Sunday, September 8, 2024
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नशे के लिए झपटमार कर रहे अपराध , चेन के साथ चैन भी गवां रहे लोग।

शनिवार (29 जून) को अहले सुबह अन्नपूर्णा कालोनी निवासी एक महिला शनिदेव के मंदिर से पूजा कर वापस घर आ रही थी , कि एक उचक्के ने महिला के गले से सोने का चेन झपट लिया।
स्वाभाविक रूप से सुबह सुबह हर एक आदमी के पीछे सुरक्षा में पुलिस तो नहीं रह सकती। रातभर गश्ती करने के बाद मनुष्य होने के नाते पुलिस को भी फ्रेस और फ़ारिक होने का मानव सुलभ अधिकार तो है , लेकिन ये झपटमार उचक्कों को फ्रेस होने के समय भी अपराध करने से कोई गुरेज़ नहीं होता।
पीड़िता अन्नपूर्णा कालोनी निवासी अवकाश प्राप्त व्यख्याता एस एस मिश्रा की पत्नी हैं। धार्मिक स्वभाव की महिला ने घर आकर घटना की जानकारी अपने घर में दी। इसी दिन सुबह ही प्रोफेसर साहब और उनकी पत्नी इलाज के लिए राँची बाय रोड निजी वाहन से जाने वाले थे। पुलिस को सूचना दे कर वे लोग राँची चले गए , आख़िर इलाज़ कराने की आवश्यक आवश्यकता थी।
लेकिन एक सवाल जो पीछे छूट गया कि शहर में अहले सुबह ये उचक्के कहाँ से और किन परिस्थितियों में उपज आये !

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बीमार खून की खरीद बिक्री बाँट रहा बीमारियों का कारवां

नशे के सौदागरों की बदलती रणनीति , सौंदर्य की आँचलों में छुप बाज़ार की सैर करती सुरक्षित पुड़िया और सरसों के ही भूतों से गच्चा खाती पुलिस

इसका एक मात्र कारण है , नशे की लत , और उसमें भी ड्रग्स जैसे गम्भीर और घातक लत में अपराध तक करने को तैयार ऊंघते भविष्य वाले युवा वर्ग।
यहाँ कुछ ऐसे युवा उपज गये हैं , जो ब्राउन शुगर जैसे घातक ड्रग्स के चँगुल में फँस गये हैं , और इतने मंहगे नशे की लत अपराध का द्वार भी खोल देता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ के ऐसे युवा ऐसे अपराध के लिए ट्रैकिंग करते हैं और आसपास के इलाकों के अपने नशेड़ी साथियों को हायर कर ऐसे अपराधों को अंजाम देते या दिलाते हैं।
नशेड़ियों की भाषा में ये BS यानी ब्राउन शुगर एभिल इंजेक्शन की काँच वाली शीशी में मिलाकर कागज़ या पेपर जला कर गर्म करते हुए हिलाते हैं। ऐसे में BS उस एभिल में पूर्णतया घुल जाता है , और फिर श्रीचं तथा निडिल से मस्कुलर इंजेक्ट कर लेते हैं।
आहिस्ते आहिस्ते आहिस्ते ये मस्कुलर इंजेक्शन शरीर में घुलता है और दिनभर की ख़ुमारी बनाये रखता है।
ये नशा बहुत ही खर्चीला है। इस एक डोज के प्रकरण में लगभग एक हजार से इग्यारह सौ का खर्च आता है। हर ड्रगिष्ट 24 घण्टे में लगभग दो डोज तो ले ही लेता है।
घर से सौ पचास के मिलने वाले पॉकेट मनी में चाय-पानी , सिगरेट और फिर बाइक के फ्यूल का खर्च तो निपटना मुश्किल है , ऐसे में इतना मंहगा नशा न अपराध कराए , ये हो ही नहीं सकता।
अब उन अपराधियों की ख़ुमारी के लिए ऐसे ही झपटमार चेन के साथ लोगों की चैन भी लूट जाएँगे।
हाँ नशा मुक्ति का नारा सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है , लेकिन इन झपटमारों का नाड़ा टाइट किये बिना ?
ऊँ हूं ये न हो सकेगा।

50 वर्ष पुराने इमरजेंसी के इतिहास पर संसद में बहुत कुछ बोला गया , लेकिन कुछ इतिहास आज भी अनकही रह गई हैं , उनमें दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनाने वाली रानी रासमणि भी एक हैं।

दलितों पर राजनीति करने वाली आज की सभी पार्टियों , और दलित नेताओं से एक सवाल बनता है , दक्षिणेश्वर काली मंदिर सहित देश में दर्जनों यादगार काम करने वाली रानी रासमणि के योगदान को इतिहास के पन्नों पर और सिलेबस में जगह क्यूँ नहीं मिली !😢
इसलिए कि वो दलित थीं ?
सवाल कुरेदने वाली है , लेकिन मैंनें बंगला में रानी रासमणि सीरियल जब देखा तो उनके जैसी लोकनायिका और तपस्विनी को देश के लिए योगदान करने के बाद भी कैसे भुला दिया गया ?
ये सवाल मुझे कुरेदते रहा , और उनके योगदान को ढूंढ कर जानने का प्रयास करता रहा।
एक संक्षिप्त विवरण मुझे साभार मिला है , मैं अपने पाठकों से साझा करना चाहता हूँ।
संकलन कर्ता का नाम याद नहीं आ रहा , फिलवक्त मैं उनसे क्षमा याचना करते हुए , पाठकों के समक्ष रखता हूँ। क्योंकि ये जानना लोगों के लिए ज़रूरी है।🙏

क्या आप ऐसी किसी महिला के बारे में जानते हैं, जो हमारी वास्तविक नायिका हैं, आदर्श हैं और गुमनाम भी ?

