पत्रकारिता और पत्रकार की मौलिकता और महत्व स्वतंत्रता आंदोलन के समय से स्थापित रही है । उत्तरोत्तर में पत्रकारों का स्थान समाज में ऐसी होती चली गई,कि किसी भी तरह के,किसी भी स्तर पर पीड़ितों के लिए अंतिम आशा के रूप में पत्रकारिता और पत्रकार नजर आने लगे।शासन प्रशासन और आम जनमानस के बीच की धुरी बन पत्रकारिता ने समाज में संतुलन का कार्य किया।निरंकुशता, अपराध,अनियमितता, सामाजिक कुरीतियों और हर तरह की अतिवादिता पर वाचडॉग की तरह पत्रकारिता ने अपनी उपयोगिता सावित की.ऐसे में पत्रकारिता में भी किसी न किसी स्तर कुछ व्यक्ति विशेषों के कारण कमियाँ दिखीं।लेकिन आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जमाने में जब सोशल मीडिया के पहियों पर सवार पत्रकारिता ने कस्बों,गाँव और गलियारों तक का सफ़र तय किया तो,इस पर कुछ अवांक्षित तत्वों ने भी सवारी कर ली। इसमें संदेह नहीं कि सोशल मीडिया ने सूचना क्रांति लाई और निरंकुशता पर अंकुश लगाया,लेकिन दूसरी ओर यह भयादोहन का जरिया भी बन गया।
पाकुड़ में भी ऐसे उदाहरण देखने को फिलवक्त दिख रहा है। जिले के अँचल कार्यालयों से पत्थर व्यवसायियों को एक नोटिस भेजा गया है कि वे निश्चित समय तक ये बताएं कि उनसे नोटिस में नामित व्यक्तियों ने भयादोहन का प्रयास किया है कि नहीं।चर्चा में है कि कुछ नामित व्यक्तियों द्वारा अखबार और पत्रकारिता के नाम पर पत्थर व्यवसायियों से भयादोहन का लिखित आरोप जिला प्रशासन को मिला है,और जिला प्रशासन अपने जिलेभर के विभिन्न अमलों द्वारा इस आरोप की जाँच करा रहा है।ये जाँच भी ज़रूरी है,चाहे आरोप सही हो या गलत।अगर कोई स्वयं को पत्रकारिता से पीड़ित होने का लिखित आरोप लगाए तो जाँच लाज़मी है।लेकिन आम पत्रकारों के मन में एक सवाल है कि अगर सही समाचार के प्रकाशन से आहत कोई नाहक आरोप लगा कर एक परम्परा बना ले तो पत्रकारिता और समाज की इस अंतिम आशा का क्या होगा ?
हाँलाकि इसे नकारा नहीं जा सकता कि सोशल मीडिया और इस डिजिटल युग में बहुत अनुपयोगी अयोग्य व्यक्तियों ने पत्रकारिता में घुसपैठ बना रखी है, जिससे पत्रकार और पत्रकारिता को बदनामी का दाग धब्बों का सामना करना पड़ रहा है।यह बहुत ही दुखद है।
अयोग्य व्यक्तियों के घुसपैठ और करतूतों से पत्रकारिता पर लग रहा दाग।
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