Monday, December 23, 2024
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लेखन की मजबूत बुनियाद और प्रेरणा से एक परिचय, जो लाज़मी है

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पत्रकारिता के रास्ते मेरी कलम की सफ़र की कहानी मैंनें कल के आलेख में बताया था। हँलांकि प्रकाशन के अभाव में कलम की सफ़र की शुरुआत में ही सर क़लम हो गया, और सरोकार की लेखन की पहली किस्त ही गंगा की गोद में जल समाधी में चला गया, लेकिन मजबूत बुनियाद ने मुझे हताशा में नहीं जाने दिया। आइए उस बुनियाद से भी आपको परिचित कराएं—

किसी भी सकारात्मक सफर की एक मजबूत बुनियाद होती है, जहाँ से प्रेरणा की रक्तसिंचन होती है, वही से लेखन या किसी निर्माण के कल्पनात्मक अदृश्य शरीर की धमनियों में सृजन का रक्त बहकर जीवन का संचार करता है। इसी से परिचय सफ़र शुरुआत की एक भूमिका होती है, और ये भी भूमिका एक आधार या यूँ कहें कि जमीन पर टिकी होती है।
मेरी कलम की चलने की शुरुआत की जमीन मेरे पिता स्वर्गीय प्रोफेसर श्रीकांत तिवारी जी रहे।

उन्होंने कभी ये नही कल्पना की थी, कि उनके पुत्र की कलम पत्रकारिता के रास्ते चलेगी।
हिन्दी के प्रोफेसर, संस्कृत के गोल्डमेडलिष्ट, अंग्रेजी व्याकरण के ज्ञाता और गणित के अच्छे जानकार मेरे पिता ने कभी ये नहीं सोचा कि मैं पत्रकारिता की राह चलूँगा।

एक पिता और तीन-तीन लिटलेचर के ज्ञाता मेरे पिता की गणित इस मामले में सटीक नही निकल सकी थी कि मैं इस ओर चल पड़ूँगा।

उन्होनें मुझे कलम के सफ़र में बस एक अच्छी लेखनी और शायद किसी सरकारी नॉकरी में भेज पाने की मंशा से ही उतारा था।

खैर उनकी अपेक्षा पर मैं सही नहीं उतर पाया, और कंक्रीट के उस रास्ते चल पड़ा जो आज चुभती हुई गिट्टियों की पथरीली राह बन गई है। कैसे और क्यूँ इसपर अगले आलेख में।

अभी बस इतना कि ले कलम का सफ़र शुरू हुआ कैसे और कब ?

बात 1980 के दशक की है। उस समय मैं अपनी मेट्रिक यानी 10 वीं की परीक्षा से लगभग चार साल दूर था। हमारे समय मे लेख लिखने की परंपरा थी। परीक्षाओं में लेख आलेख और संक्षेपण जैसे प्रश्न आते थे।

मैं नटखट और पढ़ाई के प्रति उदासीन किशोरावस्था को जी रहा था। फलस्वरूप पिता की छड़ियों का अक्सर कोपभाजन बनता था।

ऐसी पिता-पुत्र की विरोधावस्था वातावरण के बीच , पिता ने मुझे स्वयं अपने ऊपर एक लेख मुझे अपनी दृष्टिकोण से लिखने को कहा।

शर्त ये था, दृष्टिकोण मेरा स्वयं का हो, एक बड़े पृष्ठ में उसी दिन हिन्दी में वो लिख उनके सामने प्रस्तुत करूँ।
मैं एक ऐसे पिता पर लेख लिखने जा रहा था, जो करीब रोज मेरी मरम्मत कर अपने कोप सिंचन से मुझे गम्भीर अध्ययन के रास्ते पर लाना चाहते थे।

मेरी चंचल मानसिकता, बहिर्गमन बुद्धि, बोद्धिक अकर्मण्यता तथा पढ़ाई के प्रति अरुचि मुझे एक असमंजस में डाले हुए था, कि मैं अपनी दृष्टिकोण से अगर उनपर आलेख लिखूँ तो कैसे।

मुझे याद है, मैं उसदिन काफ़ी विचलित था, उनपर लिखते ही शब्दों की धारा उनकी मेरी होनेवाली आएदिन की मरम्मत की जाल में फँस बिखर जाती।

मैंनें स्वयं को लिखने से पहले सम्भाला। स्वयं को हासिये पड़ खड़ा रखा, फिर एक साक्षी बन अपने पिता के सिर्फ़ मेरे नहीं बल्कि औरों के गुण-अवगुणों का आंकलन करते हुए, उनके व्यवहार को टटोला।

पिता के मेरे और अन्य सुलझे-अनसुलझे लोगों के प्रति व्यवहार का मूल्यांकन कर मैंनें अपने पिता पर आलेख लिखा।
हँलांकि मेरे पिता क्या थे, कैसे थे, इसका मूल्यांकन की औकात मेरी नहीं। आज भी नहीं है, उस समय तो मैं सोच भी नहीं सकता था।

खैर जब मैं हासिये पर खड़ा हो, एक साक्षी भाव से पिता पर आलेख ले उनके सामने खड़ा था, तो मैं हर पंक्ति पर फिसली उनकी नजरों के साथ उनके चेहरे पर उकरती लकीरों की भाव को भी पढ़ने का असफ़ल प्रयास कर रहा था।

पूरे पन्ने को वो पढ़ गए, और कई बार पढ़ते रहे, यहाँ भी मन में एक अपराध बोध के साथ मैं ख़ामोश साक्षी बना रहा।
अचानक वे उठे और मुझे पूछ बैठे, मैं तुम्हें क्रूर नहीं लगता ?

