Sunday, September 8, 2024
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पाकुड़ भाजपा संगठन की हालात पर अंदर से शालती एक स्वयंसेवक का दर्द।

एक पुराने स्वयंसेवक से हुई बातचीत पर आधारित समीक्षा क्षमा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ🙏
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आज़ादी के बाद पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र ने एक बार जनसंघ और दो बार भाजपा का विधायक दिया है। उस समय भी मतदाताओं की संख्या समीकरण ऐसी नहीं थीं, कि ऐसा हो पाए। आज तो खैर राजनैतिक समीकरण किसी भी कोण से ऐसा नहीं दिखाता कि पाकुड़ कभी भाजपा से प्रतिनिधि विधानसभा में भेज सके।
इसका सबसे बड़ा कारण है , मतदाताओं की संख्या समीकरण और स्थानीय भाजपा में कार्यकर्ताओं की घोर कमी तथा चुनाव लड़ने वाले महत्वाकांक्षी नेताओं की अनगिनत संख्या।
जब हम जैसे लोगों ने बाल्यकाल में होश संभाला था , तो पाकुड़ में स्वयं को संघ की शाखा में खेलते पाया था। पाकुड़ जैसे तत्कालीन कस्बाई छोटे से जगह पर सुबह और सायं कालीन लगभग आधा दर्जन शाखाएं लगतीं थीं। खेलने कूदने के लिए बच्चे सम्प्रदायों और जातियों से इतर हट कर संघ की शाखाओं में ही जाते थे।
युवावस्था में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन ने शैक्षणिक संस्थानों को योग्य बना रखा था। कहीं कोई प्रतिस्पर्धा नही थी, बल्कि सहयोगी वातावरण था।
भाजपा के संगठन में भी सहयोगी वातावरण ही था। लेकिन आज मानो सब कुछ कहीं खो सा गया है। दो दिनों पहले ही हुई एक समीक्षा बैठक में भाजपा के जिलाध्यक्ष पर शिकायतों के अंबार सा लगा था।
जिन लोगों ने यहाँ संगठनों के विभिन्न पहलुओं को अपने खून पसीना से सींचा वे सभी आज उपेक्षित हैं। वर्तमान ने अतीत में मजबूत नीव रखने वालों को नकार दिया है।
युवावस्था ताकतवर तो होता है , लेकिन अनुभव की झुर्रियां कितनी कारगर होतीं हैं , इसे भी समझना जरूरी है।
संगठनों को जमीन पर खड़ा करनेवालों को नकार कर युवा जोश दिशाहीन हो चुकी है। और राज्य स्तरीय बड़े नेता सिर्फ़ बड़ी चमकती गाड़ियों से उतरते सफेदी के पीछे छिपे दागदार चेहरों से धोखा खा जाते हैं।
इन दागदार सफ़ेद चोले में लिपटे लोग कमल नहीं खिला सकते। जमीन पर दशकों से कीचड़ में सने संगठन कर्ता ही कमल महका सकते हैं।
निशिकांत दुबे बनने के लिए , पीछे मुड़कर उनके संघर्ष को झांकिये , उनकी निश्वार्थ जनसेवा को अहसासिये ।
निशिकांत ने किसी की जमीन , हक़ और अधिकार नहीं मारा , तो संथालपरगना के दिलों में बस गया। अपने से सीनियर नेताओं को सांसद होने के बाद भी उचित सम्मान दिया , निशिदिन कांति चमक रही है।
भाजपा पाकुड़ जैसे क्षेत्र में भी कमल फिर से खिला सकता है , अगर…..
संगठन के मूल सूत्र को समझते हुए जड़ से जुड़ना होगा।
वरना छोड़ दीजिए इस सीट को सहयोगी दलों के लिए, और उनको सहयोग कीजिए।

मैं यहाँ हिन्दू-मुसलमान करने नहीं आया , घुसपैठ का विरोध और आदिवासियों की घटती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करने आया हूँ : निशिकांत

