Monday, December 23, 2024
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क्या एक दिन का आयोजन से शहीदों को श्रद्धांजलि काफ़ी है ? सम्पूर्ण आदिवासी समाज का सम्यक विकास सच्ची श्रद्धांजलि के लिए ज़रूरी नहीं ?

बस एक दीनी कार्यक्रम, सिद्धो कान्हू की मूर्ति पर माल्यार्पण तथा परिसम्पत्तियों का वितरण मात्र है श्रद्धांजलि ???

आदिवासी समाज की सम्पूर्ण विकास ही होगा शहीद महापुरुष चारो भाईयों और वीरांगनाओं दोनों बहनों को सच्ची श्रद्धांजलि।

तकरीबन 157 वर्ष पहले संथाल विद्रोह की कहानी कहता पाकुड़ के सिद्धो-कान्हो पार्क में स्थित मार्टेलो टावर । इस टावर पर चर्चा के बिना के बिना पाकुड़ ही नही बल्कि पूरे संथालपरगना और संथाल जनजाति की वीरता, त्याग तथा स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत के साथ अन्याय प्रतीत होगा । मुझे इस समय ये लिखते हुए भी संकोच सा लगता है, कि पार्क के आँगन में ये टावर है, या फ़िर संथाल वीरों की खून से सींची जमीन की गोद मे पार्क है ! सन्तोष है, कि पार्क का वीर शहीद सिद्धो-कान्हो के नाम पर रखा गया। और इसमें लगे एक एक पौधे एक एक वीर संथाल शहीदों की कहानी कहता नज़र आता है।

मुझे ये कहने में संकोच नहीं होता कि इस टावर को देखते ही कितने सवालों के थपेड़े मस्तिष्क पर पड़ता है , और फ़िर स्वतंत्रता दिवस , गणतंत्र दिवस तथा हूल दिवस पर वीर शहीदों की कहानियों से अखबारों के पेज इस क़दर भरा-पूरा होता है, कि ये सवाल उस भीड़ में कहीं खो सा जाता है।

जब भी इस टावर पर कुछ कहा गया, तो संथाल आंदोलन को विद्रोह कह दिया गया । ये विद्रोह मात्र नहीं था , ये देश को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए उग्र होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने को प्रेरित करने की कहानी कहता है। इस आंदोलन ने उग्र विरोध को पँख और सोच दिया , लेकिन इस टावर ने कई सवाल भी खड़े किये, जो आज भी खामोशी से खड़ा हमें पूछता है।

सोचिए ब्रटिश सेना हमारे संथाल वीरों से किस क़दर भयभीत थे। कि एक ही रात में गगनचुम्बी टावर नुमा किला बना डाला ! इसके अंदर से गोलियां चलती ब्रिटिश पुलिस-सेना और अपने पारम्परिक हथियारों के साथ सीना ताने खड़ी संथाल वीरों की सेना ! कहते हैं दस हज़ार संथाल आंदोलन कर्ता अंग्रेजों की गोली से मारे गये थे। सोचिए गोलियों से छलनी होते अपने साथी को देखने के बाद भी तीर-धनुष लेकर संथाल वीरों ने कैसे उनका सामना किया होगा ?

इन सवालों के साथ और कुछ सवाल मुझे हमेशा कुदेरता है , कि क्या ब्रिटिशों ने इस टावर को बनाने के लिए मजदूर भी ब्रिटेन से मंगवाया था ?

क्या इस ऐतिहासिक टावर के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ होनी चाहिए, ? क्या पुरातत्व विभाग को इसके स्वरूप को मूल रूप में कायम रखने की जिम्मेदारी नही देनी चाहिए ?

क्या इस टावर के मूल स्वरूप पर लालफीताशाही और ठेकेदारी के काले कारनामों ने दाग नही लगा दी ?

कई सवाल हैं, जो मुझे कुरेदता है

सबसे बड़ा सवाल कि किन परिस्थितियों में इस टावर के पीछे बिलकुल सटे हुए पत्थर के खदान दशकों पहले खुद गए ? सोचिए कि गहरे खुदे पत्थर खदान में कितनी ब्लाष्टिंग हुईं होंगी , लेकिन वीर संथाल शहीदों की कहानी कहता ये टावर खड़ा रहा।

उस समय डॉ आर के नीरद, कुमार रवि दिगेश और स्वयं मेरी कलम नही सिसकती और अपनी आँसुओं से अखबारों के सीनों को नहीं चीरती तो शायद किसी दिन पत्थरों के बीच की ब्लाष्टिंग में ये कहानियां सुनता टावर भी पिस गया होता।

खैर अभी कुछ दिन पहले वीर संथाल शहीदों के कहानी पर पर्दा डालने की फिर एक प्रयास हुआ था, लेकिन आदिवासी छात्रों ने आंदोलन कर उसे सफ़ल नहीं होने दिया।

अब कम से कम टावर के पीछे के खदानों में भरे पानी और उसके संरक्षण तथा सौंदर्यीकरण के साथ इसकी भब्यता बड़ाई जा सकती है। संथाल शहीदों के नाम और गाँव का सर्वे और एक शहीदों की स्मृति में शहीद स्मारक दिल्ली की तर्ज़ पर बनाया जाय, तो……

कुछ सवाल हैं, जिनपर विचार जरूरी है। शहीद महापुरुषों के अलावे शहीद हुए10 हजार सन्थाल वीरों का सर्वे कर , उनका नाम यहाँ खुदवाना चाहिए। उनके वंशजों को भी सरकारी नौकरी , शिक्षा , रोजगार और सुविधाएं देनी चाहिए।

और क्या एकदिनी कार्यक्रम काफ़ी है श्रद्धांजलि के लिए। सम्पूर्ण आदिवासी समाज का विकास सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी ?