मैंनें सिर्फ़ नही कहा, और कहा मैंनें तराशे गए आपके छात्रों को देख आपको हाथ में छेनी हथौड़ा लिए सिर्फ़ एक कारीगर समझा। मैं पन्नों में तो पीड़ित भर स्वयं को समझा था, लेकिन जब हासिये पर खड़ा हो देखा, तो आप कारीगर दिखे, और मैं बिन तराशा गया बेडौल पत्थर सा दिखा।

यहीं से कलम ने पिता के आशीर्वाद से कलम के सफ़र के रास्ते डाल दिया मुझे।

उन्होनें कहा इसी तरह हासिये पर खड़े होकर साक्षी भाव से समाज और पीड़ित ,शोषित की आवाज़ बनना, स्वयं पीड़ित मत दिखना न ही दिखाना। पीड़ा उनकी कहना जिनके पास अभिव्यक्ति के साधन, शब्द और भाषा नहीं।

यही साहित्य है, जो सबके हित की बात करता है।

लिखना और लिख कर ही कहना, ये वातावरण में एक शोर बन घुलता और विलीन नहीं होता। शब्द लिखे गए ब्रह्म होते हैं, जो निर्माण करता है, एक जीवंत साक्ष्य, जिसे झुठलाना असम्भव है।
मेरे पिता के कथन ही जीवन बन उतर गए दिल मे, और दिल जो कहता है, मेरी कलम कहती जा रही है, अपने सफ़र में।
मेरी कलम यहीं से अपने सफ़र पर है , बिना किसी हताशा के।

पहला सफर, मेरी कलम का.. पत्रकारिता के रास्तों पर

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समय बड़ा बेसमय हो गया था, दशक 1980 के अंतिम पड़ाव पर था। सन 89।

मैं अपनी पढ़ाई के लिए पाकुड़(अब झारखंड, तत्कालीन बिहार के अंतिम छोर के कस्बाई अनुमंडल) जिला से भागलपुर में था।

भागलपुर एक जाना पहचाना , मेरे ननिहाल का निकटतम होम टाउन था। 1986 के अंतिम दिनों में मैं पढ़ाई के लिए वहाँ था। 1989 में शहर दंगे की चपेट में आ गया।

मैं अपने शैशवावस्था से पाकुड़ में ही किशोरावस्था से होते हुए युवा हुआ। मुझे उस समय ये पता नहीं था, कि जाति और धर्म व्यक्ति को बाँटता है , क्योंकि पाकुड़ में ये माहौल ही नहीं था। हमें पता ही नहीं चलता था कि समाज में ऐसा कुछ होता है , लेकिन आज लोगों को ये अविश्वनीय लगेगा। हँलांकि पाकुड़ भी अब बाहरी सोच की हवाओं से मानसिकता के प्रदूषण को झेलने लगा है, लेकिन आज भी यहाँ की हवाओं में खूनी ज़हर जगह नहीं बना पाया है।

मेरी संगति और दोस्ती भागलपुर में भी इन बंधनों से दूर ही रहा। 

अचानक एक दिन भागलपुर में दंगा हुआ , पहली बार राजनीति और उसके बदनाम पहलुओं के साथ सम्प्रदाय शब्द से रूबरू हुआ।

बदमिज़ाज राजनीति के पहलुओं से मेरा साक्षात्कार यहाँ पहली बार हुआ। विद्रोह और पुलिस से लेकर जनता तक की बिद्रोही स्वभाव के अस्वाभाविक पहलु से मैं परिचित हुआ। बड़े बड़े पदासीन नेताओं को पिट जाते तक  देखा।

दुखद ये कि निरीह और निर्दोषों को अकाल मरते मिटते देखा।

बचाव और सहयोग के हाथ को बढ़ते और उन हाथों को भी कटते देखा । क्या देखा और क्या न देखा , इस सवाल से भी लोगों को बचते देखा।

इन सबके बीच मैंनें अपने आँसू को सूखते और दिल को रोते देखा।

यहाँ से ही सरोकार के लिए मैंनें अपनी कलम को चलते देखा। फिर उस कलम की सफ़र को प्रकाशन के अभाव में दम घुटकर सिसकते देखा।

इन सबके बीच मैं पीड़ितों से मिलता रहा। दंगे की खूनी आग तो दब चुकी थी , लेकिन दबी राख़ में सिसकते दर्द भरी कहानियाँ, उन कहानियों में कहीं असह्य दर्द , दर्द में छुपी हुई घृणा और द्वेष , कहीं बदले की मानसिकता तो कहीं चलो झुलसी जिंदगी को एक नई राह पर ले चलूँ का भाव , न जाने और कितना कुछ दिखता गया , और मैं लिखता गया। 

उस समय कोई इंटरनेट या डिजिटल प्लेटफार्म नहीं था। कागज और कलम पर लिखता रहा। जो दिख उन्हीं दर्दों को शब्दों में उकेरता गया। मैं किसी का नाम नहीं लूंगा , लेकिन सत्यात्मक तथ्यों को कहीं प्रकाशन का मंच नहीं मिला। पढ़ने को बहुत कुछ मिलता , लेकिन जमीन की बातें कम और मसालों की सुगंध ज़्यादा था।

