Wednesday, October 15, 2025
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भारत अमेरिका की शर्तों पर ट्रेड डील पर क्यों अड़ा हुआ है ? क्या भारत ने शर्तें मानी और समझो देश ख़त्म !

अपनी शर्तों पर ट्रेड डील कर अमेरिका भारत के भविष्य को रुग्ण और सदा के लिए अपने व्यापार को कई विंदुओं पर सुरक्षित कर एक तरह से गुलाम बनाए रखने की साजिश में है, और इस मंशा को भारत की सरकार ने भाँप लिया है।
भारत का अड़े रहने पर विस्तार से हमारे विद्वान मित्र उमानाथ पांडे समझाया है। आइये उन्हीं से उनके शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं, और भारत के नेतृत्व की दूरदर्शिता को भी समझते हैं।—–

आइये आपको समझायें कि अमेरिका की व्यापारिक शर्तों
(ट्रेड डील) के आगे भारत क्यों नहीं झुकता..?

यह बहुत ही खतरनाक खेल है। अगर हम झुक गए तो देश खत्म समझो। अमेरिका की दृष्टि के पीछे विनम्रता नहीं, बल्कि एक खतरनाक राजनीति छुपी है। एक ऐसी शर्त वाला क्लॉज है, जिसे भारत ने छूना तक मना कर दिया है।

ट्रम्प रोज दबाव डालते हैं, लेकिन भारत मज़बूती से खड़ा है।सब पूछते हैं – भारत अमेरिका की सभी शर्तों पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करता? तो आइए, इस बात को विस्तार से जानते हैं…
साल 2030 तक भारत–अमेरिका के बीच व्यापार लक्ष्य $500 बिलियन तक पहुँचाने का सपना है।अच्छा लगता है ना? लेकिन उस सपने के पीछे एक शर्त थी… जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) बीज/फसल।
अमेरिका ने कहा – साइन करो।
भारत ने कहा – नहीं, कभी नहीं।
क्योंकि यह सिर्फ व्यापार नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता का मुद्दा है।GM बीज कोई साधारण बीज नहीं, बल्कि एक सॉफ्टवेयर है।पेटेंट वाला सॉफ्टवेयर… एक बार साइन होने पर आपकी फसल आपकी नहीं रहती, बल्कि बीज के मालिक की हो जाती है।

और वह मालिक कौन है? Monsanto Ltd.

हाँ, वही Monsanto जिसने Agent Orange बनाया था, और अब उसका नया नाम है Bayer Ltd.।

कंपनी का सिर्फ नाम बदला है, जहर वही है।

1960 के दशक में, अमेरिका पूरे विश्व को गेहूं सप्लाई करता था।

लेकिन अब क्या देता है?
• GM मक्का
• GM सोयाबीन
• GM कैनोला
• GM कपास

ये सब “राउंडअप रेडी” फसलें हैं।

GM से खरपतवार मर जाते हैं, लेकिन फसल जिंदा रहती है क्योंकि वे केमिकल रेसिस्टेंट होती हैं।

आज अमेरिका में 95% मक्का GM है। सोयाबीन भी लगभग इतना ही।

और ये सब कहाँ जाता है? सीधा लोगों के भोजन में।

1990 के बाद से अमेरिका में…
• मोटापा दोगुना हुआ,
• किशोरों में डायबिटीज़ तेज़ी से बढ़ी,
• बांझपन,
• डिप्रेशन,
• कैंसर,
• दिल और जिगर की बीमारियाँ।

ये सब “संयोग” हैं या “नतीजा”?

और इन सबका “इलाज” क्या है?
दवाइयाँ:
• स्टैटिन्स
• मेटफॉर्मिन
• एंटीडिप्रेसेंट्स
• ओज़ेम्पिक

ये इलाज नहीं – बल्कि सब्सक्रिप्शन है!

आप जिंदा रहो, लेकिन हमेशा दवाइयों पर निर्भर रहो।

Big Food आपको बीमार बनाता है।
Big Pharma आपको जिंदा रखता है।
Big Insurance आपसे सब वसूलता है।

और जानकर हैरानी होगी कि…

इन तीनों के बड़े शेयरहोल्डर कौन हैं?
• Vanguard
• BlackRock
• State Street

और यही लोग निवेश करते हैं…
• खाने में
• दवाइयों में
• न्यूज़ नैरेटिव में

इसीलिए भारत ने दृढ़ होकर “ना” कह दिया।

और फिर क्या हुआ?

ट्रम्प के ट्वीट्स:
• पाकिस्तान से मिठास दिखाना
• पश्चिमी मीडिया का भारत-विरोधी होना

विपक्ष की आवाज़:
• मोदी सरकार असफल है

लेकिन कोई यह नहीं बताता कि… क्यों?

क्योंकि यह “ट्रेड डील” नहीं, बल्कि भारत को बीमार बनाने की योजना है।

अगर भारत इस “ट्रेड डील” पर साइन करता तो क्या खोता?
• हमारे किसान
• हमारे बीज
• हमारी मिट्टी का स्वाभिमान
• और हमारा भविष्य

ये खलनायक कौन हैं?

कृषि क्षेत्र में:
• Bayer (Monsanto)
• ADM
• Cargill

खाद्य क्षेत्र में:
• Nestlé
• PepsiCo
• Kraft

फार्मा क्षेत्र में:
• Pfizer
• Johnson & Johnson
• Merck

बीमा क्षेत्र में:
• United Health

और इनके पीछे हैं वही बड़े निवेशक,
वही डॉलर,
वही खतरनाक प्लान।

आगे से जब कोई पूछे कि –
अमेरिका की शर्त मान ली जाए तो इसमें दिक्कत क्या है?

तो उनसे कहिए –
आप अपने बच्चों को खिलाएँगे या उनकी फैक्ट्रियों को?

यह एंटी-अमेरिका नहीं है। यह है:
• प्रॉ-मिट्टी
• प्रॉ-सत्य
• प्रॉ-भविष्य

और अगर किसी को लगता है कि भारत अड़ा हुआ है तो भले ही लगे। क्योंकि अगर हम उनकी शर्तों पर साइन कर देते, तो सिर्फ एक करार नहीं खोते… बल्कि अपने पैरों तले की ज़मीन खो देते।

Comment box में अपनी राय अवश्य दे....

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