जर्नी ऑफ पेन, सफ़र कलम की..

कलम का सफ़र सभ्यता के साथ ही शुरू हुआ है। श्रुति के दौर में ही कलम की आवश्यकता मानवीय सभ्यता को महसूस हुई। सबसे पहले भोजपत्र नामक बनस्पति की कागज़ और सरकंडा, मयूरपंख तथा अनार के डंठलों की कलम बनाई गई। सनातन संस्कृति में मन्त्र, यन्त्र और तंत्र के निर्माण में इसका प्रयोग हुआ। हमेशा नई शोध, नए प्रयोग और नई आवश्यकता के अनुसार इज़ादों पर विश्वास रखने वाली सनातन संस्कृति ने क्रमबद्ध रूप से कलम और कागज़ के आविष्कार किया और काग़ज़ों के मैदान पर कलम के सफ़र की शुरुआत हुई। कलम चलती रही, उसके कई रूप बदले, लेकिन कलम के बदलते रूपों के साथ इसकी आवश्यकता ने सभ्यताओं, भाषाओं और इसकी उपयोगिता को नए नए रूपों में परिभाषित किया।

इस सफ़र में वेद , वेदांत, ग्रन्थ, धर्मग्रंथ, कहानी, कविताएं और न जाने क्या क्या कही गई। कहीं कथा कहानियों और कविताओं ने जीवन के गीत गाये तो कहीं अदालतों ने इसी कलम की सफ़र में मौत के पैगाम भी सुनाए। कहीं क्रांति के बिगुल फूँकने तो कहीं पीड़ितों की अश्रुधारा को पहचानने के काम आई ये सफ़र।

मेरे जज़्बातों से इस क़दर वाक़िफ़ है मेरी क़लम …..
मैं इश्क़ भी लिखना चाहूँ तो, इंक़लाब लिख जाता है ….

कुल मिलाकर कलम का सफ़र हर खुशी, दर्द, इबादतों की कहानी कहती गई, मानव प्रजाति अब इसकी अभ्यस्त बन चुकी है। जैसे मानव जीवन के लिए साँस ज़रूरी है, वैसे ही मानव के हर पहलू के लिए कलम के हस्ताक्षर भी एक आवश्यक ज़रुरत है।
इसलिए मैंने कलम के इस सफ़र की शुरुआत की है। मैं वो सब सुनाने की, कहने की कोशिश इस सफ़र में करूँगा, जो जीवन के कोलाहल कहीं खो जाता है। धन्यवाद..