  ” यूँ ही तन्हाई में हम दिल को सज़ा लेते हैं,

    नाम लिखते हैं तेरा ,लिखकर मिटा देते हैं,

   जब भी नाक़ाम मुहब्बत का कोई ज़िक्र करे,

   लोग हँसते हैं, हँसकर मेरा नाम बता देते हैं “

कुछ इसी तरह के दर्द को लिए हम हक़ीक़त की कहानी लिखते गए, और जमा करते गए।

हाँ दंगा पीड़ितों में मैं दर्द की कहानियों को टटोलता जहाँ गया , हर जगह मुझे सम्प्रदाय से इतर एक पीड़ित ही मिला। हर पीड़ित गरीब , रोज कमाने खानेवाले और दिन निकलते ही अपनी मेहनत से समाज , राज्य और देश को कुछ न कुछ देने वाले दीन ही दिखे। 

आश्चर्य था , कोई सामर्थवान हिन्दू या मुसलमान मुझे दंगा पीड़ित नहीं दिखा। किसी कौम का कोई बड़ा या छुटभैया नेता तक पीड़ित नहीं दिखा, जिन्होंने ऐसे नरसंहार की पृष्ठभूमि तैय्यार की।

धर्म के ठेकेदारों ने ऐसा अधार्मिक पृष्टभूमि बनाई कि मानवता कराह उठी थी। जिधर देखता सिर्फ़ एक दर्द की कराह थी। अफवाहों की ज़हरीली हवा कहीं से उठती और मनुष्य को हैवान बनाती गुज़र जाती।

मेरी थैली में सैकड़ों दर्द की कहानी कागज़ों पर उकरी पड़ी थी। 

मुझे मेरे पिता ने सकारात्मक पहलुओं पर लिखने की शिक्षा दी थी , मैं उन दर्दो की कराह में भी कोई सकारात्मक पहलू ढूँढता, लेकिन पीड़ितों की करुण चीत्कार मुझे दहला देता , और कहीं मैं स्वयं को बेबस पाता। मेरी कलम भटक पड़ती। मेरी उम्र की अपरिपक्वता मुझे अपनी चपेट में ले लेती। कभी कोई तो कभी और कोई मुझे दोषी लगता।

कुछ दिनों में दर्द के उन पहलुओं ने , जो न तो हिन्दू था , न मुसलमान , जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मानवता की कराह भर थी , ने मुझे मानसिक रूप से विचलित कर दिया।

राजनीति की उठापटक और लाशों के सीने पर कूटनीति की नूराकुश्ती ने मुझे विचलित कर रखा था।

गंगा किनारे घण्टो बैठ कर सोचा करता कि कुर्सी के लिए इतनी गोद सूनी कर , घर के चिराग़ तथा कितने ही बच्चों के सर से ममता और पालन की छाँव छीन ये कैसे सामान्य बने रह सकते हैं ?

एक दिन मैं भी इतना निराश हो चला कि गंगा किनारे गंगा माँ से कहा कि जितनी लाशों को बिना उसके मज़हब को पूछे तूने उन्हें अपनी गोद में जगह दी माँ , उन तक उनके अपनों की दर्द और आँसुओं का ये संदेश भी पहुँचा देना।

मैंनें अपने लिखे सभी दर्दो की कहानियों को पन्ने दर पन्ने गंगा की लहराती आँचल में डाल दिया।

कहानियाँ तो गंगा की आँचल में चलीं गईं, लेकिन मेरी कलम आँसुओं की राह भी चल चुकी थी अपने सफ़र में।

अवैध खनन, भंडारण और परिवहन पर जिला प्रशासन सख़्त, चार क्रशरों का लाइसेंस रद्द, एफआईआर दर्ज

जिला खनन टास्क फोर्स टीम द्वारा 4 ट्रैक्टर एवं 1 जेसीबी को किया गया जप्त

4 क्रशर संचालकों का डीलर लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से किया गया सस्पेंड

पाकुड़ । उपायुक्त वरूण रंजन के निदेशानुसार खनन टास्क फोर्स टीम द्वारा दिनांक 14.03.2023 को पाकुड़ जिले के निम्नांकित स्थलों पर अवैध परिवहन, अवैध भंडारण की औचक निरीक्षण की गई।

औचक निरीक्षण के दौरान मालपहाडी (ओ०पी०) थानान्तर्गत रामनगर मोड मालपहाड़ी रोड में मौजा- अराजी खपडाजोला में श्री एस०के० दत्ता के स्टोन क्रशर के बाहर एवं विपरीत दिशा एवं अवैध भण्डारण स्थल का भौतिक निरीक्षण एवं जांच किया गया। स्थल पर जेसीबी स०- JH16B-7894 द्वारा इस अवैध स्थल पर अवैध पत्थर / स्टोन डस्ट को बेचने हेतु जमा करते पकड़ा गया। जिसे जप्त करते हुए अवैध कार्य में संलिप्त व्यक्तियों, जप्त जेसीबी के मालिक / चालक तथा भण्डारण स्थल के भूमि के रैयतों के विरूद्ध मालपहाड़ी (ओ०पी०) में प्राथमिकी दर्ज कराया गया।

इसके अतिरिक्त पाकुड़ (मु०) थानान्तर्गत मौजा- कालीदासपुर में स्थित प्रवीर साहा के “साहा धर्मकॉटा” पर निम्नांकित चार वाहनों/ ट्रेक्टरों के ट्रेलर पर पत्थर चिप्स से लदे बिना परिवहन चालान के पकड़ा गया। सभी वाहनों के चालक ट्रैक्टर छोड़कर फरार हो गये।

