Wednesday, October 29, 2025
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फर्जी दस्तावेज़ों से बन रहे आधार कार्ड मामले पर सिर्फ खानापूर्ति का खेल, डीसी के आदेश के बाद भी कार्रवाई ठंडी।

स्रोत विभिन्न स्थानीय मीडिया।—

स्थानीय जनप्रतिनिधि, वार्ड मेंबर, ग्रामीण और कर्मचारी की मदद से बन रहे है जाली कागजात,वंशावली में दिखा बना देते है भारतीय, सूत्र।

फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे आधार कार्ड बनाने का खेल पाकुड़ में खुलेआम यह खबर काफी सुर्खियों में है, फर्जी दस्तावेज के सहारे आधार कार्ड और जरूरी कागजात बनवाना स्थानीय जालसाजी नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा प्रणाली पर सीधा हमला बन चुका है। सदर प्रखंड के सात पंचायतों के साथ झारखंड से बाहर कई स्टेट के नाम से सरकारी लॉगिन आईडी के जरिये आधार कार्ड बनाने की शिकायतें सामने आई हैं। शिकायतकर्ता ने इस मामले को लेकर एक आवेदन जिसमें कई जगह के पते के साथ डीसी साहब को सौंपा था, लेकिन प्रशासन की कार्रवाई अब खानापूर्ति बन चुकी है। डीसी के आदेश पर सीओ, बीडीओ और थाना स्तर पर जांच हुई, लेकिन नतीजा सिर्फ एक सनहा दर्ज। एसडीओ साइमन मरांडी, बीडीओ समीर अलफ्रेड मुर्मू और यूआईडी के डीपीओ रितेश कुमार श्रीवास्तव के संयुक्त प्रतिवेदन पर यह सनहा मुफस्सिल थाना में दर्ज करवाया है। मगर हैरानी की बात यह है कि जिन पर यह गंभीर आरोप हैं, वे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। छापेमारी के वक्त जिन दुकानों से फर्जी आधार कार्ड बनने की बात सामने आई थी वे बंद मिले सब के सब वो भी एक साथ, यह आश्चर्यचकित बात है की छापेमारी की खबर उन्हें पहले ही लग चुकी थी जिससे सभी के सभी दुकानें बंद मिली और सभी फरार भी, प्रशासन को लगा कि मामला खत्म। लेकिन शायद फर्जीवाड़ा करने वाले तो अपना बोरिया बिस्तर किसी और जगह शिफ्ट कर दिए होंगे, सूत्रों से यह भी खबर है। आख़िर सवाल उठता है उनके इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल सामानों को तत्काल सीज क्यूँ नहीं किया गया !  ये क्यूँ कई सवाल पैदा करता है । डीसी मनीष कुमार के आदेश के बाद भी कार्रवाई की रफ्तार अबतक सुस्त क्यूँ है ?

सूत्रों के हवाले से पुख्ता खबर,जरूर पढ़े।

बाहरी लोगों को स्थानीय दिखाने का गोरखधंधा, जनप्रतिनिधियों , अंचल और ब्लॉक कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध।

पाकुड़ का डेमोग्राफिक चेहरा तेजी से बदल रहा है। सीमावर्ती इलाकों में बाहरी लोगों की पैठ खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी है। स्थानीय जनप्रतिनिधि, कुछ ग्रामीण और ब्लॉक कर्मचारी मिलकर चंद रुपयों में इन बाहरी लोगों को स्थानीय नागरिक बना रहे हैं। स्थानीय सूत्रों के हवाले से खबर है कि ये घुसपैठिए पहले फर्जी दस्तावेजों के जरिए आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बनवाते हैं, फिर स्थानीय परिवारों में शादी-ब्याह रचा कर स्थायी पहचान हासिल करते हैं। बाद में ग्रामीणों की मदद से ब्लॉक कर्मचारी इन लोगों को वंशावली में स्थानीय दिखाकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिला देते हैं। कई बाहरी लोगों को अब पीएम आवास, वृद्धा पेंशन, विकलांग पेंशन जैसी योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है। एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह सारा खेल जनप्रतिनिधियों की शह अंचल और ब्लॉक कर्मचारियों की मिलीभगत से चल रहा है। रुपए के आगे क्या सबने ईमान बेच दिया है ?
साहिबगंज और पाकुड़ दोनों जिलों में हालात विस्फोटक हैं। हज़ारों बाहरी लोग अब सरकारी रिकॉर्ड में स्थानीय नागरिक बन चुके हैं। सवाल साफ़ है कि प्रशासन तब जागेगा जब यह फर्जीवाड़ा सुरक्षा संकट बन जाएगा?

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