” झारखंड, बिहार और बंगाल के घुसपैठ प्रभावित जिलों को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाय ” संसद में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की मांग के बाद अचानक एक राजनैतिक भूचाल सा आया ।
हाँलाकि सांसद निशिकांत दुबे ने घुसपैठ के मुद्दे को संसद में दर्जनों बार उठाया , लेकिन किसी भी स्तर पर इस ज्वलंत समस्या पर किसी का प्रतिक्रियात्मक ध्यान नहीं गया, लेकिन जैसे ही इस मुद्दे को अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग के साथ जोड़ा गया , पत्रकारिता से लेकर राजनीति तक बरबस इस घुसपैठ के मुद्दे पर मुखर हो गए।
यह बात अलग है कि कौन किस तरह मुखर हुए , लेकिन विषय ने तेजी से चर्चा में स्थान बना लिया। संयोग से इसी बीच ऐसी कुछ घटनाएं हुईं , जिसने इस मुद्दे को और बल दे दिया।
1990 के दशक में नवभारतटाइम्स पटना तथा आज हिन्दी दैनिक में संथालपरगना में घुसपैठ तथा घुसपैठिये द्वारा जमीन हथियाने की खबरों पर जब मैंनें कई बार लिखा तो उस समय मैं हास्य व्यंग्य का पात्र बनता था , लेकिन उस समय से देश विदेश के विषयों पर अच्छी पकड़ रखने और चर्चा करनेवाले निशिकांत दुबे इस मुद्दे पर भी चर्चाओं में बोलते थे। 2009 में संसद पहुँचने के बाद उन्होंने दर्जनों बार इस मुद्दे को उठाया।
खैर सांसद निशिकांत ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वे इस मुद्दे पर संथालपरगना के गाँवों का दौरा करते रहेंगे, लेकिन उनका दौरा हिन्दू-मुसलमान करने के लिए नहीं , बल्कि घुसपैठ के विरोध और आदिवासियों सहित सीमाई क्षेत्रों के लोगों की सुरक्षा की मांगों को लेकर रहेगा। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानों से हमारा कोई विरोध नहीं , वे तो भारतीय नागरिक हैं , और हमारे हैं, लेकिन भर्मित करनेवाले राजनैतिक स्वार्थवश अफवाह फैलाते हैं , लेकिन तुष्टिकरण के नाम पर भाजपा और मैं स्वयं किसी कीमत पर घुसपैठ से नज़र नहीं मोड़ सकता। उन्होंने कहा कि मैं संथालपरगना का दौरा करता रहूँगा।

*मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना में हो रही है प्रज्ञा केन्द्र (CSP) में धांधली, डीडीसी से जांच की मांग:-शाहिद इक़बाल*

पाकुड़: नवपदस्थापित उपविकास आयुक्त महेश कुमार संथालिया जी से समाहरणालय में मिलकर उनको हार्दिक बधाई एवं शुभकामना देते हुए झामुमो पूर्व केंद्रीय समिति सदस्य शाहिद इक़बाल ने उपविकास आयुक्त को शिकायत करते हुए कहा कि पाकुड़ जिला अंतर्गत सभी प्रखंडों में भी झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना माननीय मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन जी द्वारा चलाई जा रही हैं। घरेलू महिलाओं 21 से 50 वर्ष के लिए प्रति माह एक हजार रुपये का आर्थिक सहयोग का योजना चलाया जा रहा है।
झारखंड सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से सभी प्रज्ञा केंद्र(CSP) कम्प्यूटर ऑपरेटर को निर्देश दिया गया है कि आवेदन को ऑफलाईन सेवा के लिए कोई शुल्क महिलाओं से ना लें, झामुमो पूर्व केंद्रीय समिति सदस्य शाहिद इक़बाल ने कहा कि विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकतर केंद्रों में महिलाओं द्वारा 50 रुपया से लेकर 200 रुपया तक प्रति आवेदन कम्प्यूटर आपरेटर द्वारा लिया जा रहा है। माननीय उपायुक्त महोदय एवं डीडीसी से अनुरोध है कि उलेखित विषय पर अविलंब जांचोंप्रांत आवश्यक कार्रवाई करने की कृपया की जाए।

हिसाबी राय ने बाबूलाल मरांडी को सौंपा ज्ञापन, अयोध्या होते हुए नई दिल्ली के लिए मांगा ट्रेन