आप भी इन सवालों पर विचार जरूर करें,निवेदन है।

सिर्फ़ हूल दिवस ही नही ,हम और हमारी पीढ़ियाँ उन शहीदों का ताउम्र कर्ज़दार है और रहेगा।

उन्हें सहस्र नमन, असंख्य नमन🙏🙏🙏

माना कि तू हसीनों में हंसीन है , पर मेरी भी सूरत बुरी नहीं : बेरोजगार संघ

*युवा बेरोजगार दल ने पाकुड़ जिले के स्थानीय बेरोजगार युवाओं के लिए कोल माइंस को अपनी मांग को लेकर दिया आवेदन।*

बेरोजगार संघ ने निकाली मोटरसाइकिल रैली । रोज़गार के लिए कोल कम्पनी को सौंपा मांगपत्र। 26/06/2022 को युवा बेरोजगार दल, पाकुड़ के द्वारा पाकुड़ के स्थानीय बेरोजगार युवाओं के समस्याओं को लेकर लगभग 500 की संख्या में अमड़ापाड़ा स्थिति कोल कंपनी डी. बी. एल. एवं बी.जी. आर. को अवगत कराया गया।कार्यक्रम दल के अध्यक्ष अमरदीप गोस्वामी की अध्यक्षता में किया गया।वहीं दल के सचिव सागर चौधरी ने मीडिया बंधुओं को बताया की हम साबों ने कोल कंपनी को अनुरोध पूर्वक बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिले इस बात को कोल कंपनीयों के आलाधिकारियों के समकक्ष रखा।साथ ही उन्होंने भी बात को समझते हुए स्थानीयता को प्रोत्साहन की बात को स्वीकार करते हुए समस्याओं को दूर करने की बात कही।वहीं दल के अध्यक्ष ने कहा की मांग अगर पूरा नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।
कार्यक्रम में दल के कोषाध्यक्ष मिलान कुमार मंडल,उपाध्यक्ष खेरूल आलम,राजेश यादव,श्रवण कुमार साहा, सुमंतो दास,रेजाउल हक़,एंथोनी मरांडी,राम ठाकुर,प्रतीक तिवारी, अजय भगत,प्रतीक घोष,शुक्कू तुरी,केताबुल शेख,आसिबुल रहमान, अबुल हसन,राहुल चौरसिया, महिला मोर्चा कुंती साहा, किरण टुड्डू एवं अन्य कई युवा-महिला मजूद थी।

ग्राम विकास में स्थानीय लोगों की सहभागिता जरूरी: दिब्यमान

ग्राम विकास की संकल्पना करना स्थानीय स्तर की सहभागिता के बिना संभव नहीं -विश्व दिव्यमान दुबे (शिक्षक सह ग्रामीण विकास पलामू )