इस सवाल का जवाब शायद ही मिल सके!
एक अकेली महिला , तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी देश, समाज और संस्कृति को कितना कुछ दे सकती है, बिना इसका श्रेय लेने का प्रयास किये।
सामाजिक आंदोलनों के तत्कालीन पुरोधा राममोहन राय और ईश्वर चन्द्र विद्यासागर तक को खुलकर विद्रोही आंदोलनों में साथ देनेवाली नायिका को क्यूँ इतिहास के पन्नो पर कोई कोनाभर जगह नही मिली ?

हमारी नायिका क्या एक ऐसी महिला नही बन सकती ?
कृपया इसे जरूर पढ़ें।
सभार प्राप्त जानकारियों के अनुसार —

*1.* हावड़ा में गंगा पर पुल बनाकर कलकत्ता शहर बसाया

*2.* अंग्रेजों को ना तो नदी पर टैक्स वसूलने दिया और ना ही दुर्गा पूजा की यात्रा को रोकने दिया

*3.* कलकत्ता में दक्षिणेश्वर मंदिर बनवाया

*4.* कलकत्ता में गंगा नदी पर बाबू घाट, नीमतला घाट बनवाया

*5.* श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर का पुनरोद्धार करवाया

*6.* मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि की दीवार बनवाई

*7.* ढाका में मुस्लिम नवाब से 2000 हिंदुओं की स्वतंत्रता खरीदी

*8.* रामेश्वरम से श्रीलंका के मंदिरों के लिए नौका सेवा शुरू किया

*9.* कलकत्ता का क्रिकेट स्टेडियम इनके द्वारा दान दी गई भूमि पर बना है।

*10.* सुवर्ण रेखा नदी से पुरी तक सड़क बनाया

*11.* प्रेसिडेंसी कॉलेज और नेशनल लाइब्रेरी के लिए धन दिया

क्या इस महान हस्ती को आपके सिलेबस में शामिल किया गया ?

मुझे पूरा विश्वास है कि 99% भारतीय इस महिला को नहीं जानते होंगे 😢

इन महान हस्ती का नाम है *रानी रासमणि* । ये कलकत्ता के जमींदार की विधवा थी। 1793 से 1863 तक के जीवन काल में रानी ने इतना यश कमाया है कि इनकी बड़ी बड़ी प्रतिमाएं दिल्ली और शेष भारत में लगनी चाहिए थी।

*रानी रासमणि* कैवर्त जाति की थी जो आजकल अनुसूचित जाति में शामिल है।

हमारे देश की राजनीति ने और चाटुकार इतिहासकारों ने *रानी रासमणि* को अपेक्षित सम्मान क्यों नहीं दिया, यह तो समझ आता है, किंतु देश के दलित नेताओं ने *रानी रासमणि* को नायिका क्यों नहीं बनाया यह समझ के परे है 🤔

अब वर्तमान केंद्र सरकार से निवेदन करूँगा कि रानी रासमणि पर शोध की व्यवस्था करें। सिर्फ़ पश्चिम बंगाल में वोट नहीं है , वहाँ हमारा समृद्ध इतिहास भी है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे संत और विवेकानंद जैसे राष्ट्रनायक की पृष्ठभूमि तैयार करने वाली रानी रासमणि को देश कैसे भूल गया ?
बार बार ये सवाल मेरे मन में उठता है , मैं सरकारों के सामने भी उठाऊँगा।
सिर्फ़ विवेकानंद जयंती मनाने और मंदिरों में कैमरे के साथ हाज़री बनाने से नहीं होगा , मूल जमीनी आधार को जनता के सामने लाना होगा🙏 बस यही प्रार्थना है।

इस बार बिना हल्ला गुल्ला के होगा गोल , सभी प्रमोटी गैर प्रमोटी के घर और जानपहचान के होंगे चयनित नये खिलाड़ी। हे विनोद पहले से ही रखनी होगी नज़र।

कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय पत्रिका भारत वार्ता में एक आलेख बंगाल शिक्षक घोटाले पर प्रकाशित हुआ था। शीर्षक में ही सवाल उठाए गए थे, कि बंगाल में तो करवाई कोर्ट के आदेश पर हुई, लेकिन झारखंड और बिहार में करवाई कब होगी ?
जबकि बिहार में 8 वर्षों से और झारखंड में 12 वर्षों से केंद्रीय एजेंसी जाँच कर रही है । सीबीआई ने कोर्ट में चार्जशीट दायर किया। 25-30 ऐसे आरोपी बनाये गये इस चार्जशीट में जो सीबीआई के अनुसार फर्जीवाड़ा कर अफसर बने हुए हैं। इसमें जेलर , डीटीओ आदि सभी आरोपी बनाए गए थे। अब शायद सम्मन जारी हो।
जेपीएससी प्रथम और द्वितीय में हुई गड़बड़ी के मामले में हाईकोर्ट के के आदेश पर सीबीआई जाँच हुई। जाँच में गड़बड़ी सी जाँच एजेंसी को लगी। ये जाँच आदेश कोर्ट ने 2012 को दिया था। कोर्ट ने नियुक्त पदाधिकारियों के वेतन पर रोक लगा दिया। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और वहाँ हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लग गया। 6 अप्रेल को सुनवाई के दौरान यह बताया गया कि 12 वर्षों से जाँच पूरी नहीं हो पाई , जिस पर सीबीआई ने कोर्ट को बताया कि जाँच अभी भी जारी है, इसीपर चार्जशीट दाखिल किया गया है।
जो भी हो ये मामला जाँच में है , और माननीय अदालत में विचाराधीन भी है। जो भी माननीय न्यायालय आदेश देंगे वो होगा। लेकिन जाँच एजेंसी को सोचना होगा कि जाँच में अगर विलम्ब होगा तो न्याय में भी विलम्ब हो जाएगा। विलम्बित न्याय पर पहले भी कानून के जानकारों ने परिभाषित किया है।