साहा धर्मकाटा में पूछताछ के क्रम में धर्मकाटा के मुंशी चंदन कुमार भगत के पास से एक कागज में दिनांक 14.03.2023 को खनिज लदे वजन कराये गये कुल चालीस वाहनों की जानकारी मिली। जिसमें प्रति ट्रिप वजन कराने का 50 रूपये एवं खनिज विक्रेताओं / क्रशर मालिकों का नाम संक्षिप्त कोड में जैसे सलीम शेख के लिए SL. Abdul Hamid Sk के लिए H जाकिर हुसैन के लिए J.K तथा DNS का नाम अंकित है। साहा धर्मकाटा में मौजूद मौहम्मद इमाजुद्दीन शोख द्वारा जाकिर हुसैन के क्रशर से 14.03.2023 को कुल 17 ट्रेक्टर स्टोन चिप्स बिना चालान के विक्री करने के संबंध में लिखित बयान दिया गया। पुछताछ के क्रम में यह पता चला की उक्त क्रशर संचालकों द्वारा बिना परिवहन चालान के पत्थर का प्रेषण किया जाता है।

उपरोक्त क्रशर संचालकों का नाम पता निम्न प्रकार है:-

(1) सलीम शेख, पिता- सेनाउल शेख, ग्राम- जयकिष्टोपुर,जिला- पाकुड़, मौजा-कालिदासपुर, अंचल- पाकुड़।*

(2) अब्दुल हमीद शेख, पिता- मनजारूल शेख, ग्राम- कालिदासपुर, जिला- पाकुड़, मौजा- कालिदासपुर, अंचल-पाकुड़।*

(3) जाकिर हुसैन, पिता- हजरत अली, ग्राम +पोस्ट- मनिरापुर, मौजा- मानसिंहपुर, जिला-पाकुड़, मौजा-कालिदासपुर,अंचल-पाकुड़।*
(4) सुविर कुमार साहा, पिता- स्वर्गीय दीनानाथ साहा, पता- आनंदपुरी कॉलोनी, जिला- पाकुड़, मौजा- कालिदासपुर, अंचल-पाकुड़।*

वर्णित ट्रैक्टरों के मालिकों, चालकों एवं खनिज विक्रेताओं के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज एवं जप्त ट्रैक्टरों के विरुद्ध राजसात की कार्रवाई की जाएगी। साथ ही साथ क्रशर संचालक का डीलर लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया गया है।

रीता की रीत है , समाज के दर्द को बाँटना, लेकिन राज की तरह गुमनाम हैं रीता राज

कहते हैं कि औरों का गम देखा, तो मैं अपने गम को भूल गया। ये एक शायरी हो सकती है, लेकिन इसे जीनेवाले भी हैं दुनियाँ में।

बहुत दूर नज़र दौड़ाने की ज़रुरत नहीं, देवघर में एक देवी मनुष्य रूप में ऐसी ही मिल जाएगी। नाम है रीता राज। रीता ने सेवा को अपनी रीत बना रखी है , और राज ये कि पता नहीं क्यूँ कलमबाज़ों की नज़र उनपर नहीं पड़ती। हँलांकि सभी ऐसे नही, पत्रकार आशुतोष झा ने बीते कल रीताजी को बताया कि एक बुजुर्ग को उसके घरवाले बीमार स्थिति में अस्पताल छोड़ गए हैं। कोई घरवाला उनकी हालत जानने और घर लिवा जाने तक नहीं आया।

बुजुर्ग को मिठाई खिलाती रीता

पत्रकार आशुतोष से ख़बर मिलते ही दौड़ पड़ी रीता अस्पताल की ओर। बुजुर्ग से मिली, हालात जानी। ममतामयी मातृस्वरूपा ने पहले उन्हें मिठाई खिलाई और भी बहुत कुछ खिलाया। अपनी ममतामयी बातों से उस अनजान बुजुर्ग के दिलोदिमाग को सहलाया। फिर उनके बेटे से फोन पर बात की। चूँकि पत्रकार आशुतोष जी वहाँ थे तो कुछ चित्र भी क्लिक हो गया।

अब बुजुर्ग के घर तक वापस जाने में मदद तो रीता करती रहेंगी, लेकिन सिर्फ़ इतना भर रीता नहीं हैं। गरीब बच्चों को क़िताब, वस्त्र और जन्मदिन या कोई त्योहार का बहाना बना रीता सेवा की अपनी रीत चलाती रहतीं हैं। इसलिए उन्होंने एक संस्था तक बना डाली। उनकी सहेलियाँ और पहचान वाले उनके संस्था की मदद कर रीता को अपनी ममता बाँटने में सहयोग करती है, लेकिन आशुतोष जैसे कोई और उनके साथ खड़ा नही होता। परिणामस्वरूप रीता जी राज ही बनी हुई हैं, उनके कार्यों को जो सराहना मिलनी चाहिए, वो नहीं मिल रही।

कोई अकेली अगर चली है ऐसे राह पर, जो मजबूरों-कमज़ोरों की दर्द को सहलाती है, तो इस मातृस्वरूपिणी को समाज ने सिर्फ़ राज भर बनाकर क्यूँ छोड़ रखी है। क्या हम सभी उनके साथ खड़े नहीं हो सकते ? ये सवाल मुझे कुरेदती है। शायद रीता राज जी को कुरेदती होगी।

खैर उस बुजुर्ग को रीता जी ने तो अपनी ममता से सींचा है, लेकिन उनके घरवालों को भी मद्धम पड़ी उजाले को घर ले जाना चाहिए। वे लोग ये न भूलें कि इसी बुजुर्ग ने अपनी जवानी में दिया बन जलकर पूरे परिवार को रोशनी दी होगी।

मगरमच्छ , मगर पूरे जीवन में नहीं किया मांसभक्षण , ईश्वर के सानिध्य में बीता जीवन।