कई ट्रेनों के परिचालन और ठहराव के लिए पहल की मांग पर मिला आश्वासन

पाकुड़। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को जिला उपाध्यक्ष हिसाबी राय ने बुधवार को रेल सुविधा से संबंधित सात सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा। जिला उपाध्यक्ष ने कई एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों के परिचालन एवं ठहराव की मांग को रखा। जिन ट्रेनों के परिचालन एवं ठहराव की मांग की गई, उनमें कोरोना काल से बंद पड़े रामपुरहाट बरहरवा बामदेव पैसेंजर एवं वर्धमान मालदा सवारी गाड़ी का पुनः परिचालन करने, पाकुड़ से नई दिल्ली के लिए विश्वनाथ धाम एवं अयोध्या होते हुए नई रेल सेवा का परिचालन,न्यु जलपाईगुड़ी हावड़ा शताब्दी एक्सप्रेस,गुवाहाटी हावड़ा सरायघाट एक्सप्रेस,गुवाहाटी बैंगलोर एक्सप्रेस,डिब्रूगढ़ कन्याकुमारी विवेक एक्सप्रेस का पाकुड़ में ठहराव सुनिश्चित करने की मांगें शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि भाजपा जिला उपाध्यक्ष हिसाबी राय रेल यात्रियों की सुविधा के लिए लगातार अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं। इससे पहले भी हिसाबी राय ने बाबूलाल मरांडी को ज्ञापन देकर इन मांगों को पूरा करने का अनुरोध किया था। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने मांगों को केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव तक पहुंचाने का काम किया था। हालांकि उस वक्त लोकसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लागू होने की वजह से मांगें लंबित रह गई। इधर बुधवार को दोबारा मांगों को रखा गया और जन भावनाओं को देखते हुए पूरा करने के लिए सार्थक प्रयास करने का अनुरोध किया। उल्लेखनीय है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी केकेएम कॉलेज के आदिवासी हॉस्टल के छात्रों और पुलिस के बीच उत्पन्न विवाद में घायल छात्रों से मिलने पाकुड़ पहुंचे थे। भाजपा जिला उपाध्यक्ष हिसाबी राय ने बताया कि बाबूलाल मरांडी जी को रेलवे से जुड़ी समस्याओं से अवगत कराया गया है। प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी जी को सात सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपकर समस्याओं के प्रति ध्यान आकृष्ट कराया गया है। उन्होंने मांगों पर सार्थक और ठोस पहल करने का भरोसा दिलाया है। हिसाबी राय ने कहा कि पाकुड़ की जनता की भावना को ध्यान में रखते हुए पहले भी मांगों का ज्ञापन सौंपा गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि बाबूलाल मरांडी जी का प्रयास सफल होगा और पाकुड़ की जनता के लिए रेल सुविधाएं बढ़ेगी। इधर बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी और कार्यकर्ता मुझे रेलवे से संबंधित समस्याओं से अवगत कराते रहते हैं। पहले भी मुझे ज्ञापन दिया गया था। लेकिन उस वक्त आचार संहिता लागू होने की वजह से मांगें लंबित रह गई। आज पुनः पाकुड़ की जनता की जनभावना से अवगत कराया गया और ज्ञापन सौंपा गया। इस पर मजबूती के साथ पहल किया जाएगा। आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार देश का नेतृत्व संभाला है और अश्वनी वैष्णव जी भी दूसरी बार रेल मंत्री बने हैं। निश्चित रूप से पाकुड़ की जनता की जरुरतों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। शीघ्र ही रेल मंत्री से मिलकर मांगों को रखूंगा। मौके पर भाजपा जिलाध्यक्ष अमृत पांडेय, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अनुग्रहित प्रसाद साह,राणा शुक्ला,पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष बाबुधन मुर्मू,मोहन तिवारी, मंगल हांसदा,कमल कृष्ण भगत आदि मौजूद थे।

उसे देखना भी नहीं चाहते , और फिर नज़र भी उसी पर रखते हो !