इसबार है अलग ढंग से खेल की तैयारी

अब हम जेपीएससी 2024 की परीक्षा पर बात कहना चाहते हैं।

2024 की जेपीएससी परीक्षा की पहली पाली में राष्ट्रीय स्तर तथा दूसरी पाली में राज्य स्तर का जनरल स्टडीज से संबंधित प्रश्न पूछे गए। पहली पारी में प्रश्न उलझे हुए रहे। प्रश्न पत्र मॉडरेट रहा। दूसरी पाली में एक प्रश्न गांव से गांव व शहर से शहर ने सबको चौंकाया था । अभ्यर्थियों को यह प्रश्न समझ में ही नहीं आ रहा था। दोनों 200-200 नंबर के थे। सभी में 100 प्रश्न पूछे गए थे।

विद्यार्थियों को परीक्षा रद्द होने का भी डर सता रहा था
किसी में नेगेटिव मार्किंग नहीं थी। परीक्षा देकर बाहर निकले विद्यार्थियों को परीक्षा रद्द होने का डर सता रहा था। विद्यार्थियों को पता चल गया था कि जामताड़ा व चतरा में पेपर लीक हो चुका था। इसका वीडियो भी वायरल हो गया था।
लेकिन तमाम कुछ उधेड़बुन के बाद भी परीक्षा रद्द नहीं हुई।
जो इस आलेख के द्वारा मैं कहना चाहता हूँ कि इस बार जेपीएससी के 342 भरे जाने वाले सभी पदों पर गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है।
विश्वस्त जानकारी के अनुसार इसबार कुछ चार दर्जन से दो चार ज्यादा या कम ऐसे परीक्षार्थियों की सफलता को निश्चित कर दिया गया है , जो अधिकारी या कर्मचारियों के बेटा-बेटी हैं। इसके लिए कीमत भी इतनी तय की गई है कि इतने कंडीडेट में ही उतनी उगाही हो जाय जितना कि पूरी भीड़ से वसूली में होतीं थीं , और एक हल्ला तथा हंगामा मच जाता था। इसबार अपने बच्चों को सेट करने के लिए अधिकतर प्रमोटी कर्मचारी और अधिकारियों ने परीक्षार्थी कंडीडेट बच्चों को न सिर्फ घरों में नजरबंद कर रखा है, बल्कि मित्रों और मोबाइल से भी तब तक दूर रखा है , जब तक रिजल्ट घोषित हो वे ट्रेनिंग कर वापस न लौट जाएं।
ऐसे विधानसभा चुनाव भी नजदीक है , तो रिजल्ट भी जल्द आ जाये, और फिर कंडीडेट सभी जो सुविधा से सुव्यवस्थित होकर आने वाले हैं, वे सभी तो सरकारी कर्मचारियों के ही घरों के हैं, इसलिए हल्ला तो मचना ही नहीं है।
इसलिए हे पार्थ विनोद (#CBI) आप पहले से ही सतर्क रहें, कि जाँच में विलम्ब न हो।
ऐसे लेन देन भी आधा हो चुका है , चयन की गारंटी के रूप में ओरिजनल सर्टिफिकेट भी गारंटर के पास जमा है।
रिजल्ट के बाद बाँकी बकाया दे कर ओरिजनल सर्टिफिकेट लें और बेटिंग करने पीच पर पहुँच जाएं।

ग़ज़ब का जलवा है भैया हमारे शहर में माफियाओं का ! जिंदा को मृत बनाना तो बाएं हाथ का है खेल , और छापने में तो पूछिए मत।