*जानवर हो कर महात्मा के रुप में मोक्ष प्राप्त किया 🙏🙏*

*पशु योनि में जन्म लेकर भी ईश्वर के सान्निध्य में जीवन यापन किया। कासरगोड के हरि मंदिर के तालाब में सारा जीवन व्यतीत करते हुए, कभी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई।*

*मांसभोजी शरीर पाकर भी कभी मांस का सेवन नहीं किया, किसी छोटे मोटे जीव तक को नुकसान नहीं पहुंचाया मंदिर के प्रसाद के रूप में प्राप्त गुड़ – चावल पर ही गुजारा किया।*

*75 वर्ष की आयु, 10 अक्टूबर 2022 को देहत्याग कर श्रीहरि के चरण कमलों में स्थान प्राप्त किया। इस असाधारण जीव को पिछले 70 वर्षो से मंदिर और तालाब का रक्षक माना जाता था, लाखों लोग मात्र उसे देखने मंदिर आते थे।*

*ऐसा अभूतपूर्व और विलक्षण जीवन जीने वाले ग्राह श्रेष्ठ ‘बाबिया’ को शत शत नमन।*

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गृहस्थजीवन और सन्यास में कौन श्रेष्ठ है ?

*गृहस्थ जीवन और संन्यास में कौन श्रेष्ठ ?*

एक नौजवान व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला, मेरी शिक्षा समाप्त हो गई है।

अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, “एक यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या संन्यास धारण करूँ?
इन दोनों में से मेरे लिये क्या अच्छा रहेगा यह बताइए?”

कबीर ने कहा, दोनों ही बातें अच्छी हैं जो भी करना हो वह उच्चकोटि का करना चाहिए।

उस व्यक्ति ने पूछा, ’उच्चकोटि का कैसे?’

कबीर ने कहा,’किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे।’

वह व्यक्ति रोज उत्तर की प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा।

एक दिन कबीर दिन के बारह बजे कपड़ा बुन रहे थे।

खुली जगह में प्रकाश काफी था फिर भी कबीर ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया।

वह तुरन्त जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा वे कपड़ा बुनते रहे।

सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गये। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे।

कबीर ने साधु को आवाज दी,’ महाराज ! आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए।’

बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया।

कबीर ने पूछा , ‘आपकी आयु कितनी है यह जानने के लिये नीचे बुलाया है।’

साधु ने कहा ,’अस्सी बरस। यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़कर बड़ी कठिनाई से अपनी कुटी में पहुँचे।

कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया। साधु फिर आये।

उनसे पूछा,’आप यहाँ पर कितने दिन से निवास कर रहे हैं?

उन्होंने बताया चालीस वर्ष से। फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और पूछा,’ आपके सब दाँत उखड़ गये या नहीं?’

उन्होंने उत्तर दिया। आधे उखड़ गये। तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगे। इतने चढ़ने उतरने से साधु की साँस फूलने लगी, पाँव काँपने लगे।

वह बहुत अधिक थक गये थे फिर भी उन्हें तनिक भी क्रोध न था।

अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा।

उसने कहा ,’तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में ये दोनों घटनायें तुम्हारे सामने उपस्थित है।’

यदि गृहस्थ बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिए जैसे हमारे स्नेह , प्रेम , विश्वास और सद्व्यवहार से मेरी पत्नी का मुझ पर पूर्ण विश्वास और एकत्व स्थापित है।

उसे दिन में भी दीपक जलाने की मेरी बात अनुचित नहीं मालूम पड़ती और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे, कष्ट दे, दुर्व्यवहार करें, क्रोध का नाम भी न आये।

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क्या है सही तरीके से नहाने का तरीका , कैसे बच सकते हैं विभिन्न शारिरिक अकस्मात समस्याओं से तथा असामयिक मृत्यु से।

*क्या है नहाने का वैज्ञानिक तरीका?*

क्या आपने कभी अपने आस पास देखा या सुना है कि नहाते समय बुजुर्ग को लकवा लग गया?

दिमाग की नस फट गई (ब्रेन हेमरेज), हार्ट अटैक आ गया।

छोटे बच्चे को नहलाते समय वो बहुत कांपता रहता है, डरता है और माता समझती है कि नहाने से डर रहा है, लेकिन ऐसा नहीँ है; असल में ये सब गलत तरीके से नहाने से होता है ।

दरअसल हमारे शरीर में गुप्त विद्युत शक्ति रुधिर (खून) के निरंतर प्रवाह के कारण पैदा होते रहती है, जिसकी स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक दिशा ऊपर से आरम्भ होकर नीचे पैरों की तरफ आती है।

सर में बहुत महीन रक्त् नालिकाएं होती है जो दिमाग को रक्त पहुँचाती है।

यदि कोई व्यक्ति निरंतर सीधे सर में ठंडा पानी डालकर नहाता है तो ये नलिकाएं सिकुड़ने या रक्त के थक्के जमने लग जाते हैं।

और जब शरीर इनको सहन नहीं कर पाता तो ऊपर लिखी घटनाएं वर्षो बीतने के बाद बुजुर्गो के साथ होती है।

सर पर सीधे पानी डालने से हमारा सर ठंडा होने लगता है, जिससे हृदय को सिर की तरफ ज्यादा तेजी से रक्त भेजना पड़ता है, जिससे या तो बुजुर्ग में हार्ट अटैक या दिमाग की नस फटने की अवस्था हो सकती है।

ठीक इसी तरह बच्चे का नियंत्रण तंत्र भी तुरंत प्रतिक्रिया देता है जिससे बच्चे के काम्पने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है , और माँ समझती है की बच्चा डर रहा है ।