ग्राम विकास भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है,आजादी के पहले से ही ग्रामीण विकास एवं उनकी अर्थव्यवस्था को कुचला जा रहा है आज ग्रामीण विकास हाल बदतर हो गयी है, सरकारें ग्रामीण विकाश को छोड़ शहरी विकास की ओर ज्यादा ध्यान दें रही है यही कारण है की लोग आज गावं छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहें है, रोजगार का अवसर भी लगभग गावं में समाप्त होने के कगार पर है, नए नए टेक्नोलॉजी का असर ग्राम विकास में साफ साफ देखा जा सकता है, आज खेती के लिए आधुनिक वस्तुएँ और औजारों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिस कारण रोजगार के अवसर भी ख़त्म हो गयी है, दूसरी तरफ अगर देखे तो शहरीकरण भारत के लिए आज एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। यह वो प्रक्रिया है जिसमें लोग अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरीकरण मुख्य रूप से उच्च आय और उत्पादकता के साथ जुड़ा हुआ है। जहां यह समाज को बड़े और कुशल श्रम बाजार उपलब्ध कराता है वहीं लेनदेन की लागत को भी कम करता है। यही कारण है कि लोग शहरीकरण से आकर्षित हुए हैं। किंतु शहरीकरण के संदर्भ में कुछ मिथक भी हैं। दरअसल शहरीकरण के शुरूआती दौर में नीति निर्माताओं ने कृषि निवेश और ग्रामीण भूमि सुधार के बजाय पूंजी-गहन औद्योगिकीकरण और शहरी बुनियादी ढांचे पर ज़ोर दिया, जिससे शहरीकरण प्रभावी हुआ तथा ग्रामीण विकास असंतुलित हो गया। किंतु यह दौर हमेशा ऐसा ही नहीं चला। हालांकि शहरीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव, जैसे प्रदूषण, यातायात क्षेत्र में भीड़-भाड़, जीवन यापन की उच्च लागतें आदि सामने आये किंतु इसने देश के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा दिया जिसमें ग्रामीण क्षेत्र का आर्थिक विकास भी शामिल है। शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्र आपस में जुड़े हुए हैं। शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी अनुपात के बीच दो-तरफ़ा संबंधों के लिए लेखांकन करते समय, हम पाते हैं कि शहरीकरण (या सबसे बड़ी शहर की आबादी) शहरी-ग्रामीण असमानताओं को बढ़ाती है। किंतु वहीं कुछ ऐसे आंकड़े भी सामने आते हैं जिन्हें देखकर यह लगता है कि उच्च स्तर पर, शहरीकरण से शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने की उम्मीद की जा सकती है। यह वही है जिसकी हम उम्मीद करते हैं क्योंकि शहरीकरण से न केवल शहरी निवासियों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि समतुल्य श्रम प्रवाह और बराबर आय होने के कारण ग्रामीण आबादी भी विकास को साझा करती है।शहरीकरण के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है। शहरीकरण ने कई गैर-कृषि रोज़गारों को बढ़ावा दिया जिन्होंने भारत के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी दी। पिछले दो दशकों के दौरान, ग्रामीण भारत में गैर-कृषि गतिविधियों में काफी विविधता आई है। जिसने भारत के शहरों और ग्रामीण इलाकों को इतने करीब कर दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। शहरी खर्च में 10% की वृद्धि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार में 4.8% की वृद्धि को बढ़ावा देती है। आपूर्ति श्रृंखला पूरे देश में मज़बूत होने के कारण, शहरी मांग बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकता है। ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था उत्पादन संबंध, उपभोग संबंध, वित्तीय संबंध और प्रवास संबंध के माध्यम से एक दूसरे से सम्बंधित हैं। पिछले 26 वर्षों में एक अर्थमितीय दृष्टिकोण के अध्ययन से पता चलता है कि शहरी उपभोग व्यय में 100 रुपये की वृद्धि से ग्रामीण घरेलू आय में 39 रुपये की वृद्धि होती है। जिस प्रणाली के माध्यम से यह होता है वह ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ाती है। आंकड़ों की मानें तो पिछले दशक में देखी गई शहरी घरेलू खपत वृद्धि दर यदि निरंतर बनी रहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 63 लाख गैर-कृषि रोज़गार उत्पन्न हो सकता है। पिछले एक दशक में शहरी अर्थव्यवस्था में 5.4% की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था औसतन 7.3% बढ़ी है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 2000 में भारत की जीडीपी (GDP) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का 49% हिस्सा था जबकि 1981-82 में यह 41% और 1993-94 में यह 46% था।ग्राम विकास में स्थानीय स्तर की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है चाहे वो योजनाओं को सुचारु ढंग से अपनाने की बात हो या उसे उचित ढंग से इम्प्लीमेंट करवाने की बात हो इनकी भूमिका अहम होती है इसलिए पंचायतीराज का भी गठन किया गया, गावं की सरकारें यानि स्थानीय लोग अपने जरुरत के हिसाब से योजनाए को बनाकर ग्राम स्तर से होते हुए राज्य एवं केंद्र स्तर तक भेजा जाय और उसी अनुसार ग्राम विकास का नींव रखी जाय.सरकार को भी जनता के हित के लिए योजना की सफलता और निरंतरता, उस योजना जनता द्वारा अपनाने और सहभागिता पर निर्भर करती है| अत: प्रत्‍येक स्तर पर जनता की सहभागिता सुनिश्चित करना चाहिए|स्थानीय सरकार की व्यवस्था 30 वर्ष से अधिक पुरे कर लिए है और आज भी इनकी दुर्दशा ये है की ये विकास की नींव अपने दम पर नहीं रख पाते बल्कि दिये हुए योजनाओं का बोझ और उनको इम्प्लीमेंट कराते कराते पुर 5 वर्ष ख़त्म हो जाती है पुनः वही चुनावी प्रक्रिया से होकर गुजरनी पड़ती है यही सच्चाई है, ऐसे में विकास की बात करें तो न तो स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिंचाई, पानी, रोजगार पर खरे उतर पाते है आज भी जर्ज़र सड़क, पलायन के लिए मजबूर लोग और विकास की आश लगाए बैठे ग्रामीणों की सपना कब तक पुरी होती है. या सपना ही रह जाता है देखने वाली बात है, सरकार को समय समय पर केंद्र स्तरीय एवं राज्य स्तरीय जाँच 15 वां वित्त हो या मनरेगा सभी को कराना चाहिए तभी विकास का सही मूल्यांकन हो पाएगा, कुटीर उद्योग, रोजगार, शिक्षा आदि पर ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए ताकि हरेक संभव विकास की सीढ़ी चढ़ पाय पांचयती राज मजबूत हो सके.लोग स्वरोजगार की ओर बढ़ सके सपनों की ऊँची उड़ान भर सके, ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुधरेगा तभी भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार होने की संभावना है. इसलिए सरकार को इस ओर ध्यान देनी चाहिए ताकि जिस संकल्पना के साथ पांचयती राज का सपना देखा गया था वो पूरा हो सके और भारत हृदय गावों में बसता है इसलिए इसे स्वच्छ और सुन्दर बनाने में सबकी भूमिका अत्यंत आवश्यक है ग्रामीण विकास संभव है.ग्रामीण विकास के महत्व को स्थानीय सरकार को समझनी होगी, मुखिया, वार्ड, प्रमुख आदि को अपना कार्य को समझना होगा और अपनी शक्तियों का प्रयोग ग्रामीण विकास में लगानी होगी सबको मिलकर कार्यशाक्तियों का प्रयोग करना होगा, समय समय पर प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी जिला स्तरीय देनी होगी तभी विकास संभव है,सरकार को स्थानीय सरकार की कार्यशाक्तिया को बढ़ानी होगी ये अपने स्तर से योजना को बना कर केंद्र और राज्य तक भेजे और इस पर मुहर लग सके.अपने स्तर से कार्य को करें,ग्रामीण विकास में भूमिका निभा सके,निष्पक्ष एवं पारदर्शिता के साथ काम हो,सरकार कमिटी इस पर गठन करें, विकास की संकल्पनाय हो.

भारतीय पुरानी जीवनशैली और वास्तु का मानवीय जीवन पर पड़ता है सकारात्मक प्रभाव

पूर्वजों और अवतारों के जीवन जीने के गूढ़ संदेश

श्रीकृष्ण ने नदी में नग्न स्नान करती गोपियों के कपड़े चुराकर सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संदेश देने का मौन लीला किया। भारतीय स्त्रियाँ पर पुरुष के सामने नग्न नहीं होतीं। ये संस्कृति है। क्योंकि मान्यता है कि पानी मे वरुण देवता का निवास है। स्त्रियों के शरीर की रचना ऐसी होतीं हैं । कि नग्न होकर नदी में स्नान से, परजीवी जीवों के द्वारा उनको हानि पहुँचाई जा सकती है। ये वैज्ञानिक सन्देश है। संस्कृति और विज्ञान दोनों स्त्रियों के नग्न स्नान को वर्जित करता है।

हमारे पूर्वजों ने भी अपनी जीवनशैली से हमें कई सन्देश दिए हैं। जो शास्त्र और विज्ञान से जुडा रहा है। निवास भी ग्रहों की युतियों को ध्यान में रखकर बनाई जाती थी।