पत्थर उद्योग के लगभग 130 साल के इतिहास में लुत्फुल हक़ एक ऐसा पत्थर व्यवसायी निकला जिसे समाजसेवा के लिए देश विदेश में विभिन्न संस्थाओं ने सम्मानित किया।

इससे पहले पत्थर व्यवसाय से जुड़े लोगों पर लोग हमेशा अवैध और गलत तरीके से काम करने का आरोप लगाते आये हैं। ऐसा नहीं है कि पत्थर व्यवसाय में गलत नहीं होता हो। स्वयं मैंनें इस व्यवसाय में होने वाले अवैध कार्यो पर दर्जनों बार सबूत के साथ लिखा है।

खैर हमेशा से अवैध के लिए बदनाम रहे इस उद्योग से जुड़े लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को जब दुनियाँ सराहने लगी , और उन्हें सार्वजनिक मंचों पर सम्मानित करने लगी , तो दो – तीन प्रतिक्रिया देखने को मिलने लगी।
पहली तो यह कि गरीब गुरवा लोग उन्हें खुलेआम दुआएं देने लगे।
दूसरी ये कि जो पत्रकार उनको सम्मानित करने , और गरीबों से मिलने वाली दुआओं पर लिखने लगे तो कुछ ज्वलनशील पदार्थों के आरोपी चित्कार निकलने लगे।
तीसरी यह कि लुत्फुल हक़ पर भी अवैध का आरोप लगाने लगे।
और एक सबसे बड़ी बात ये हुई कि कुछ लोग इस मंशा को पालने लगे कि सिर्फ़ गरीबों की सेवा क्यूँ !
मतलब साफ़ कि उन्हें भी …….
🤣🤣🤣 आश्चर्य है कि ऐतिहासिक ढंग से कोई पत्थर व्यवसायी गरीबों को प्रतिदिन स्टेशन पर भोजन करा रहा है , इतना ही नहीं बीच बीच में उन गरीबों के साथ वहीं खड़े होकर स्वयं भी वही भोजन खा रहा है , तो महत्वाकांक्षा पालने वाले आएं न ! वहाँ खाने से किसी को रोका तो नहीं जाता।
कुछ विशेष की अभिलाषा क्यूँ भाई !

पाकुड़ के इतिहास में रानी ज्योतिर्मयी के असीमित दैनिक भंडारे के एक युग के बाद व्यक्तिगत रूप से एक व्यवसायी द्वारा ऐसा किया जाना गौरव की बात नहीं ?

रानी ज्योतिर्मयी की तुलना सिर्फ़ रानी जी ही हैं।

मैं रानी जी की तुलना नहीं कर रहा। रानी ज्योतिर्मयी ने सम्पूर्ण पाकुड़ को शिक्षा, खेल तथा अन्य इतना कुछ दिया है कि पाकुड़ की पीढ़ियाँ उनका कर्जदार रहेगी।

खैर वो लुत्फुल हक़ की पुरस्कारों और सम्मानों से बरनोल के आकांक्षी सोसल मीडिया पर सक्रिय लोगों को सिर्फ़ एक कहावत के रूप में कहना चाहूँगा ” देख पड़ोसन जल मर ”
रही बात मेरे जैसे लोगों की , तो हाँ कोई पुरस्कृत-सम्मानित होगा तो लिखेंगे, और लिखते रहेंगे😊 ।

सिर्फ़ लुत्फुल हक़ नहीं कोई भी समाजसेवा करेगा, सम्मानित होगा , तो पत्रकार लिखेंगे। पहले ये सोसल मीडिया और सभी खबरों को जगह दे पाने वाले अख़बार नहीं थे , तो ऐसी खबरें जगह पाने से छूट जातीं थी।

समाज की सेवा पहले भी पाकुड़ में लोगों ने की , जैसे तात्कालीन छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह , रामप्रसाद सिन्हा और एक पत्रकार की तिकड़ी ने तकरीबन पाँच सौ गरीब परिवार की लड़कियों की शादी में अपना योगदान दिया, दस हजार से ज़्यादा लोगों का इलाज़ करवाया , हजारों आपसी विवादों को आपस में ही सुलझवा दिया।

उस समय ये कई कमियों के कारण प्रकाश में नहीं आया। संस्थाओं की भी कमी थी , पुरस्कृत भी नहीं हुए।

अब सब कुछ है , दुनियाँ एक क्लिक पर उपलब्ध है। किसी भी कीमत पर लुत्फुल हक़ की समाजसेवा को और उनकी समाजसेवी होने को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में उनसे जलन और शिक़वा शिकायतें क्यूँ भाई ?  , नहीं नहीं कोई सभ्य समाज इसे और ऐसे लोगों को नहीं स्वीकार सकता🙏🏻

राजनैतिक नारे को पति-पत्नी के “प्रेम” और विश्वास का अमर संदेश बना दिया माननीय कल्पना सोरेन ने🙏🏻