एक अख़बार प्रभात मंत्र जिसका मैं नियमित पाठक हूँ ,में अचानक एक ख़बर ने ध्यान खींचा। पूरी ख़बर पढ़ डाली । पता चला कि एक जीवित व्यक्ति को मृत बता कर उसकी जमीन बेच डाली गई।
पत्रकार क़ासिम जी ने पूरी रिपोर्ट लिखने में काफ़ी खोज , शोध और मेहनत की , तथा स्वाभाविक रूप से उठते सवालों के साथ रिपोर्ट लिख डाली थी। अखबार प्रभात मंत्र ने भी प्राथमिकता के साथ इसे प्रकाशित किया था।
हँलांकि एक पत्रकार की ईमानदार मेहनत से ये मामला तो सामने आ गया , लेकिन ऐसे कितने ही मामले फाइलों में यहाँ दब जाते हैं , जो कभी निकल नहीं पाते।
मुझे अचानक इस ख़बर से वर्षों पुरानी बात याद आ गई। बात सन 2012 की है। स्थानीय कोषागार में एक जाँच वरीय अधिकारियों के आदेश पर चल रही थी , जिसमें ये बात खुलकर आ रही थी कि स्टाम्प पेपर के घोटाले की कोई बड़ी कहानी , स्टाम्प बेचने वालों के रजिश्टरों में दर्ज है।
स्टम्प भण्डारियों के रजिस्टर जैसे जैसे कोषागार में जाँच के लिए आ रहे थे , एक ही नम्बर के कई स्टम्प निर्गत पाए जा रहे थे।
जबकि कोषागार से तो स्टम्प बेचने वालों को एक नम्बर के एक ही स्टम्प दिये जाते होंगे , तो फिर ऐसा हो कैसे रहा था !
इस सवाल का उस समय जवाब ढूँढना मुश्किल था , लेकिन अभी तो यहाँ के गाँव गाँव में छपते जाली लॉटरी को देख सब समझ में आ रहा है। हँलांकि नकली रुपये जब छप कर आया करते थे, तो स्टम्प पेपर का उसी तर्ज पर छप कर आना कोई बड़ी बात नहीं थीं।
आख़िर हर्षद मेहता भैया ऐसे ही थोड़े नाम और पैसे कमा गये।

खैर ये जाँच चल ही रहा था कि अचानक एक दिन पूरा मामला ठप्प पड़ गया। ऐसी ख़ामोशी इस मामले पर पड़ गई कि लाख प्रयासों के बाद भी ग़ज़ब का ठहराव आ गया और फिर कालांतर में मामला पूरी तरह दब गया।
खो गई एक और घपले की कहानी , फाइलों की धूल भरी जुबानों के बीच कहीं , जो आज तक अनकही रह गई।
ठीक उसी तरह जीवित को मृत बताकर जमीन बेच देने की ये कहानी भी अनकही रह जाती अगर पत्रकार क़ासिम जी तह तक नहीं पहुँचते।
पत्रकार और अख़बार प्रभात मंत्र को बहुत बहुत धन्यवाद।

जिस राज्य के शीर्ष नेता जमीन आदि के जाँच क्रम में जेल भेज दिए जाँय, वहाँ अंचलों में होते हैं बड़े बड़े खेल

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन चुनाव के पहले से जेल में हैं। ईडी ने उन्हें जमीन की तथाकथित (सवित होने के पहले तक) हेरा-फेरी के मामले में कई सम्मन भेजने और पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। अब तक उन्हें न्यायालय से भी लाख प्रयासों के बाद राहत नहीं मिली है।
खैर झारखंड में तमाम विशेष कानूनों के बाद भी जमीन की हेराफेरी अब आम बात हो गई है।
संथालपरगना के पाकुड़ जिले में सदर अंचल पाकुड़ और जिले में धान का कटोरा कहे जाने वाले महेशपुर अंचल में सेलेबुल जमीन बहुत ज्यादा है। अनुसूचित ननसेलेबुल जमीन में तो अनगिनत गड़बड़झाला है , लेकिन सेलेबुल सामान्य जमीन में भी गड़बड़झाले की कहानी अनगिनत है।

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उदाहरण के तौर पर कई दशकों पहले जानकारों ने अपनी पीढ़ियों को बताया था, कि खतियानी रैयत कालिदास गुप्त , तारापद गुप्त और पँचनन्द गुप्त के नाम पर जमीन थी।
जमीन तो काफी था , लेकिन कुछ जमीन पर उनलोगों ने राधाकृष्ण की एक मंदिर बना रखा था। उस समय पाकुड़ नगर स्वयं वीरान बियावान जंगली इलाका था। भक्ति रस में डूबे गुप्त परिवार ने शायद अपना परिवार नहीं बढ़ाया होगा।
खैर जो भी हुआ हो जमीन पिपासुओं की नज़र अंचल कार्यालय कर्मी के सहयोग से कालांतर में उस टूटे-फूटे खपड़ैल के तथाकथित मंदिर पर पड़ी , और फिर उसे गटकने की जुगाड़ भी लग गया। और भगवान कृष्ण को भी चुना लगा गये ये जमीन पिपासु ।
सबसे पहले उस जमीन को मंदिर की जमीन नहीं है , ये सवित करने के लिए जो जो सम्भव था , किया गया और फिर सदर प्रखंड के ही इलामी और पितम्बरा गाँव के मौजा पर अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा मोटेशन के लिए दिये गए आवेदन पर ही दूसरे के सेलडिड को संलग्न कर अन्य दूसरे के नाम पर मोटेशन कर जमीन जबर्दस्ती प्रशासन के सहयोग से कब्ज़ा कर लिया गया।
जबकि जमीन जिन आवेदनों पर मोटेशन किया गया , वो आवेदन अन्य जमीन के लिए था , लेकिन आवेदन संख्या सहित अन्य कई कागज़ी गवाह सवाल उठा रहे हैं।
जिस राज्य के मुख्यमंत्री जमीन मामले में जेल जाने और इस्तीफा देने को मजबूर हो जाएं , उसी राज्य में आँचलों में किस तरह अनियमितता होतीं हैं , इसका प्रमाण तो मैंनें इसी पेज पर महेशपुर में हुए एक जमीन घपले की कहानी कह दिया था।
आश्चर्य है कि माखनचोर नन्दकिशोर श्री कृष्ण की जमीन तक चुराने से लोग नहीं हिचकते , ऐसे में ये जमीन माफ़िया इनडायरेक्ट में हम जैसे लोगों को जान मारने तक की धमकी भी दे ही डालते हैं ।
अगर मुझे या मेरे परिवार को किसी तरह की हानि होतीं, या पहुँचाई जाती हैं, तो उसके डिजिटल सबूत और नाम जाँच के दौरान जाँच एजेंसियों को मिल ही जायेंगे , लेकिन पाकुड़ में पिछले लगभग एक दशक में इतना जमीन घोटाला हो चुका है, कि झारखंड के कोई भी घोटाला पानी माँगता नज़र आएगा।
लेकिन ऐसे मामले प्रकाश में लाने का मतलब हमेशा जाँच के नाम पर स्थानीय तौर पर सिर्फ 😀😀😀 हाँ हाँ पाठक समझ ही रहे हैं😊

