Friday, November 22, 2024
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उसे देखना भी नहीं चाहते , और फिर नज़र भी उसी पर रखते हो !

पत्थर उद्योग के लगभग 130 साल के इतिहास में लुत्फुल हक़ एक ऐसा पत्थर व्यवसायी निकला जिसे समाजसेवा के लिए देश विदेश में विभिन्न संस्थाओं ने सम्मानित किया।

इससे पहले पत्थर व्यवसाय से जुड़े लोगों पर लोग हमेशा अवैध और गलत तरीके से काम करने का आरोप लगाते आये हैं। ऐसा नहीं है कि पत्थर व्यवसाय में गलत नहीं होता हो। स्वयं मैंनें इस व्यवसाय में होने वाले अवैध कार्यो पर दर्जनों बार सबूत के साथ लिखा है।

खैर हमेशा से अवैध के लिए बदनाम रहे इस उद्योग से जुड़े लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को जब दुनियाँ सराहने लगी , और उन्हें सार्वजनिक मंचों पर सम्मानित करने लगी , तो दो – तीन प्रतिक्रिया देखने को मिलने लगी।
पहली तो यह कि गरीब गुरवा लोग उन्हें खुलेआम दुआएं देने लगे।
दूसरी ये कि जो पत्रकार उनको सम्मानित करने , और गरीबों से मिलने वाली दुआओं पर लिखने लगे तो कुछ ज्वलनशील पदार्थों के आरोपी चित्कार निकलने लगे।
तीसरी यह कि लुत्फुल हक़ पर भी अवैध का आरोप लगाने लगे।
और एक सबसे बड़ी बात ये हुई कि कुछ लोग इस मंशा को पालने लगे कि सिर्फ़ गरीबों की सेवा क्यूँ !
मतलब साफ़ कि उन्हें भी …….
🤣🤣🤣 आश्चर्य है कि ऐतिहासिक ढंग से कोई पत्थर व्यवसायी गरीबों को प्रतिदिन स्टेशन पर भोजन करा रहा है , इतना ही नहीं बीच बीच में उन गरीबों के साथ वहीं खड़े होकर स्वयं भी वही भोजन खा रहा है , तो महत्वाकांक्षा पालने वाले आएं न ! वहाँ खाने से किसी को रोका तो नहीं जाता।
कुछ विशेष की अभिलाषा क्यूँ भाई !

पाकुड़ के इतिहास में रानी ज्योतिर्मयी के असीमित दैनिक भंडारे के एक युग के बाद व्यक्तिगत रूप से एक व्यवसायी द्वारा ऐसा किया जाना गौरव की बात नहीं ?

रानी ज्योतिर्मयी की तुलना सिर्फ़ रानी जी ही हैं।

मैं रानी जी की तुलना नहीं कर रहा। रानी ज्योतिर्मयी ने सम्पूर्ण पाकुड़ को शिक्षा, खेल तथा अन्य इतना कुछ दिया है कि पाकुड़ की पीढ़ियाँ उनका कर्जदार रहेगी।

खैर वो लुत्फुल हक़ की पुरस्कारों और सम्मानों से बरनोल के आकांक्षी सोसल मीडिया पर सक्रिय लोगों को सिर्फ़ एक कहावत के रूप में कहना चाहूँगा ” देख पड़ोसन जल मर ”
रही बात मेरे जैसे लोगों की , तो हाँ कोई पुरस्कृत-सम्मानित होगा तो लिखेंगे, और लिखते रहेंगे😊 ।

सिर्फ़ लुत्फुल हक़ नहीं कोई भी समाजसेवा करेगा, सम्मानित होगा , तो पत्रकार लिखेंगे। पहले ये सोसल मीडिया और सभी खबरों को जगह दे पाने वाले अख़बार नहीं थे , तो ऐसी खबरें जगह पाने से छूट जातीं थी।

समाज की सेवा पहले भी पाकुड़ में लोगों ने की , जैसे तात्कालीन छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह , रामप्रसाद सिन्हा और एक पत्रकार की तिकड़ी ने तकरीबन पाँच सौ गरीब परिवार की लड़कियों की शादी में अपना योगदान दिया, दस हजार से ज़्यादा लोगों का इलाज़ करवाया , हजारों आपसी विवादों को आपस में ही सुलझवा दिया।

उस समय ये कई कमियों के कारण प्रकाश में नहीं आया। संस्थाओं की भी कमी थी , पुरस्कृत भी नहीं हुए।

अब सब कुछ है , दुनियाँ एक क्लिक पर उपलब्ध है। किसी भी कीमत पर लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को और उनकी समाजसेवी होने को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में उनसे जलन और शिक़वा शिकायतें क्यूँ भाई ?  , नहीं नहीं कोई सभ्य समाज इसे और ऐसे लोगों को नहीं स्वीकार सकता🙏🏻

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