“हेमंत है तो हिम्मत है” पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में इस नारा ने झामुमो गठबंधन को ग़ज़ब की सफलता दिलाई। हाँलाकि ये नारा बाद में विपक्षियों के लिए एक व्यंग बन गया।
इसमें अस्वाभाविक भी कुछ नहीं था। पूजा सिंघल मामले से लेकर कई ऐसे मामले आये , जिसने सरकार की आलोचना के लिए इस नारे को व्यंग की पँक्ति में खड़ा कर दिया।
साहेबगंज के एक साहित्यकार मिलन के आयोजन में इस नारे का जन्म हुआ। बाद में नारे के जन्मदाता को कटाक्षों का सामना करना पड़ा।लेकिन साहित्य और साहित्यकार विचलित कब हुआ है ?

साहित्यकार किसी सम्प्रदाय या दल विशेष के नहीं होते। इनकी एक अलग विशेषता होती है, कि जहाँ इन्हें सम्मान से बुलाया जाता है , वहाँ सबके हित की बात परोसने ये पहुँच ही जाते हैं। वहीं एक विचारधारा के आग्रह पर मित्र सम मेरे बड़े भाई और विख्यात साहित्य सेवक सच्चिदानंद ने अचानक इस नारे को जन्म दिया और ये नारा चल पड़ा।
जब ये नारा चल पड़ा तो सरकार बनने के बाद भी पक्ष विपक्ष ने अपनी अपनी सुविधानुसार इसका प्रयोग अपनी बात कहने किया।
पत्रकारों ने भी समाचारों को परोसने में इस नारे का प्रयोग किया।
ये नारा सकारात्मक और नकारात्मक रूप से बुलंद होता गया।
पिछले दिल्ली प्रवास के दौरान युगल चित्र के साथ जब माननीय विधायक कल्पना सोरेन ने अपने X पेज पर इस नारे का प्रयोग किया , तो मुझे इस नारे ने सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
अपने गुरुस्वरूप रामजनम मिश्रा के फेसबुक वॉल पर जब ये देखा कि अखबारों में भी इस X ट्वीट पर कहा गया है, तो मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाया।
हमारे देश में विवाह बंधन को सात जन्मों का साथ कहा जाता है। एक राजनैतिक नारा कैसे पति पत्नी के बीच के विश्वास और उनसे उपजी हिम्मत का पर्याय बन सकता है , ये कल्पना जी ने सवित कर दिया।
पहले इस नारे को जन्म देने वाले और इसके प्रयोग करने को नकारात्मक रूप से परिभाषित किया जाता था , मैं भी भर्मित हो इसे चापलूसी की पराकाष्ठा मानता था।
लेकिन माननीय कल्पना जी द्वारा इस नारे का इस तरह प्रयोग ने कम से कम मेरे लिए तो दृष्टिकोण परिवर्तन का माध्यम बन गया।
एक साहित्यकार जब कोई सृजन करता है तो उसकी प्रसवपीड़ा वही समझ सकता है।
बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, लेकिन उक्त नारे को जन्म देने वाले पर लगे आरोपों को पीछे मुड़कर देखने के बाद मुझे हिम्मत नहीं होती।
दक्षिण पंथी होने का नामदार रहा मैं , इस विषय पर ज्यादा कहकर गालियाँ सुनना नहीं चाहता , लेकिन साहित्य के साथ मेरा परिचय का अनुभव कहता है कि शब्दों और उक्तियों के सही प्रस्तुतिकरण से अर्थ का अनर्थ तथा अनर्थ का भी विशाल अर्थ निकल आता है।🙏🏻

आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वोट बैंक पर आधारित लोग छोड़ रहे “आजसू” , आलमगीर अब भी अडिग।

*आजसू जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो से पाकुड़ विधानसभा पर ध्यान आकृष्ट कराया।*

*पाकुड़ विधानसभा में एनडीए गठबंधन का उम्मीदवार मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा।*

