Monday, December 23, 2024
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पत्रकार के साथ एक संत भी थे नन्दलाल परशुराम

नंदलाल परशुरामका पत्रकार के साथ एक संत भी थे
संतमत आश्रम कुप्पाघाट के संतसेवी जी महाराज भी इनके कमरे में पधारे थे
पल्लव, गोड्डा

नंदलाल परशुरामका पत्रकार के साथ संत भी थे। वे महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के शिष्य भी थे। शान्ति संदेश जैसी पत्रिकाओं में भी नंदलाल बाबू लिखते रहे। महर्षि मेंही के शिष्य संतसेवी जी महाराज उनके बैठक खाना में कई वार आए। वहीं बैठक खाना जिसमें गद्दा लगा रहता था और नंदलाल बाबू उसी पर बैठकर समाचार लिखते रहते थे। संत सेवी जी महाराज को नंदलाल बाबू साहब कहा करते थे। एक वार संतसेवी जी महाराज उनके बैठक खाना में आने वाले थे। वे बोले पल्लव जी, कल साहब अपनी बैठक खाने में पधारने वाले हैं। आप जरूर आइएगा। इनके कहने पर मैं वहां पर गया और नंदलाल बाबू ने संतसेवी जी महाराज से परिचय भी कराये। बोले यह युवा लड़का पत्रकार है और बेवाक लिखता है साहब। उन्होंने मुझे भी आशीर्वाद दिया और संतसेवी जी बोले कि उसके हक के लिए जरूर लिखते रखना जिसकी बात कोई नहीं सुन रहा हो। तुम्हारी कलम से अगर किसी एक बेवश, लाचार, निरीह का भी उपकार हो रहा हो तो लाख विरोध के बाद भी तुम डरना नहीं, लिखते रहना। ऐसे लोगों काे भगवान खूद मदद करते हैं। ऐसे कार्य करोगे तो तुम्हें खूद अनुभव होगा कि मेरी मदद कोई परोक्ष रूप से कर रहा है। भले ही वह तुम्हें न दिखे। नंदलाल बाबू को भी आशीर्वाद दिए । वे संतसेवी जी महाराज को कभी साहब कहते तो कभी सरकार कह कर संबोधित करते। यह तस्वीर तभी कि है जब संतसेवी जी महाराज नंदलाल बाबू के बैठक खाना से निकल रहे थे। साहित्य पर भी नंदलाल बाबू की गजब की पकड़ थी। गोड्डा के साहित्य साधक पर भी कई आलेख किस्तों में मैंने प्रभात खबर में लिखी, जब इस अखबार का मैं हीरो था।
संतसेवी जी की बात और नंदलाल बाबू की हिदायत का परिणाम रहा कि जब मेरी खबर छपी तो स्कूल से अपनी बीमार मां के लिए अंडा छिपाकर लाने वाले बच्चे की मां की जिंदगी बच गई। वहीं थैलेसीमिया से पीड़ित गरीब बच्चे जिसको खून दिलाने के लिए कोरोना काल मेे उसका पिता साईकिल चलाकर 300 से अधिक किलोमीटर की दूरी तय करता है। मेरी खबर छपने और बंगलौर में पढ़े जाने के बाद उस बच्चे को बंगलौर की एक संस्था ने एक बड़े अस्पताल में करीब 37 लाख की सहायता से बोन मेरो ट्रांसप्लांट करा दिया। सचमुच यह दैविक प्रेरणा का ही परिणाम है। नंदलाल बाबू भले हमारे बीच नहीं रहे, पर उनकी प्रेरणा हमारी कदम कभी भी डगमगाने नहीं दे। यही प्रार्थना भगवान से करता हूं।

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