एक जानकर मित्र के अनुसार–

पहले कैसे किया जाता था अपने घर को शनि राहु और मंगल के नकारात्मक प्रभाव को दूर। कुछ घरों में अभी भी अपनी परम्परा को लोग बहुत अच्छे से निभाते हैं। जिन लोगों को नहीं पता कि हर शुभ कार्य में सबसे पहले घर की दहलीज  के ऊपर तोरण क्यों लगाई जाती है। जब घर पर नई बहू आती है घर की चौखट में क्यों दोनों तरफ तेल गिराया जाता है। तिक्खट की जगह अगर चौखट होगी तो कुनबा बढ़ेगा और संगठित रहेगा। दरवाजे की चौखट और राहु ग्रह ( दहलीज) कोई समय था जब मुख्य दरवाजे पर चौखट रहती थी यानी की फर्श पर भी ऊँचा कर के लकड़ी का बल्ल्म लगाया जाता था ( चार बलियों  का फ्रेम ) परन्तु अब तिखट रह गयी है , ( यानी की तीन बल्लियों का फ्रेम ) जो बल्लम फर्श पर सटा रहता था। उसे शनि के रूप में राहु के बुरे प्रभाव को रोकने के लिए लगाया जाता था और जब भी कोई शुभ वस्तु , पशु , नई बहु , बाहर से आये अंदर आती थी तो उस चौखट के दोनों तरफ सरसों का तेल  गिराया जाता था। और राहु को शनि वास्ता दिया जाता था की तुम्हें तुम्हारे गुरु की सौगंध है कोई गड़बड़ मत करना। जब नई बहू प्रवेश करती थी तो माँ जोड़े के सर से पानी ( चंद्र )  वार कर कुछ पी लेती थी और कुछ दहलीज पर गिरा देती थी की राहु को ‘चन्द्र’ का वास्ता दिया जाता था की कोई दिक्कत न देगा और दरवाजे के ऊपर लाल धागे से तोरण बांध कर ‘मंगल’ का पहरा बिठाया जाता था। तब इस वजह परिवार बड़ा और एक ही जगह रहते हुए सन्तुष्ट था।

मुख्य द्वार पर तिखट नही चौखट लगवाएं। वो भी लकड़ी से बनी, इससे परिवार नहीं टूटेगा

जब से मुख्य द्वार से चौखट गायब हुई परिवार टूटने शुरू हो गए हैं। अब कहां वो बातें , माँ और दादी माँ को याद था, पर अगले बच्चों की माँ को याद  रहेगा या नहीं कोई गारंटी नहीं है क्योंकि दरवाजे की चौखट तो रही नहीं अब तो तिखट  रह गयी है और न ही लोहे की साँकल वाला कुण्डा ( शनि ) रहा जिस पर ताला लगाया जाता था। उस कुण्डे को खड़का कर ही दरवाजा खुलवाया जाता था। जहां शनि की आहट किसी बुजुर्ग के खांसने की तरह  होती थी। वहां सब बहुएं सर को पल्लु से ढक लेती थी और राहु (ससुर) शांत रहता था। अब तो वक्त बदल गया, मुसीबतें बढ गयी।

मेरा आज का पोस्ट से बहुत लोगों को अपना गांव  जरुर याद आयेगा।

क्यूँ ख़ामोश हो गया अवैध चालान का मामला ? बगली झाँक रहे स्पष्टीकरण पर MO । क्या झारखंड एक अलग देश है?

मुफस्सिल थाना पाकुड़ में Puja तथा ED जाँच की गहमागहमी के बीच एक अवैध चालान का मामला दर्ज। काण्ड संख्या-128/22धारा -467/468/420/34आई पी सी पर अखबार रंगे। ख़ूब लिखा गया। मेसर्स राहुल मेटल्स, प्रोपराइटर गोपी साधवानी पिता स्व.चंदूमल साधवानी पर कलम ख़ूब गरजे। लेकिन अब तो प्रशासन के साथ कलम भी ख़ामोश नज़र आ रहा है। पुलिस तथ प्रसाशन की तहकीकात कहाँ तक सधती है, ये तो वक़्त बताएगा।

आश्चर्य है, जो चलान ऑन लाइन निकाला ही नहीं गया। उसी एक नम्बर की चालान पर अलग अलग गाड़ियाँ पत्थर कैसे ढो रही थी ? ग़ज़ब ये है, कि वो चालान ऑन लाइन नहीं निकला था। उसी नम्बर के चालान पर कई गाड़ियाँ पत्थर लेकर एक ही चेक पोष्ट से गुजरती रही। मतलब साफ़ है कि सभी गाड़ियों के पास जब चलान थे, तो क्लोन चलान बना होगा। इस पर मैंनें ही कई बार लिखे थे। लेकिन कभी जाँच नहीं हुई।

किसी अखबार में ये सवाल नहीं उठा कि साहेबगंज का चालान पाकुड़ में कैसे ? एकदम उलटे रूट पर! ऐसे ही पाकुड़ के क्लोन चलान साहेबगंज के कोटालपोखर रुट पर भी चलता है।

खैर एक से एक चलान माफिया, डॉन सरीखे यहाँ दशकों से सक्रिय हैं। उसी मुफस्सिल थाने के थाना कांड संख्या 83/12/4/2008 तथा 124/ 14/6/2008 के पुलिस डायरियों को अगर खँगाल कर देखा जाय तो राख से रसूख़ तक पहुँचने वाले कई लोगों की कलई खुल जाएगी। मैं ED से अनुरोध करूँगा कि इन थानाकांडो को भी अपनी गिरफ्त में लेकर जाँचे। इतने माल कई अचानक बने मालदारों के पास जप्त होंगे कि……।

अवैध चालानों की कुंडली तथा पाकुड़ और साहेबगंज के खदानों की मापी घनफुट में निकले हिसाब से कर लिया जाय। तो गबन किये गए पैसों से झारखंड की 5 साल की बजट बन जाय। अभी बहुत कुछ खुलेगा। बस ED खंगालती जाए, राज निकलते जाएँगे।

बंगाल के तर्ज पर चल रही झारखंड सरकार के कारनामे देख ऐसा लगता है कि भारत एक देश नहीं। बल्कि हरेक राज्य अपनेआप में एक देश है। जिसका अपना कानून है।
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ED की नोटिश पर जितने भी माइनिंग ऑफिसर ने हाज़री बनाई। उन सभी को राज्य स्तर पर स्पष्टीकरण पूछा गया है कि किससे आदेश लेकर वे ED के सवालों का जवाब देने गए।

अब सभी हाज़री बनानेवाले MO बगली झाँक रहे हैं।

ग़ज़ब तमाशा है, राज्य सरकारें अगर केंद्रीय एजेंसियों को सहयोग न करे तो इसे विडम्बना ही माना जायेगा। खैर ये माइनिंग चलान के मामले में बड़े पूर्व माफ़िया अब तो सत्ताधारी पार्टी के मूर्धन्य पदों पर विराजमान हैं। कोई इनका क्या बिगड़ सकता है, जब सइयां ही कोतवाल हैं। खुलेगा राज और बहुत। डीसी पकुड़ दागों से बचने की जुगत में बहुत कुछ कर रहे हैं। बड़े जनप्रतिनिधियों ने डीसी के ट्रांसफर को जी जान एक कर दिया है, लेकिन कोई नया डीसी पकुड़ आना नहीं चाह रहा।

देखा जाय वर्तमान डीसी पर लक्ष्मीपुत्रों का वजन ज़्यादा भारी पड़ता है, या …….