गलत तरीके से नहाने से बच्चे की हृदय की धड़कन अत्यधिक बढ़ जाती है स्वयं परीक्षण करिये।
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तो आईये हम आपको नहाने का सबसे सही तरीका बताते है |

बाथरूम में आराम से बैठकर या खड़े होकर सबसे पहले पैर के पंजो पर पानी डालिये , रगड़िये, फिर पिंडलियों पर, फिर घुटनो पर, फिर जांघो पर पानी डालिये और हाथों से मालिश करिये|

फिर हाथों से पानी लेकर पेट को रगड़िये | फिर कंधो पर पानी डालिये, फिर अंजुली में पानी लेकर मुँह पर मलिए | हाथों से पानी लेकर सर पर मलिए।

इसके बाद आप शावर के नीचे खड़े होकर या बाल्टी सर पर उड़ेलकर नहा सकते है।

इस प्रक्रिया में केवल 1 मिनट लगता है लेकिन इससे आपके जीवन की रक्षा होती है। और इस 1 मिनट में शरीर की विद्युत प्राकृतिक दिशा में ऊपर से नीचे ही बहती रहती है क्योंकि विद्युत् को आकर्षित करने वाला पानी सबसे पहले पैरो पर डाला गया है।

बच्चे को इसी तरीके से नहलाने पर वो बिलकुल कांपता डरता नहीं है।

इस प्रक्रिया में शरीर की गर्मी पेशाब के रास्ते बाहर आ जाती है आप कितनी भी सर्दी में नहाये कभी जुखाम बुखार नहीं होगा।

 

वर्तमान परिदृश्य में भी सार्थक सन्देश देते हैं सनातनी शास्त्रों में वर्णित वरदानों से प्रोटेक्टेड अ-सुरों के वध की कथाएँ ।

डॉ योगेश भारद्वाज

*एक गहरी सोच वाली पोस्ट किसी मित्र ने भेजी है।*

अपने धर्मग्रंथों को पढ़िए , ये सारे राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं।

राक्षस भी ऐसे-ऐसे वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए….

एक को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरे, न रात में, न आदमी से मर , न जानवर से, न घर में मरे, न बाहर, न आकाश में मरे, न धरती पर …

तो दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरे।
तो, किसी को वरदान था कि… उसके शरीर से खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरें ,उसके उतने प्रतिरूप पैदा हो जाएं।

तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था।

*लेकिन… हर राक्षस का वध हुआ !!!!!*

हालाँकि… सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं भिन्न भिन्न जगह किया।

लेकिन… सभी वध में एक बात कॉमन रही और वो यह कि… किसी भी राक्षस का वध उसका वरदान विशेष निरस्त कर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया…

ये नहीं किया गया कि, तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं..
और फिर उसका वध कर दिया.

बल्कि… हुआ ये कि… देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान में से रास्ता निकालना पड़ा कि इस वरदान के मौजूद रहते हम इनको कैसे निपटा सकते हैं।

और अंततः कोशिश करने पर वो रास्ता निकला भी…
सब राक्षस निपटाए भी गए।

*तात्पर्य यह है कि… परिस्थिति कभी भी अनुकूल होती नहीं है, अनुकूल बनाई जाती हैं।*

आप किसी भी एक राक्षस के बारे में सिर्फ कल्पना कर के देखें कि अगर उसके संदर्भ में अनुकूल परिस्थिति का इंतजार किया जाता तो क्या वो अनुकूल परिस्थिति कभी आती ??

उदाहरण के लिए चर्चित राक्षस रावण को ही ले लेते हैं.

रावण के बारे में ये _विवशता_ कही जा सकती थी कि…
भला रावण को कैसे मार पाएंगे?

पचासों तीर मारे और बीसों भुजाओं व दसों सिर भी काट दिए..
लेकिन, उसकी भुजाएँ व सिर फिर जुड़ जाते हैं तो इसमें हम क्या करें ???

इसके बाद अपनी असफलता का सारा ठीकरा ऐसा वरदान देने वाले ब्रह्मा पर फोड़ दिया जाता कि… उन्होंने ही रावण को ऐसा वरदान दे रखा है कि अब उसे मारना असंभव हो चुका है।

और फिर.. ब्रह्मा पर ये भी आरोप डाल दिया जाता कि जब स्वयं ब्रह्मा रावण को ऐसा अमरत्व का वरदान देकर धरती पर राक्षस-राज लाने में लगे हैं तो भला हम कर भी क्या सकते हैं?

लेकिन… ऐसा हुआ नहीं …
बल्कि, भगवान राम ने उन वरदानों के मौजूद रहते हुए ही रावण का वध किया।

*क्योंकि, यही “सिस्टम” है.*

तो… पुरातन काल में हम जिसे वरदान कहते हैं… आधुनिक काल में हम उसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्पेशल स्टेटस कह सकते हैं…
जैसे कि… अल्पसंख्यक स्टेटस, पर्सनल बोर्ड आदि आदि.

इसीलिए… आज भी हमें राक्षसों को इन वरदानों (स्पेशल स्टेटस) के मौजूद रहते ही निपटाना होगा..
जिसके लिए इन्हीं स्पेशल स्टेटस में से लूपहोल खोजकर रास्ता निकालना होगा।

और, आपको क्या लगता है कि… इनके वरदानों (स्पेशल स्टेटस) को हटाया जाएगा…

क्योंकि, हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में ऐसा एक भी साक्ष्य नहीं मिलता कि किसी राक्षस के स्पेशल स्टेटस (वरदान) को हटा कर पहले परिस्थिति अनुकूल की गई हो तदुपरांत उसका वध किया गया हो।

और, जो हजारों लाखों साल के इतिहास में कभी नहीं हुआ… अब उसके हो जाने में संदेह लगता है.