पूर्व विधायक एवं आजसू के केंद्रीय स्तर के नेता ज़नाब अकिल अख्तर ने जनभावना को कारण बताकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे की भूमिका पहले से ही बनाई जा रही थी। आम लोगों में भी चर्चा थी कि शायद ऐसा ही हो , और हो भी वही गया।
पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या के अनुपातिक समीकरण को देख , और आजसू का भाजपा के साथी होने , तथा एनडीए का हिस्सा होना ही इसका सबसे बड़ा कारण है , लेकिन पार्टी के जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम इससे इतर पार्टी और एनडीए के साथ अडिग खड़े हैं। इस बाबत वे पार्टी सुप्रीमो से भी मिले।
जिलाध्यक्ष आलमगीर आलम ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो जी के रांची स्थित आवासीय कार्यालय में मुलाकात कर उन्हें गुलदस्ता भेंट कर सम्मानित किया। आलमगीर ने पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में ज़मीनी आजसू कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाये जाने हेतु आदरणीय आजसू केंद्रीय अध्यक्ष श्री सुदेश महतो जी का ध्यान आकृष्ट कराया। पत्रकारों के सवाल पर आजसू जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम ने कहा कि आजसू पार्टी से श्री अकिल अख्तर जी का इस्तीफा दिए जाने से पाकुड़ विधानसभा में आजसू पार्टी की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। आजसू जिला अध्यक्ष आलमगीर आलम ने कहा की सांगठनिक क्षमता और आजसू पार्टी की नीतियों और विचारधारा के साथ– साथ झारखंड के सबसे लोकप्रिय नेता की राजनीति कौशल तथा दक्षता को पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में जन-जन तक पहुंचा है। उन्होंने ये भी कहा की मैं हर वक्त मुसीबत और दुख में जनता के साथ खड़ा रहा हूं। जिसके वजह से मुझे कई बार केस मुकदमा की परेशानियां उठानी पड़ी फिर भी मैं डिगा नहीं। आजसू सुप्रीमो श्री सुदेश महतो ने विश्वास दिलाया कि पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में एनडीए गठबंधन का उम्मीदवार पूरी ताकत और मजबूती से चुनाव लड़ेगी। साथ में जिला प्रवक्ता शेकसादी राहमातुल्ला, केंद्रीय समिति सदस्य विजय कुमार साह और बुद्धिजीवी मंच के वरिष्ट कार्यकर्ता मो सादेक आली भी मौजूद थे।

एक बार फिर पाकुड़ के गौरव समाजसेवी लुत्फुल हक़ नेशनल गौरव के पुरस्कार से नवाज़े गये ।

प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड से नवाजे गए समाजसेवी लुत्फुल हक

:–कर्नाटक के पूर्व सीएम जगदीश शेट्टर, पद्मश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ व अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने किया सम्मानित

पाकुड़। पाकुड़ के जाने-माने और मशहूर समाजसेवी लुत्फुल हक को प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड 2024 से नवाजा गया है। बेंगलुरु के पांच सितारा होटल में एशिया टुडे के द्वारा आयोजित प्राइड ऑफ नेशन अवार्ड 2024 का रंगा रंग कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उक्त कार्यक्रम में देश के जाने माने चिकित्सक, व्यवसाई, समाजसेवी, कलाकार, शिक्षाविद सहित जानी-मानी हस्तियां मौजूद थे। कार्यक्रम में बतौर चीफ गेस्ट कर्नाटक के पूर्व चीफ मिनिस्टर जगदीश शेट्टर, सांसद पद्मश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ, बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता गुलशन ग्रोवर मौजूद थे। अतिथियों ने समाजसेवी लुत्फुल हक को समाजसेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने को लेकर अवार्ड से नवाजा। अतिथियों ने अपने संबोधन में कहा कि एशिया टुडे के द्वारा प्रत्येक वर्ष अलग अलग देशों में अपने अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वालों को खोज कर निकालना और एक मंच पर लाकर खड़ा करना काफी कठिन काम है। एशिया टुडे ने इस तरह के कार्यक्रम कर बहुत ही अच्छा काम किया है। कहा काफी वर्षों से देख रहा हूं कि एशिया टुडे ने देश के साथ-साथ विदेश में भी सामाजिक कार्यों के अलावा अलग अलग क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वालों को प्रोत्साहित करने का काम कर रहा है। श्री शेट्टर ने कहा कि लुत्फुल हक झारखंड राज्य में जो समाजसेवा का काम कर रहे है, वह बहुत ही सरहनीय है। वहीं कार्यक्रम में मौजूद देश के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ सह पदंश्री डॉ. सीएन मंजुनाथ ने कहा कि लुत्फुल हक समाजसेवा के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहे है। आपके द्वारा यह काम रुकना नहीं चाहिए। जो इंसान निःस्वार्थ से काम करते है, उनकी जिंदगी में कमी कभी नहीं होगी। वहीं सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता गुलशन ग्रोवर ने भी लुत्फुल हक के कार्यों की सराहना की है। इधर लुत्फुल हक अवार्ड पाकर काफी खुश हुए। उन्होंने कहा कि यह अवार्ड गरीबों के नाम करता हूं। हालांकि अवार्ड पाकर खुशी तो मिलती है, लेकिन खुशी तब अधिक और हो जाती है, जब भूखे पेट गरीब और जरूरतमंद को भोजन कराते है। उन्होंने कहा कि पाकुड़ रेलवे स्टेशन पर निरंतर चलने वाले भोजन कार्यक्रम जब तक ईश्वर ने जिंदगी दी है, तबतक चलता रहेगा। इसके लिए जो भी बाधाएं आएगी सब मिलकर दूर करेंगे।
साभार पत्रकार राणा मक़सूद