बंगाल में चुनाव के बाद और चुनाव के पहले तक होती है बहुत ख़ामोश हिंसा। सन्देशखाली याद है आपको ? पीड़ा देने और सहने की ख़ामोशी की पराकाष्ठा है सन्देशखाली। मैं भी देख आया कई ख़ामोश चुनावी हिंसा।

पिछले दो महीने से मैं थोड़ा बीमार चल रहा था। पहले हूँ तो मामूली सा गरीब आदमी, लेकिन बीमारी रहिशों वाले पाल रखा है।सुगर , प्रेशर और दिल की बीमारी से दोस्ताना बना रखा है । इसलिए इलाज के लिए कई बार कोलकाता जाना पड़ा।
खैर इन बातों को बताना उद्देश्य नहीं है । उद्देश्य बंगाल चुनाव के विषय में अपने अनुभव साझा करना है।
जाति से पत्रकार रहा हूँ , इसलिए बीमारी के बाद भी , चुनावी माहौल सूंघने निकलना मजबूरी बन जाती है।
कई जगह बंगाल में गया और चुनावी माहौल को टटोला ।
ऐसे मैं बंगाल से काफ़ी करीब से जुड़ा हूँ। मैं यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस मामले में मैं शहर और किसी व्यक्ति या परिवार विशेष की बात का पीड़ितों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उल्लेख नहीं करूँगा।
पिछले 13 मई को बंगाल में भी कुछ जगहों पर मतदान था। मैं एक नामी शहर से लगे एक मुहल्ले में ठहरा हुआ था। अचानक रात में कुछ महिलाओं की सिसकने और फुसफुसाहट वाली आवाज से मेरी नींद खुल गई। मैं कमरे से बाहर निकला तो पता चला कि तकरीबन दो बजे रात में 30-40 व्यक्ति मुहल्ले के लोगों को धमका कर गया है , और एक परिवार विशेष के पुरुषों की हत्या की बात भी कह गया है। ये भी उस परिवार के सदस्यों को चेतावनी दी गई कि मतदान के दिन उस परिवार का कोई सदस्य बूथ पर मतदान करने पहुँचा तो घर तक वापस नहीं आ सकेगा। ये 12 – 13 मई की रात की बात मैं बता रहा हूँ।
मुझे वापस आना था, लेकिन इसके बाद मैं वहाँ ठहर गया।
मतदान के दिन मैंनें मतदान कर वापस आते उस मुहल्ले के लगभग लोगों से बात की। उनमें से दर्जनों लोगों ने कई चुनाव के बाद मतदान किया था , यहाँ तक कि जिस परिवार के यहाँ मैं रुका था , उन्होंने भी पिछले कई चुनाव के बाद मतदान किया था , लेकिन मतदान कर लौटते समय उनसे भी गुंडों ने बूथ से बहुत दूर ये जरूर पूछ लिया कि सही जगह मत दिया कि नहीं। हाँ जिस परिवार को रात में लोग मतदान न करने की धमकी दे गये थे , उस परिवार के लोग उसदिन घर के अंदर ही बंद रहे।
मैं वहाँ से वापस अपने शहर लौट आया , लेकिन सैकड़ों सवाल मेरे मन , मस्तिष्क और दिल को कुरेद रहा है।
चुनावी हिंसा के लिए कई राज्य बदनाम रहे हैं लेकिन जो मैं देख आया ये क्या था !
बूथों पर पुलिस , केंद्रीय बल सब थे , लेकिन 12 मई की रात उस महल्ले में तो धमकी देने वाले और गरीब मजदूरों का सिर्फ परिवार था, और कुछ था तो धमकियाँ , आतंक , आँसू और सिसकियाँ।
ये बंगाल में मैंनें पहली बार ही नहीं देखा , इससे पहले और , और पहले भी ऐसा ही देखा है। जब दूसरी सरकार थीं और जब तीसरी सरकार है।
मतलब बंगाल में चुनावी हिंसा की पुरानी परम्परा रही है , लेकिन बहुत ख़ामोश।
आपको अभी अभी सन्देशखाली याद है ? बहुत ख़ामोशी से सबकुछ होता रहा, और बहुत ख़ामोशी से सबकुछ सहा भी जाता रहा।
ये तो संयोग था , कि ED पर हमला हो गया और बहुत कुछ खुल गया।
चुनावी हिंसा बंगाल में सिर्फ चुनावी मौसम में नहीं, बल्कि चुनाव के बाद और अगले चुनाव के पहले तक होता ही रहता है ।
ग़ज़ब का पैटर्न है वहाँ । सिर्फ़ बंगाल में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चुनाव राष्ट्रपति शासन में ही होना चाहिए । लेकिन क्या ये व्यवहारिक और संवेधानिक है ? मुझे पता नहीं। लेकिन ये पूरा मामला मुझे अवाक और निशब्द कर गया।
एक बात सकारात्मक ये दिखा कि कई चुनाव के बाद कुछ लोगों ने इसबार मतदान भी किया।
मैं जहाँ रुका था , वो गरीब मजदूरों का मुहल्ला था। मैंनें फोन पर पता किया कि उस भयभीत परिवार के पुरूष सदस्य जो दिहाड़ी मजदूर हैं , अभी तक घर में ही बंद हैं , काम पर भय से नहीं जा रहे। घर की महिलाएं सिसक रहीं हैं , बच्चे भूख से बिलख रहे हैं , उन्हें तो जीते जी ही मार दिया गया है। जिस पुरूष के सामने माँ बहन और पत्नी आँसुओं में डूबी हुई हों , और बच्चे भूख से बिलख रहे हों , तो क्या वो पुरुष स्वयं को जिंदा समझ रहा होगा ?
सवाल सिर्फ़ राजनीति या नेताओं से नहीं इस सभ्य समाज और पूरे देश से है।