*परंतु… हर युग में एक चीज अवश्य हुई है…*
*और, वो है राक्षसों का विनाश.*
*एवं, सनातन धर्म की पुनर्स्थापना।*

इसीलिए… इस बारे में जरा भी भ्रमित न हों कि ऐसा नहीं हो पायेगा।

लेकिन, घूम फिर कर बात वहीं आकर खड़ी हो जाती है कि…. भले ही त्रेतायुग के भगवान राम हों अथवा द्वापर के भगवान श्रीकृष्ण..

राक्षसों के विनाश के लिए हर किसी को जनसहयोग की आवश्यकता पड़ी थी।

और, जहाँ तक धर्मग्रंथों का सार की बात है
तो वो भी यही है कि हर युग में राक्षसों के विनाश में सिर्फ जनसहयोग की आवश्यकता पड़ती है..

ये इसीलिए भी पड़ती है ताकि… राक्षसों के विनाश के बाद जो एक नई दुनिया बनेगी…
उस नई दुनिया को उनके बाद के लोग संभाल सके, संचालित कर सकें।

नहीं तो इतिहास गवाह है कि…. बनाने वालों ने तो भारत में आकाश छूती इमारतें और स्वर्ग को भी मात देते हुए मंदिर बनवाए थे…

लेकिन, उसका हश्र क्या हुआ ये हम सब जानते हैं.

इसीलिए… राक्षसों का विनाश जितना जरूरी है…
उतना ही जरूरी उसके बाद उस धरोहर को संभाल के रखने का भी है।

और… अभी शायद उसी की तैयारी हो रही है।

*अर्थात… सभी समाज को गले लगाया जा रहा है.. और, माता शबरी को उचित सम्मान दिया जा रहा है.*

वरना, सोचने वाली बात है कि जो रावण … पंचवटी में लक्ष्मण के तीर से खींची हुई एक रेखा तक को पार नहीं कर पाया था…भला उसे पंचवटी से ही एक तीर मारकर निपटा देना क्या मुश्किल था?

अथवा… जिस महाभारत को श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र के प्रयोग से महज 5 मिनट में निपटा सकते थे भला उसके लिए 18 दिन तक युद्ध लड़ने की क्या जरूरत थी?

लेकिन… रणनीति में हर चीज का एक महत्व होता है… जिसके काफी दूरगामी परिणाम होते हैं.

इसीलिए… कभी भी उतावलापन नहीं होना चाहिए.
और फिर वैसे भी कहा जाता है कि *जल्दी का काम शैतान का*

क्योंकि, ये बात अच्छी तरह मालूम है कि…. रावण, कंस, दुर्योधन, रक्तबीज और हिरणकश्यपु आदि का विनाश तो निश्चित है तथा यही उनकी नियति है..!!
*लंका जल रही है,*
*अयोध्या सज रही है और शबरी राष्ट्रपति बन रही है… इतिहास से सीख लेकर कार्य जारी है!*

_जय महाकाल, जय सनातन जय मौलिक भारत…!!!_

*नोट : धर्मग्रंथ रोज सुबह नहा धो कर सिर्फ पुण्य कमाने के उद्देश्य से पढ़ने के लिए ही नहीं होते ..*

*बल्कि, हमारे धर्मग्रंथों के रूप में हमारे पूर्वज/देवताओं ने अपने अनुभव हमें ये बताने के लिए लिपिबद्ध किया ताकि आगामी पीढ़ी ये जान सके कि अगर फिर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो उससे कसे निपटा जाए।*
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डर के आगे जीत है, कोई काम शर्तो को स्वीकार मत करो, करो तो बाजी अपने हाथ रखो

एक गुंडा शेविंग और
हेयर कटिंग कराने के लिये
सैलून में गया.

नाई से बोला -”अगर मेरी
शेविंग ठीक से से बिना कटे
छंटे की तो मुहमाँगा दाम दूँगा !
अगर कहीं भी कट गया तो
गर्दन उड़ा दूंगा !”
नाई ने डर के मारे मना कर दिया.

गुंडा शहर के दूसरे नाइयों के पास गया और वही बात कही.
लेकिन सभी नाईयो ने डर के
मारे मना कर दिया.

अंत में वो गुंडा एक गाँव के
नाई के पास पहुँचा.
वह काफी कम उम्र का लड़का था.
उसने कहा – “ठीक है,
बैठो मैं बनाता हूँ”.

उस लड़के ने काफी बढ़िया
तरीके से गुंडे की शेविंग
और हेयर कटिंग कर दी.
गुंडे ने खुश होकर लड़के
को दस हजार रूपये दिए.
और पूछा – “तुझे अपनी
जान जाने का डर नहीं था क्या ?”

लड़के ने कहा – “डर ? डर
कैसा…?
पहल तो मेरे हाथ में थी…”.

गुंडे ने कहा – “‘पहल तुम्हारे
हाथ में थी’ .. मैं मतलब नहीँ
समझा ?”

लड़के ने हँसते हुये कहा –:
“भाईसाहब,
उस्तरा तो मेरे
हाथ में था…
अगर आपको खरोंच भी
लगती तो आपकी गर्दन
तुरंत काट देता !!!”