घुसपैठ एक समस्या , लेकिन उसपर देश में राजनीति उससे भी बड़ी समस्या।

पश्चिम बंगाल के बंगलादेश सीमा क्षेत्र से लगे एक स्थान के स्थानीय भारतीय अल्पसंख्यक भाई की बात मैं मोटे तौर पर आपसे साझा करता हूँ । पत्रकार के स्वभाव वस मैंनें उनसे पूछा कि आपके क्षेत्र में घुसपैठ होता है , या नहीं।
उन्होंने बताया कि जब तक हमारे देश में वोट की राजनीति होगी , तब तक घुसपैठ रुकने वाला नहीं है।
उनकी इन बातों ने मुझे उन्हें और कुरेदने के लिए मजबूर कर दिया , और उनकी बातों से जो मुझे समझ में आया , वो ये कि घुसपैठ से वे भी खुश नहीं हैं , सिर्फ़ विरोध की वे हिम्मत नहीं जुटा पाते। मोठे तौर पर उन्हें भी ये बात शालती है कि उनके हिस्से के संसाधनों को वोट के लालच में हमारी राजनीति घुसपैठियों में बाँट देते हैं।
खैर इस विषय और बात चीत पर अलग से आलेख लिखूँगा , लेकिन एक बात जिसका मुझे सकून मिलता है , कि 1990 से लगातार जिस प्रकार मैं समय समय पर घुसपैठ पर लिख और कह रहा था , और उस समय पत्रकार बिरादरी भी मेरी हँसी उड़ाते थे , उसपर आज राजनीति पत्रकारिता सहित सब चिंतन कर रहे और कह रहे हैं।