नशे के सौदागरों की बदलती रणनीति , सौंदर्य की आँचलों में छुप बाज़ार की सैर करती सुरक्षित पुड़िया और सरसों के ही भूतों से गच्चा खाती पुलिस

आपने मेरा ड्रग्स पर लिखा आलेख पढ़ा होगा, पूरे आलेख से ये बात तो समझ में आ गई होगी कि पाकुड़ के युवा कल के वर्तमान, आज का भविष्य किस क़दर नशे की आग़ोश में हाँफ रहा है। कुछ लोगों की समृद्धि की भूख हमारे भविष्य से किस क़दर खेल रहा है।
इधर पुलिस की सक्रियता से कुछ लोग गिरफ्तारी की जद में आये। पुलिस की इस सफलता को लोगों ने सर आँखों पर लिया , लेकिन जितना जल्दी सफलता सर आँखों पर चढ़ा , उतनी ही जल्दी उतर भी गया।
कारण बना ड्रग्स व्यवसायियों की रणनीति में बदलाव। अब ये नशे की पुड़िया हाउस वाइफ के ग्रुपों के हाथों थमा दिया गया। बेरोजगार युवाओं और कम कमाई वाले जरूरतमंद युवकों की पत्नियों को पुड़िया बाजार में खपाने की जिम्मेदारी दे दी गई। इससे दो फायदे इन तस्करों को हो रहा , पहला तो मुँहमाँगी कीमत , और दूसरी कि आसानी से पुलिस की गिरफ्त से बचाव। ये विषकन्याएँ ऐसी हैं कि उनपर शक करना भी आसान नहीं।
एक सवाल पुलिस से लाज़मी बनता है कि थाना के सामने के विभिन्न नामों से जाने वाले बाजारों में आसानी से इन ज़हर के पूड़ियों का मिल जाना , और दूसरा सवाल ये कि बाहर से आनेवाले , तथा आसपास के इलाकों से आनेवाले रेगुलर तथा शौकिया नशेड़ियों को आसानी से पुड़िया मिलने के जगहों का पता रहना , आश्चर्यजनक है , जबकि पुलिस थानों के नाक के नीचे इस रँगीन नशे की पूड़ियों का गंध तक न मिलना !
क्या ये सवाल बेमानी है ? बंगला में एक कहावत है कि ” सोरसा तेय भूत तो नेय ” । मतलब सरसों से ही भूत झाड़ने की विधि के दौरान , कहीं सरसों में ही तो भूत बैठा नहीं है। मतलब कि …….
खैर इस नशे के चँगुल में फँसे नवजवानों का और उनके परिजनों का भविष्य तो अंधकार में है ही , लेकिन नशे के तस्करों के चँगुल में फँसे डेलिभरी हाउस वाईफों का क्या होगा ?
अभी चुनाव में प्रशासन और पुलिस व्यस्त है लेकिन उसके बाद ? और हमेशा सरसों में भूत नहीं हुआ करता भाई।

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नशे की लत और पैसे की भूख युवा वर्ग को ले जा रहा अपराध की अंधेरी राह 😥

बहुत चतुर हैं, नशा परोसने वाले कारोबारी, वैध कारोबार और समाजसेवा की कंबल के अंदर बेख़ौफ़ पी रहे हैं घी

आलेख के अंत मे लिखा था कि समाज के ऐसे कोढों से निपटने के लिए पुलिस को उत्तरप्रदेश की नीति अपनानी चाहिए। अगर कहें सही तो हाँ ऐसा ही करना चाहिए, क्योंकि परिवार, समाज, प्रदेश और देश के लिए तैयार होती इस निकम्मी फसल को संवारने के लिए थोड़ी अंगुलियों को टेढ़ी तो करना पड़ेगा।

पुलिस को अपने ख़ुफ़िया सूचना तंत्र से ये पता लगाना होगा कि समाज के कौन कौन से युवा ऐसे नशें की गिरफ़्त में है, उन्हें उठाकर आवश्यक हो तो थर्ड डिग्री इस्तेमाल कर ड्रग्स की गंगोत्री का पता लगाना होगा। जब ऐसे स्थानीय गंगोत्री का पता चल जाय, तो फिर इन गंगोत्रीयों को जन्म देने वाले जहरीले ग्लेशियर का पता लगाना आसान हो जाएगा।

