रा और उसके साहित्यिक गौरव पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी शिक्षकों  से आग्रह किया 14 सितम्बर को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी भाषा के अनुराग और सम्मान को अक्षुण्ण रखें, उसकी विशालता को नए आयाम दें और आने वाली पीढ़ियों तक उसकी विरासत को पहुँचाएँ। यह दिन भारतीय अस्मिता का अलंकरण है, और हिंदी वह रत्न है जो हर जीभ पर चमकता है, हर आत्मा में गूंजता है।

इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष श्रीमती नेहा चक्रवर्ती ने हिंदी भाषा की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी का सम्मान करना, केवल भाषा का नहीं, बल्कि अपनी पहचान और स्वाभिमान का सम्मान करना है। हिंदी को बढ़ावा देने का अर्थ अन्य भाषाओं को छोटा करना नहीं बल्कि अपनी मात्रा भाषा को गर्व से अपनाना है।

अन्य शिक्षकगणों में श्री तापोश सरकार ने काव्यात्मक शैली में, श्री विकास गुप्ता ने ऐतिहासिक परिवेश को रेखांकित करते हुए, सुश्री सरस्वती ने कविताओं के माध्यम से एवम् अन्य शिक्षकों ने अपने विचार संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए हिन्दी भाषा की समृद्धि, साहित्यिक धरोहर तथा वैश्विक स्तर पर इसके बढ़ते महत्व पर विस्तृत चर्चा की।

किसी ने हिन्दी साहित्य की परंपरा और लेखकों के योगदान का उल्लेख किया तो किसी ने हिन्दी की सरलता और सर्वग्राह्यता पर जोर दिया। सभी वक्ताओं ने यह संदेश दिया कि यदि हमें अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखना है, तो हिन्दी का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है।

संगोष्ठी का संचालन श्रीमती मौमिता द्वारा अत्यंत प्रेरणादायी और उत्साहवर्धन करते हुए किया गया।अंत में,इस संकल्प के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ कि हम सभी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार और सम्मान में अपना सक्रिय योगदान देंगे।

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