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ED के ख़ौफ़ से धीरे धीरे खुल रहे खनन से जुड़े कई राज, अब चालान की चलन पर भी पड़ी प्रशासनिक नज़र

क्यों हम हमेशा अपना ही पैर कुल्हाड़ी पर दे मारते हैं ? सोचिए, चिंतन कीजिए

पैर कुल्हाड़ी पर मत मारिये , सोचिए पल भर रुक कर क्या कर रहे आप, विरोध या उपद्रव!

पिछले कई दिनों से बिहार के एक गांव में फंसा हुआ हूँ। चारों ओर से सिर्फ उपद्रव की ख़बर मिल रही है। जिस गाँव और जिनके घर आया हूँ, उन्होंने रोक रखा है। इस उपद्रव के माहौल में सुरक्षा के मद्देनज़र रोके गए हैं।

खैर सरकार के किसी भी निर्णय पर असंतोष व्यक्त करना, भारत में संवेधानिक अधिकार है। विरोध शांति के साथ सौम्यता के साथ हो, स्वागत है। लेकिन बलात्कारी मानसिकता शांति और सौम्यता की भी चीरहरण कर बैठता है। क्या अभी अग्निपथ विषय पर जो विरोध राह भटक कर हिंसक हो गया है। इस पर विरोध करने वाले लोगों को सोचना नहीं चाहिए ? मैं तो चिंतन करता हूँ। इस हिंसक विरोध पर अनन्त सवाल हैं। स्वयं से सवालों का जवाब भी मिलता है। किंतु इस माहौल में सवालों पर प्रस्तुतिकरण भी बेकार-नाहक़ होगा।

कई ट्रेनों में आग लगाई गई। रेलवे ने ट्रेनों को रद्द किया। हमारे आरक्षित टिकट रद्द हुए। मैं अकेला शिकार नहीं इनका, हजारों ज़ख्म आँसू बहा रहे”बच्चन”।

  1. ख़ुद उपद्रवी और उनके घरवाले भी परेशान हैं, अपनी ही बेअदबी से। ये कैसा विरोध है ?😢
    सोचिए, चिंतन कीजिए।

अवैध पत्थर के साथ अवैध कोयला खनन परिवन भी ED को दे रहा मौन आमंत्रण

हाइलाइट्स

  • अवैध पत्थर के साथ अवैध कोयला खनन परिवन भी ED को दे रहा मौन आमंत्रण।
  • कब आओगे ? एक बार कोयले की कालिमा में खँगाल तो जाओ माननीयों के सफ़ेद चेहरे !
  • कलम की छाँव भी कोयले को मिलता है भाई।
  • सन 2020 में घटी थी ग़ज़ब की घटना। पूरी मालगाड़ी किया गया था जप्त।
  • एक बार पीछे झाँक कर जानिए पाकुड़ के अवैध खनन की अंधेरी गलियों को।

न विभाग ने बिना जब्त किया था। यह कारवाई जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा के निर्देश के आलोक में तात्कालीन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने की थी। कोयले से लदे मालगाड़ी की बोगियों को गार्ड को हैंड ओवर करने की कार्रवाई हुई थीं।

बिना परमिट के मालगाड़ी से कोयला ढुलाई मामले में पश्चिम बंगाल पावर डेवलोपमेन्ट कॉपोर्रेशन के साइड इंचार्ज राम विलास हांसदा को हिरासत में लिया गया था।वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया ।कि बिना ट्रांजिट परमिट के कोयला ढुलाई रेल मार्ग से नही किये जाने ।को लेकर जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी द्वारा पाकुड स्टेशन मास्टर के जरिये। हावड़ा डिवीजन के डिविजनल मैनेजर को पत्र लिखा गया था। बावजूद कोयले की ढुलाई कर सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाया जा रहा था।

सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचाने का काम सरकारी अमले और जुमले कर रहे है। जिस विभाग और विभाग के अधिकारियो को शत प्रतिशत राजस्व वसूली में अपनी भूमिका निभानी है वे ही पाकुड़ में कोयला का अवैध परिवहन करवाने में संरक्षक की भूमिका निभा रहे है। पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड स्थित पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक पश्चिम बंगाल पावर डेवलॉपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को आवंटित किया गया है। आवंटित इस कोयला खदान में कोयला का उत्खनन कर उसका परिवहन बीजीआर माइनिंग एंड इंफ्रा लिमिटेड कर रही थी।

सरकार ने कोयले को वनोपज मानते हुए इसके परिवहन के लिए ट्रांजिट परमीट की अनिवार्यता सुनिश्चित की है। सरकार ने प्रति मीट्रिक टन 58 रुपए राजस्व भी कोयले के परिवहन के विरूद्ध निर्धारित किया है। कोयले का परिवहन करने के पहले ट्रांजिट परमीट लिया जाना है। लेकिन पाकुड़ अमड़ापाड़ा लिंक रोड पर पचुवाड़ा नोर्थ कोल ब्लॉक से लोटामारा रेलवे साइडिंग तक कोयले की ढुलाई करने वाली कंपनी सरकार के इस आदेश की धज्जी उड़ा रही है। सरकार के आदेश की अनदेखी को लेकर जिले में वन विभाग ने कोयला से लदे आधा दर्जन से ज्यादा वाहनो को जप्त करने की कार्रवाई भी की बावजुद बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का परिवहन जारी है।