पुलिस को सूचना तंत्र को मजबूत कर ऐसे कदम उठाने होंगे, और हमारे जैसे पत्रकारों को अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर कंस्ट्रक्टिव जनर्लिज्म, और समाज को सकारात्मक भाव से पुलिस को मदद कर इस जहरीले रैकेट पर विराम लगाना होगा। यहाँ समाज के सभी वर्गों को सकारात्मक रवैया अख्तियार करना होगा।

वरना सोचें कि हमारी अगली पीढ़ी नशें की गिरफ़्त में कैसे एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है? एक कैसा भविष्य हम समाज, प्रदेश और देश को परोस जाएँगे। जिस पीढ़ी के कदम लड़खड़ाते रहेंगे, पलकें बोझिल और दिमाग सुप्त रहेगा, वो कैसा भविष्य होगा !

पाकुड़ “अमड़ापाड़ा ” की सृष्टि प्रिया को महाराष्ट्र में मिला सम्मान , पाकुड़ भी हुआ गौरवान्वित।

झारखंड के पाकुड़ जिला अमड़ापाड़ा प्रखंड पोखरिया रोड निवासी संजय कुमार की पुत्री सृष्टि प्रिया ने महेशपुर के नवोदय विद्यालय से बारवीं पास कर दुमका के एस पी कॉलेज से बैचलर डिग्री ली। विद्याध्ययन के इस सफ़र ने रुख़ किया अंतरराष्ट्रीय महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय का, और फिर अपनी मेहनत से रच दिया प्रखंड और जिला को गौरवान्वित करने वाला परीक्षा परिणाम का। आमड़ापाड़ा की सृष्टि प्रिया को महाराष्ट्र में किया गया सम्मानित , जिससे पूरा जिला सम्मानित महसूस कर रहा है।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के हिंदी साहित्य विद्यापीठ के साहित्य विभाग में पढ़ने वाली सृष्टि प्रिया को बैंक ऑफ बड़ौदा के क्षेत्रीय कार्यालय, अमरावती की ओर से मेधावी विद्यार्थी सम्मान योजना से सम्मानित किया गया। इस योजना के तहत क्षेत्रीय प्रबंधक रुचि शिवलिहा एवं उप क्षेत्रीय प्रबंधक पंकज इंगले द्वारा हिंदी विषय के परास्नातक पाठ्यक्रम में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाली सृष्टि प्रिया को प्रशस्ति पत्र एवं नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया। सृष्टि प्रिया ने हिंदी विश्वविद्यालय के हिंदी साहित्य विभाग के एम. ए. हिंदी साहित्य में सर्वाधिक अंक प्राप्त किया है। सृष्टि प्रिया ने कहा कि यह हम जैसे विद्यार्थियों के लिए बहुत ही सम्मान की बात है कि झारखंड से आने वाले विद्यार्थियों को महाराष्ट्र में समानित किया जा रहा है। यह सम्मान हिंदी के भविष्य को उज्जवल करेगा। साथ ही बैंक की राजभाषा अधिकारी नंदिनी साव ने बताया कि सन 2006 से बैंक की ओर से हिंदी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस सम्मान योजना की शुरुआत की गई। यह सम्मान हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को प्रत्येक वर्ष दिया जाता है। सृष्टि प्रिया की इस उपलब्धि पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. धरवेश कठेरिया,हिंदी विभाग के अधिष्ठाता अवधेश कुमार शुक्ल एवं कुलपति कृष्ण कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय का प्रतीक चिन्ह, सूत माला और अंग वस्त्र पहनाकर भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।
शिक्षा के इस सम्मानजनक सफऱ में पाकुड़वासी की ओर से भी सृष्टि प्रिया को अशेष बधाई और जीवन में उच्चतम सफलता की शुभकामनाएं।

क्या झामुमो राजमहल में विवाद घर में ही निपटा कर नहीं लड़ सकते चुनाव ?