बेचारा गुंडा ! यह जवाब
सुनकर पसीने से लथपथ हो
गया।

Moral : जिन्दगी के हर मोड
पर खतरो से खेलना पडता है
नही खेलोगे तो कुछ नही कर
पाओगे
यानि
डर के आगे ही जीत है…
बेच सको तो बेच के दीखाओ
अपने अहंकार (Ego) को
OLX पर.,

एक रुपीया भी नहीं मीलेगा !!
तभी पता चलेगा की
क्या फालतु चीज पकड रखी थी अब तक…!
..ye hai thoughts..

स्वास्थ्य पर सोचना ज़रुरी है, सोचें, बाँकी मर्जी आपकी, मेरी।सुनना नही ज़रूरी, पढ़ना आवश्यक है।

✍️✍️
*क्या मेडिकल माफिया सही में सक्रिय है? 🤔*

_नीचे दी गईं कुछ बातों को अपने जीवन से तालमेल करते हुए विचार करें कि……_

*1. पहले सिगरेट को प्रमोट किया ।*

*2. फिर प्राणघातक रिफाइंड को promote किया।*

*3. सरसों के शुद्ध तेल और देशी घी का विरोध किया।*

*4. बच्चों के लिये अमृत समान देशी गाय के दूध और शहद के स्थान पर, कैंसर कारक sikkmed milk powder को promote किया।*

*5. खिचड़ी के स्थान पर 7 दिन पुरानी ब्रेड को promote किया।*

*6. सेंधा नमक के स्थान पर समुद्री नमक को promote किया।*

*7. मधुमेह एवं रक्तचाप के मानक क्यों बदले जाते रहे हैं?*

*8. बीमारी के समय खाने पीने के निर्देश देने की प्रथा बंद करके क्यों अन्य बीमारियों को बढा़ने में सहयोग किया गया?*

*9. आपरेशन से बच्चा पैदा होना, घुटनों का निरन्तर बढ़ता प्रत्यारोपण, जीवन पर्यंत रक्तचाप व मधुमेह की गोलियां खाना क्या कहीं माफिया का कुचक्र तो नहीं?*

*क्या मेडिकल माफिया ने इन सबको आपकी भलाई के लिये prmote किया 👇👇👇*

*1.क्या किसी मेडिकल माफिया ने आपको बताया कि 👉 उच्च रक्तचाप (BP) , URIC ACID और अन्य acid आदि की समस्या की जड़ चाय है ?*

— *मैंने जब चाय छोड़ दी दोनों समस्याओं ने मेरा पीछा भी छोड़ दिया।*

*2.क्या किसी मेडिकल माफिया ने आपको 👉 मधुमेह (शुगर) की जड़ गेहूँ के आटे के बारे में बताया ? कि अगर आप ज्वार, बाजरा, जौ, चने के मिश्रित आटे का प्रयोग करेंगे तो मधुमेह आपका पीछा छोड़ देगा!*

*3. क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 केमिकल युक्त चीनी के स्थान पर देशी खांड जिसमे कोई केमिकल नहीं पड़ता उसके बारे में बताया ?*

*4.क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 फ्रिज के ठंडे पानी से होने वाले सिरदर्द के बारें में बताया ? मैंने ठंडा पानी छोड़ दिया उसके बाद मेरा सिरदर्द से पीछा छूटा!*

*5 क्या किसी मेडिकल माफिया ने 👉 AC कि हवा से शरीर कि पसीने से होने वाली प्रक्रिया मे बाधा बताया जो कालान्तर मे शरीर कि प्राकृतिक सफाई न होने से किडनी व हृदय रोग का कारण बनता है?*

*6.क्या किसी मेडिकल माफिया ने हानिकारक विटामिन D के स्थान धूप- स्नान लेने की सलाह दी,*

*कैल्शियम की गोलियों जिससे कब्ज़ हो जाती है उसके स्थान पर चूने की गोलियों के सेवन की सलाह दी,*

*विटामिन C की गोलियों के स्थान पर खट्टे फल खाने की सलाह दी,*

*zinc की गोलियों के स्थान पर प्रातः ताम्रपत्र में जल पीने की सलाह दी।*

*7. अब चाउमिन, मोमोज जो गली गली बेचा जा रहा है उस के मैदे, अझिनोमोट्टो व एसिड से होने वाले नुकसान के बारे मे किसी भी मेडिकल डाक्टर से कभी सुना है कि किसी ने परहेज करवाया ??*

*इस का परिणाम भयंकर कैन्सर होगा जो जीवन भर कि कमाई, दवाई के नाम पर इन को दे दो और जान से हाथ धो बैठो । दर्द जो होगा वह अलग ।*

*जीवनशैली रोगों की बात तो हो रही है परंतु जीवनशैली सुधार की बात क्यों नहीं हो रही?* 🧐

*अगर मेडिकल माफिया आपको सही सलाह देगा तो एक तो यह इससे हाथ धो बैठगा दूसरा रोगी से*

*या तो यह तथाकथित-*

*MEDICAL SCIENCE झूठी है या इसकी नीयत में खोट है। मानना न मानना भी आपकी मर्जी है। आज के समय डाक्टर बनने में जो लाखों-करोड़ खर्चा आता है वो मजबूरन कहीं से तो निकालना पडेगा।*

👉 *लेकिन इन सब प्रश्नों पर विचार अवश्य करें, कुछ और भी प्रश्न आपके मन में आये होंगे उनको भी विचारें और आगे बढ़े……..*

*आपका स्वास्थ्य आपके हाथ में है न कि डॉक्टर के हाथ में* 💯 ℅

*प्राथमिक स्वास्थ्य शिक्षा हम सभी के लिए अति आवश्यक है।* 👌

  1. 🙏🙏🙏
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