कोयले के इस अवैध परिवहन का एक आश्यर्चजनक पहलु यह भी है कि जिस विभाग को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 42 का अनुपालन कड़ाई से सुनिश्चित कराना है उस विभाग के अधिकारी और कर्मी ही बगैर ट्रांजिट परमीट के कोयला से लदे वाहनो को सुरक्षा घेरे में ले जा रहे है। वन विभाग ने झारखंड वनोपज नियमावली 2020 के आलोक में विधि संवत कार्रवाई करने को लेकर पुलिस अधीक्षक को भी पत्राचार किया था, बावजुद जिले की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार ने बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला के परिवहन को न केवल संज्ञेय अपराध बल्कि गैर जमानतीय भी माना है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि पाकुड़ जिले में किसके संरक्षण और इशारे पर बिना ट्रांजिट परमीट कोयले का परिवहन कर सरकार के राजस्व को क्षति पहुंचाने का काम हो रहा है। बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का हो रहे परिवहन को लेकर वन क्षेत्र पदाधिकारी अनिल कुमार सिंह ने बताया कि कई कोयला से लदे वाहनो को जप्त किया गया है। रेंजर श्री सिंह ने कहा था कि बिना ट्रांजिट परमीट के कोयला का परिवहन करने वाले ट्रांसपोर्टरो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी।

इतना करने और कहने भर पर अनिल जी को जबरन रिटायर्ड कर दिया गया।

कारण साफ़ है। माननीयों के स्वार्थजनित लगाव। कितने ही माननीयों का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट है इस धंधे से जुड़ाव। सभी परतें खुलेंगी धीरे-धीरे।

पिछले वर्षों के पाकुड़ के विभिन्न थानों में हुए एफआईआर को खंगाले। तो ये सावित हो जाता है। कि कोयला तश्करी जिले में होती है। तस्करों द्वारा प्रस्तुत कागज़ातों को अगर गहराई से देखें और विवेचना करें तो यह भी सावित होता है, कि इसमें भी ग़ज़ब बड़े पैमाने पर ओल-झोल है।

अब सवाल उठता है कि ये कोयला सरकार द्वारा दिए गए खनन पट्टों वाले खदानों से तो आते नहीं हैं। क्योंकि उन कम्पनी वालों की अपनी सुरक्षा के बाद पुलिस सुरक्षा भी उन्हें प्राप्त है। ऐसे में ये भी सावित हो जाता है, कि कोयला से भरे पड़े इस इलाके में अवैध खनन कर ये कोयला लाया जाता है। इसमें कई स्तर पर लोगों की मंडली है, जो संगठित तौर पर ईमानदारी से इस बेमानी के कार्य को अंजाम देते हैं। इस कार्य सबसे पहली मंडली जंगल मे कहाँ खनन करना है, जहाँ कम लागत में आसानी से खनन कर कोयले को गाड़ी में लोड करना। आस पास की आवादी को भी खुश रखते हुए। लोड गाड़ी को जंगली खनन स्थान तक ले जाने तथा मुख्य सड़क तक ले आने के लिए एक मंडली काम करती है।स्वाभाविक रूप से ये पहली मंडली इलाके से पूरा परिचित होती है और बख़ूबी काम करने तजुर्बा इनके पास होता है। चित्रों में अवैध कोयला खनन को देख कर इन परतों को खोला और समझा जा सकता है।

मुख्य सड़क पर आते ही दूसरी मंडली अपना दायित्व सँभालने लगती है। हँलांकि ये अवैध कोयला विभिन्न रूटों से पश्चिम बंगाल के विभिन्न स्थानों पर जाता है। इसलिए खाँकि खादी और तलवार से तेज कलमकारों की स्नेहिल छाँव तले कोयला लदी गाड़ियाँ सरपट दौड़ती है। अमड़ापाड़ा, कोटालपोखर, गुमानी, महेशपुर, पाकुड़िया, पाकुड़ सहित पश्चिम बंगाल की विभिन्न मंडली एक अरसे से पाकुड़ के वनोपजों और मिनरल्स की तस्करी करते हैं। अचानक प्रशासन के सक्रिय होने पर इनदिनों रात के अंधेरे में होने वाले अंधेर पर मानो कुठाराघात हो गया हो। लेकिन फिर भी कोयला दौड़ रहा है अंधेरे में अंधेरी सड़कों पर।

ये बताना भी जरूरी है, कि जंगलों के जिन इलाकों में ये अवैध खनन होता है। वो इलाके नक्सलियों का भी प्रभाव क्षेत्र रहा है। ऐसे में इन अवैध कारोबार का हिस्सा उन तक भी निश्चित ही पहुँचता हो इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए इस मामले की प्रोफेशनली उच्चस्तरीय जाँच होनी चाहिए।

ED, आपको आमंत्रण है, पाकुड़ आएं, ढूँढे Illegal Mining के अनुत्तरित जवाब

बंद पूरी तरह नहीं हुआ है अवैध खनन का बाज़ार, VIP चला रहे अपनी मनमानी

निचे जो सूचना आलेख में दी गई है, उसे आप पहले पढ़ चुके हैं। लेकिन मैं इसे इस लिए परोस रहा हूँ, आपको ये समझ में आये। कि जो क्रशर सील हुए क्या वो सील रह गए ?
इसके लिए कोई मोनिटरिंग टीम है?

क्या मोनिटरिंग हो रही है

एक आलेख में मैंनें यह भी बताया था कि चेक पोष्ट से इतर कान्हुपुर वाले रास्ते से तथा पाकुड़ मेन रोड से भी कैसे अवैध परिवहन की रात्रिसेवा जारी है। पिछले दो साल में कितने क्रशर सील हुए, तथा किस आधार पर वो चालू हुआ ? जाँच का विषय है कि नहीं? जब पूरे जिले में प्रशासन के नाक के नीचे इतने वर्षों सब अवैध चलता रहा। तो अब क्या सब बंद हुआ होगा? बिलकुल नहीं । बहुत पहलू है, जाँच का। मैं पाकुड़ का नागरिक होने के नाते ED को आमंत्रित करता हूँ। ED आये हर पहलू को उधेरे। पिपलजोड़ी में अभी भी दो VVIP का क्रशर चल रहा है। खैर ये जानना भी जरूरी है कि CTO प्राप्त और CTO समय सीमा समाप्त हुए क्रशरों ने कितने पेंड़ लगाए ? कितने घेराबंदी की आदि आदि।