एक बार फिर से देश की राजनीति में घुसपैठियों का मुद्दा इनदिनों विशेष चर्चा का विषय बन गया है।ऐसे घुसपैठ एक पुराना मुद्दा है , लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों राज्य के वरीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिलों से घुसपैठ और घुसपैठियों पर रिपोर्ट तलब कर न्यायालय को अवगत कराया जाय।
उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि घुसपैठ अगर इसी तरह जारी रहा तो एक दिन बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
हाँलाकि संसद में भी समय समय पर घुसपैठ पर सांसद निशिकांत दुबे कई बार आवाज उठा चुके हैं। गृहमंत्री भी संसद में घुसपैठ पर बोल चुके हैं।
लेकिन देश के उच्च न्यायालयों के घुसपैठ पर चिंता जाहिर करने और इसपर रिपोर्ट तलब करने के बाद से ये मुद्दा और ज्यादा तूल पकड़ लिया है।
न्यायालय के ऐसे मामले में दखल कोई नई बात नहीं है , इससे पहले पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर पाकुड़ नगर थाने में कांड संख्या 11/94 तत्कालीन थाना प्रभारी डी एन विश्वास एवं डीएसपी ऑलिभर मिंज पर एक मामला दर्ज हुआ था, जिसमें 18 बंगलादेशियों को छोड़ देने का आरोप लगा था।
पाकुड़ नगर थाना के 1991 में थानकाण्ड संख्या 512 , 514 और 518 इस आरोप की गवाही देता है कि छात्र नेता धर्मेंद्र सिंह और रामप्रसाद सिंहा के दबाब पर 18 घुसपैठियों को पकड़ा गया और फिर अवैध तरीके से छोड़ भी दिया गया। इसके विरोध में छात्रनेता द्वय ने तत्कालीन अविभाजित बिहार के पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और क्री डब्लू जे सी 220 /92 दर्ज कर गुहार लगायी।
25 नवम्बर 93 को माननीय उच्च न्यायालय पटना ने डीजीपी बिहार को दोनों पुलिस अधिकारियों पर मामला दर्ज करने का आदेश दिया।
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घुसपैठ कोई नई बात नहीं , इसपर सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता भी कोई नई बात नहीं , तथा माननीय न्यायालयों की चिंता और उसपर निर्देश भी कोई नई बात नहीं रह गई है।
इधर विशेष साखा ने भी झारखंड सरकार को ये आगाह किया था कि अवैध घुसपैठिये संथालपरगना में आदिवासियों की जमीन हड़प रहे हैं। बंगलादेशी अवैध घुसपैठिये आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी जमीन हड़प रहे हैं। कई घटनाओं ने इन बातों पर अपनी मुहर भी लगाई है।
खैर सबसे बड़ी बात ये है , कि साप्रदायिक , संस्कृति एवं भाषाई समानता का निर्माण कर असम , बिहार , झारखंड और बंगाल के कुछ जिलों को बंगलादेश में मिलाने की एक दीर्घकालीन योजना पर एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र चल रहा है। इधर झारखंड के संथालपरगना का खनिजों से परिपूर्णता ने इस अंतरराष्ट्रीय साज़िश को और ज़्यादा तेजी और बल दे दिया है , परिणामस्वरूप घुसपैठ में तेजी तथा आदिवासियों के बीच पैठ बनाने की स्पीड काफ़ी बढ़ गई है।
लेकिन राजनैतिक दलों के लिए यह मुद्दा हमेशा सुविधा के अनुसार चर्चा का विषय बनता है , लेकिन याद रखें सुविधानुसार ही । अभी चूँकि निकट भूत में दो दो उच्च न्यायालयों ने इस विषय पर अपनी बात कही है, इसलिए यह मामला तूल पकड़ा है , वरना देश में करोड़ों का घुसपैठ होना कोई साधारण बात नहीं है।

सीमा के दोनों ओर की अवैध आवश्यकताओं के तस्कर रखते हैं ध्यान , और आपूर्ति करते हैं नशें के सौदागर।

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद पुलिस ने फेंसीडील सिरफ की बड़ी खेप पकड़ी। ये फेंसीडील भारत से तस्करी कर बंग्लादेश ले जाया जा रहा था।
फेंसीडील सिरफ में अल्कोहल और नशीली दवाओं की मात्रा इतनी ज्यादा रहती है, कि इसकी खुमारी मझोले शराब की बोतल से कम नहीं होतीं , जिसे भारत मे अद्धा खम्भा के नाम से शराबियों में प्रचलित है ।
नशे के शौकीन बंग्लादेश में भी कम नहीं है , नतीजतन यहाँ से फेंसीडील सिरफ वहाँ भेजा जाता है , जो खाँसी की दवाई के नाम पर आसानी से वहाँ शौकीनों को उपलब्ध हो जाता है।
रही बात शराब की तो इस्लामिक देश होने के कारण वहाँ ये हराम है , और आसानी से शराब वहाँ उपलब्ध नहीं होता।
कुछ कॉस्मेटिक , नमक सहित कई अन्य सामानों और गौ तस्करी के साथ फेंसीडील सिरफ भी बंग्लादेश भारत के सीमाई क्षेत्र से किया जाता है , और वहाँ से ड्रग्स की तस्करी कर सीमा के इस पार लाया जाता है।
फेंसीडील सिरफ झारखंड से भी आपूर्ति की जाती है , जो ट्रांसपोटिंग कम्पनियों के द्वारा झारखंड के सीमाओं पर बसे शहरों में लाया जाता है।
कुल मिलाकर सीमा के दोनों और , एक दूसरे की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर , नशीले पदार्थो की आपूर्ति की जाती है , जो कभी कभी पुलिस की गिरफ्त में आ ही जाती हैं।
ऐसी बरामदगी इस बात के सबूत हैं , कि ऐसा होता आया है। जिसमें सन्देह की सुई कई ओर इंगित करती हैं।