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झारखंड में 14 लोकसभा सीटें हैं। इनमें संथालपरगना में तीन सीटों में एक मात्र सीट पर इंडी गठबंधन के झामुमो के युवा सांसद बिजय हांसदा लगातार दो बार से सांसद हैं। इसबार भी विजय हांसदा को उम्मीदवार बनाया गया है।
विजय हांसदा कोंग्रेस के स्वर्गीय दिग्गज थॉमस हांसदा के पुत्र हैं।
विजय हांसदा का पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक रहा है। थॉमस हांसदा की बीमारी के कारण असामयिक मृत्यु ने जहाँ क्षेत्र में एक राजनैतिक शून्यता पैदा कर दी , वहीं विजय हांसदा कम उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने के कारण राजनैतिक दाव सीखने से बाँकी रह गये।
स्वाभाविक है विजय हांसदा के अंदर कुछ कमियाँ रह गई हो। लेकिन 2014 के मोदी लहर में कोंग्रेस से झामुमो में आ कर , झारखंड में एकमात्र राजमहल सीट को झामुमो की झोली में डालना कोई नकारने लायक छोटी उपलब्धि नहीं है, और फिर 2019 में उसे बरकरार रखना भी सराहनीय है।
और फिर संथालपरगना में झामुमो के दिग्गजों के रहते अगर विजय हांसदा में कोई राजनैतिक समझ की कमी रह गई हो , तो इसमें क्या सिर्फ विजय हांसदा दोषी हैं, क्या झामुमो के दिग्गजों का कोई दोष नहीं बनता ?
विजय हांसदा के उम्मीदवार घोषित होने से पहले से ही विरोध के स्वर फूटने लगे थे , तो क्या पार्टी प्लेटफार्म पर घर में ही बैठ कर इसे सुलझाया नहीं जा सकता था ?
अब जब विरोध सार्वजनिक रूप से मैदान में हो ही गया है , तो दोनों ओर से अनर्गल बयानबाज़ी ने मतदाताओं के बीच एक ऊहापोह की स्थिति बना रखी है।
दुमका में जैसे सीता सोरेन और नलिन सोरेन के बीच एक स्वस्थ और आदर सूचक बयानों से विरोध हो रहा है , उससे राजनैतिक और सामाजिक मर्यादा बनी हुई है। जबकि वहाँ तो दोनों अलग अलग पार्टी से हैं। ऐसे भी संथाल और आदिवासी समाज में छोटे बड़े का और बड़े छोटे का जिस तरह सम्मान करते हैं वो देश के हर समाज उसकी सराहना करते हैं।
यहाँ भी अगर वोटकटवा आदि जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं होता तो एक स्वस्थ मतभेद का माहौल भर रहता।
इधर लोबिन साहब कहते हैं, कि मैं निर्दलीय जीत कर झामुमो को सुधारने का काम करूँगा , तो फिर विजय तो आपके बच्चे जैसा है , उसे अपना आशीर्वाद दे कर सुधारिये , अगर वे गलत हैं तो। अपने घर के अंदर बच्चे को डांट डपट कर सुधारा जा सकता है, इसके लिए घर की दीवार तोड़ना तर्कसंगत नहीं।
प्रजातंत्र की खूबसूरती को दोनों बचाये रखें तो ……
मैं किसी पार्टी की बात नहीं कह रहा , सिर्फ़ विरोध के भी स्वस्थ बनाने की बात कह रहा। आदिवासी समाज की मान मर्यादा बहुत खूबसूरत है , इसे बनाये रखने की बात कह रहा।

विजय भैया लोबिन चाचा से मिल कर एक बार आप आशीर्वाद जरूर लीजिए, वे वैद्य भी हैं , कड़वी दवाई उन्होंने बहुत दे दिया , शायद अब मीठा आशीर्वाद भी दे ही देंगे।

लुत्फुल हक़ की महक से एक बार फिर महका पाकुड़, मुंबई में पुनः हुए सम्मानित।

एक बार फिर समाजसेवी “लुत्फुल हक”को वर्ष का सबसे प्रेरणादायक सामाजिक कार्यकर्त्ता का अवार्ड

पाकुड़ नगर के मशहूर समाजसेवी लुत्फुल हक को वर्ष का सबसे प्रेरणादायक सामाजिक कार्यकर्ता (मोस्ट इंस्पायरिंग सोशल वर्कर ऑफ द ईयर) इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया है। रविवार की देर शाम मुंबई के पांच सितारा होटल में आयोजित इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवार्ड कार्यकर्म में बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा कियारा आडवाणी ने अपने हाथों से लुत्फुल हक को अवार्ड और सर्टिफिकेट देकर नावाजा है।
कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने वालों को अवार्ड से नावाजा गया।
बताना लाजमी होगा कि लुत्फुल हक पाकुड़, साहेबगंज जिले के अलावा बंगाल के फरक्का, धुलियान आदि क्षेत्र में भी समाजसेवा का काम कर रहे है।
पाकुड़ रेलवे स्टेशन पर प्रतिदिन ढाई सौ से तीन सौ गरीब लोगों को निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराते है। वर्तमान में फर्श से अर्श तक पहुंचने की राह में कई परेशानियों को झेला है। श्री हक अवार्ड प्राप्त करने के बाद कहते है कि फर्श से अर्श तक जाने का मकसद केवल ऊंचाइयों को छूना ही नहीं, बल्कि हरेक परेशानियों को निगलते हुए उस अर्श को छू लेने से है, जो कि फर्श से कोसों दूर है। मुश्किलें परेशानियां दुःख और तकलीफ तो हर मंज़िल की खूबसूरती होती हैं।
उन्होंने कहा कि ईमानदार मेहनत ही आदमी को जमीन से उठाकर आसमान तक ले जाता है। ज़रूरत है आसमान की ऊँचाइयों से जमीन को याद रखना, और उस जमीन पर अपने अतीत को देखना तथा सेवा भाव से गरीब और जरूरतमंदों के साथ खड़ा रहना।
सवालों पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि हम हमेशा ये याद रखते हैं कि ” परिंदों को पता है कि आसमान में कोई ठिकाना नहीं होता, आशियाना जमीं पर ही बनाया जाता है”।
उन्होंने कहा हम सेवा पुरस्कारों के लिए नहीं करते , ये तो लोगों और संस्थाओं का बड़प्पन है, कि वे मुझे सम्मान देते हैं। लुत्फुल जी ने हँसते हुए कहा कि ये पुरस्कार और एवार्ड मुझमें सेवा भाव को और मजबूत करता है।
ये बताना लाज़मी होगा कि लुत्फुल हक़ जी को देश-विदेशों में भी दर्जन भर पुरस्कार तथा सम्मान मिल चुका है। इतने के बाद भी उनकी सादगी किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकता।
इधर बधाइयों का तांता लगा पड़ा , लेकिन लुत्फुल नामक फूल की महक से पूरा पाकुड़ गौरवान्वित है।