अभी तक एक भी सील किये गए क्रशर के आसपास कोई पेंड़ नहीं दिखा। क्या इसकी सूचना NGT को दिया गया ? सवाल कई हैं । जवाब ढूँढना होगा। रद्दीपुर ओपी क्षेत्र पाकुड़ के सुंदरपहाड़ी में मंगलवार को अवैध क्रशरों के खिलाफ जिला टॉस्क फोर्स की टीम ने बड़ी कार्यवाई की हैं। जिला टास्क फोर्स के टीम ने अवैध क्रशरों के खिलाफ कार्यवाई करते हुए 27 क्रशरों को सील कर दिया।बहुत ख़ूब, प्रसंशनीय कार्यवाही। लेकिन पिंकू शेख़ के अवैध खनन कर किये गए खदान की मापी कौन करेगा ? नो एकड़ में पिंकू शेख और उसके भाई का 4.5 – 4.5 एकड़ का लीज है। उस लीज के चारों तरफ तकरीबन 29 एकड़ पर अवैध खनन कर लिया गया। पिंकू शेख़ विद्या के मामले में निहायत ही दरिद्र और लक्ष्मी कृपा ऐसी कि लक्ष्मीपुत्रों को भी पछाड़ता सा गोल्डमैन दिखता है। स्वयं अंचलाधिकारी अपने रिपोर्ट में अवैध खनन को स्वीकारते हैं। पिंकू शेख सत्ताधारी दल के नेता जो ठहरे !

बावजूद इसके सिर्फ़ क्रशरों को सील कर वाहवाही लूटी जा रही है। घनघोर आश्चर्य ! अरे भाई कहीं गेंहू चोरी हुई। जिस मील में पिसा गेहूँ उसे सील करने से चोरी की गुत्थी कैसे सुलझेगी ? पहले गेहूँ के गोदाम को देखो। नापो कितनी गेहूँ चोरी गई। फिर आगे की उचित करवाई करो। नही यहाँ पीसनेवाले मिल सील हो रहे हैं। बताइये इसे कौन सी कारवाई कहा जाय ?

खैर एक से 15 जून तक पूरे राज्य में अवैध खनन व परिवहन के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इसी कड़ी में जिले के रद्दीपुर ओपी क्षेत्र में भी लगातार कार्रवाई हो रही है। जिसको लेकर जिला टास्क फोर्स की टीम ने एसडीओ पाकुड़ हरिवंश पंडित के नेतृत्व में खनन टास्क फोर्स की टीम रद्दीपुर ओपी क्षेत्र के अर्जुनदहा, चांदपुर, अम्बईपहाड़ी, खारुटोला, महुलपहाड़ी पहुंची। अधिकारियों को देखकर क्रशर में मौजूद लोग क्रशरों को बंद कर भाग गए। इसके बाद 27 क्रशर को सील कर दिया गया।

अच्छा हमेशा छापेमारियों में लोग भाग जाते हैं। सभी को फिर से ट्रेनिंग की ज़रुरत है। कैसे सभी आरोपी भाग जाते हैं ! क्या छापेमारियाँ तकनीकी और प्रोफेशनल ढंग से नहीं मारी जाती ? सभी को ट्रेनिंग की जरुरत है, सरकार दिलाए , ज़रूरी है। जय हो।

मौके पर टीम के जिला खान निरीक्षक पिंटू कुमार, सीओ रितेश जायसवाल, प्रदूषण क्षेत्रीय पदाधिकारी दुमका कमलाकांत पाठक, सहायक वैज्ञानिक रवि कुमार, सीआई सुरेश साह, रद्दीपुर ओपी प्रभारी दिलीप कुमार मल्लिक व अंचल आमीन उमाकांत सहित अन्य मौजूद थे)

ED को पाकुड़ के पत्थर व्यवसायियों , अधिकारियों के साथ रेल अधिकारियों की संपत्ति को भी खंगालना होगा

पत्थर व्यवसायी, सम्बंधित अधिकारी के साथ रेल अधिकारियों को भी ED ले जाँच के दायरे में

कुछ दिनों पहले पाकुड़ उपायुक्त ने प्रेसवार्ता कर पत्रकारों से कहा था। रेलवे से पत्थर ढुलाई की गड़बड़ी पर वे ख़ुद जाँच करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं ……..खैर अब Puja sighal मामले में ED जाँच तथा DMO से पूछताछ के बाद अब रोज़ छापेमारियाँ हो रहीं हैं। अवैध खनन, अवैध परिवहन , अवैध क्रशर संचालन और छापेमारियों में क्रशरों का सील किया जाना, सब अवैध का सबूत नहीं ? अब मुफस्सिल चेक नाका पर अवैध चालान का पकड़ा जाना। फिर FIR दर्ज होना क्या जिले को हरिश्चंद्र का राज सावित करता है ?आश्चर्य है !

पत्थर तो रेलवे से भेजा गया, पर चालान नदारत थे

हुआ ये क्या पिछले दिनों रेलवे से पत्थर संप्रेषण में खुलासा हुई । गड़बड़ी पर उपायुक्त पाकुड़ ने स्वयं इस मामले की जाँच करने की बात पत्रकारों से वार्ता के दौरान कही थी। ये बातें स्वयं में एक उदाहरण पेश करता नज़र आया था। साधारणतया ऐसे मामलों पर एक औपचारिकता जाँच समिति बना कर कर दी जाती है लेकिन पहली बार उपायुक्त ने ऐसे मामले में स्वयं जाँच करने की बात कह सबको चोंका दिया था। उधर हड़कम्प कहाँ कहाँ मचा होगा, इसे बयाँ करना बेवज़ह सावित होगा। हँलांकि उपायुक्त के उस शनिवार को किये पत्रकार सम्मेलन और कही बातों के कई दर्जन शनिवार बीत चुके हैं। लेकिन छापेमारियाँ Puja के ED के गिरफ्त में आने के बाद हुई।

हँलांकि तीन कम्पनी को 7-8 करोड़ की नोटिश खनन पदाधिकारी ने भेजा है, ये स्वयं बड़ी गड़बड़ी का द्योतक है। इधर इन तीनों में से एक कम्पनी के प्रोपराइटर बिहार के एक ब्लैक लिस्टेड निर्माण कम्पनी के मालिक से सम्बन्धित है। उनका बड़बोलापन ऐसा है, कि मुख्यमंत्रियों के साथ उनकी बैठकी है, और नाना पाटेकर की ” अब तक 56 ” फ़िल्म की तरह उनका रेकॉर्ड ” अब तक 22 ” का है। अब भगवान जाने वो क्या हैं, ऐसी पहेलियों को पत्रकार जगत सुन कर दूसरे कान से निकाल देते हैं।

दूसरी एक कम्पनी में अब प्रोपराइटर के रहते एक महिला का सक्रिय दखल है, और कई बार वो महिला एक बड़ी राजनैतिक हस्ती की मेहमान बन कर सप्ताह दो सप्ताह सरकारी गेष्ट हाउस में भुगतनी मेहमान भी रह चुकीं हैं।

अब माननीय उपायुक्त के स्वयं जाँच में ये मामला आ गया था, तो कई नई कलई खुलने का अंदेशा था। हड़कम्प और चिंता की लकीरें खनन विभाग की दीवारों पर भी दिख रहीं थीं। अगर उपायुक्त स्वयं जाँच करते तो राजनैतिक संरक्षण प्राप्त और कई कम्पनी इसकी ज़द में आती, तो क्या इसलिए वो सिर्फ़ आई वॉस सम्मेलन था। सवाल लाज़मी है। लेकिन हुआ कुछ नहीं और ED आ धमकी।

क्या है रॉयल्टी का मामला

आपके प्यारे पेज़ में आपके सामने इस मामले को परोसा भी था। वास्तव पाकुड़ रेलवे पत्थर लोडिंग साइडिंग पर कितनी विसंगतियाँ हैं । इसपर चर्चा हरि कथा अनन्ता को भी पीछे छोड़ती नज़र आती है। अपर और लोअर रेलवे साइडिंग में दर्जनों प्लॉट किसी न किसी कारणवस वर्षों से कागज़ों पर खाली है । लेकिन उसपर भंडारण और लोडिंग बजायफ़्ता जारी है, क्यूँ है , कैसे है आदि विषयों पर आगे की रिपोर्टिंग में बताएँगे ।लेकिन जब बिना माइनिंग चलान के पत्थर भेजने की चर्चा जब चली तो अनायास दिनांक 26/7/21 का एक नोटिश सामने आया। नोटिश नम्बर सी ओ एम/प्लाट/पीकेआर/न्यू अलॉटमेंट/19 डीआरएम ( कमर्शियल ) इश्टर्न रेलवे हावड़ा इनवाईट्स ( एक्सप्रेशन ऑफ ईंटरेष्ट ) 59 एन ओ एस वेकेंट प्लॉटस पाकुड़ क्वायरी साइडिंग के अनुसार दो पारामीटर पर आमंत्रित किए गए । पर कहते हैं कि इस नोटिश को सार्वजनिक होने से रोक दिया गया। क्यूँ ये रेलवे अधिकारी ही बता सकते हैं। जबकि नोटिश में साफ निर्देश है, कि इसे अखबारों में प्रकाशित करना है। इससे सम्बंधित एक पदाधिकारी जे एन साहा से जब बात की गई तो अपनी टूटी फूटी हिंदी में जो बताया । उसका अर्थ ये था, कि ये उनका डिपार्टमेंट नहीं है। लेकिन जब संवाददाता ने बंगला में बोल कर माहौल को दोस्ताना बना दिया । तो माननीय साहा ने बताया कि ये नोटिश उनके पास आया था। और कोलकाता में इसे प्रकाशित कराया गया होगा। उन्होनें ये भी बताया कि प्लॉट एलॉटमेंट का दूसरा डिपार्टमेंट है।

मामला जो भी हो । कहीं न कहीं मामले में गड़बड़ी की बू आ रही है। जानकारी के अनुसार रेलवे के खाली लोडिंग साइड्स पर माफियाओं का राज है। सिर्फ़ क्रशरों को सील करने से कुछ नहीं होनेवाला। हाँलाकि आज भी ED राँची में छापेमारियाँ कर रही है । अब पाकुड़ में भी अचानक राख से लाखों तक पहुँचने वालों को ED खँगाले तो बात बने। इसमें रेलवे अधिकारियों को भी और उनकी संपत्ति को पखारना होगा।
जय हिन्द।

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बावजूद इसके सिर्फ़ क्रशरों को सील कर वाहवाही लूटी जा रही है। घनघोर आश्चर्य ! अरे भाई कहीं गेंहू चोरी हुई। जिस मील में पिसा गेहूँ उसे सील करने से चोरी की गुत्थी कैसे सुलझेगी ? पहले गेहूँ के गोदाम को देखो। नापो कितनी गेहूँ चोरी गई। फिर आगे की उचित करवाई करो । नही यहाँ पीसनेवाले मिल सील हो रहे हैं। बताइये इसे कौन सी कारवाई कहा जाय ?

खैर एक से 15 जून तक पूरे राज्य में अवैध खनन व परिवहन के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इसी कड़ी में जिले के रद्दीपुर ओपी क्षेत्र में भी लगातार कार्रवाई हो रही है। जिसको लेकर जिला टास्क फोर्स की टीम ने एसडीओ पाकुड़ हरिवंश पंडित के नेतृत्व में खनन टास्क फोर्स की टीम रद्दीपुर ओपी क्षेत्र के अर्जुनदहा, चांदपुर, अम्बईपहाड़ी, खारुटोला, महुलपहाड़ी पहुंची। अधिकारियों को देखकर क्रशर में मौजूद लोग क्रशरों को बंद कर भाग गए। इसके बाद 27 क्रशर को सील कर दिया गया।

अच्छा हमेशा छापेमारियों में लोग भाग जाते हैं। सभी को फिर से ट्रेनिंग की ज़रुरत है। कैसे सभी आरोपी भाग जाते हैं ! क्या छापेमारियाँ तकनीकी और प्रोफेशनल ढंग से नहीं मारी जाती ? सभी को ट्रेनिंग की जरुरत है, सरकार दिलाए , ज़रूरी है। जय हो।

मौके पर टीम के जिला खान निरीक्षक पिंटू कुमार, सीओ रितेश जायसवाल, प्रदूषण क्षेत्रीय पदाधिकारी दुमका कमलाकांत पाठक, सहायक वैज्ञानिक रवि कुमार, सीआई सुरेश साह, रद्दीपुर ओपी प्रभारी दिलीप कुमार मल्लिक व अंचल आमीन उमाकांत सहित अन्य मौजूद थे